रवि उपाध्याय
बिहार में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। इन चुनाव में नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री चुन लिए गए और उन्होंने दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया। बिहार के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व है जब एक ही व्यक्ति बीस सालों तक मुख्यमंत्री होने के बाद भी बिहार की जनता ने उसी व्यक्ति को एक बार फिर से भारी बहुमत से मुख्यमंत्री चुना हो।
बिहार विधानसभा चुनावों में जो घटनाएं खूब चर्चा में रहीं उसमें सबसे प्रमुख घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गमछा घूमाना रही। बिहार और उत्तर प्रदेश में गमछा घूमना अत्यंत ही खुशी का प्रतीक माना जाता है। जब व्यक्ति अति उत्साह में होता है तो वह आमतौर पर गमछा घुमा कर अपनी खुशी को व्यक्त करता है। जब प्रधानमंत्री द्वारा बिहार की रैली में गमछा घुमाया तो उनके समर्थक इस घटना को पौराणिक काल में ले गए। कुछ लोगों को मोदी को गमछा घुमाते देखकर ऐसा लगा कि जैसे वो कह रहे हों - ओ विपक्ष वालों जरा होशियार यहां के हम हैं राजकुमार। हमारे साथ हैं नीतीश कुमार, ओ विपक्ष वालों जरा होशियार...।
किसी ने कहा मोदी ने जो गमछा घुमाया तो वह गमछा नहीं सुदर्शन चक्र था। जिसकी विपक्षी दलों के पास कोई काट नहीं थी। प्रधानमंत्री ने बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान तीन बार गमछा घुमाया है। उन्होंने पहली बार एक रैली में गमछा घुमाया, उसके बाद चुनाव रिजल्ट आने के बाद दूसरी बार उन्होंने दिल्ली के भाजपा कार्यालय में गमछा घुमाया और तीसरी बार उनका गमछा नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पटना के गांधी मैदान में घूमा।
मोदी जी ने बिहार में जो गमछा घुमाया उसका असर तमिलनाडु तक जा पहुंचा। जब मोदी वहां पहुंचे तो वहां की जनता ने हरे रंग का गमछा घुमा कर प्रधानमंत्री का अभिवादन किया। मध्यप्रदेश के एक खांटी भाजपाई ने इसे मोदी का सिग्नेचर स्टाइल बता डाला। इसका असर भोपाल के मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान में गत शनिवार 22 नवम्बर को संस्थान के दीक्षांत समारोह में उस समय देखने को मिला जब संस्थान की पुरस्कृत युवा छात्राओं ने गमछे की तरह कन्वोकेशन के पटके को हवा में लहराकर -लहराकर अपना उत्साह व्यक्त किया।
गमछा घूमना निश्चय ही अच्छी घटना होगी लेकिन यह भी ध्यान देना होगा कि चुनाव के बाद के अगले पांच सालों तक मतदाताओं को गमछा न समझा जाए। उनके दुख दर्द और अभिलाषाओं पर ध्यान दिया जाए। माना कि समस्याओं को जड़मूल से नहीं खत्म किया जा सकता पर उनको कम तो किया ही जा सकता है। वैसे भी नेताओं से अच्छा घुमाना कोई नहीं जानता है। देश की जनता आश्वासनों के नाम पर वर्षों से नेताओं द्वारा उसी तेजी से घुमाई जाती रही है जितनी तेज़ी पृथ्वी घूम रही है। और जनता है कि वह इसका भी मज़ा ले रही है। नेता घुमाने में माहिर है और जनता घूमने में आनंदित है।
प्रधानमंत्री द्वारा गमछा घुमाने के इस कदम से इला अरुण के द्वारा फिल्म में गाए गए लोक गीत की याद आ गई। जिसके बोल हैं - ऐ दिल्ली शहर में म्हारो घाघरो जो घूमियो ओ घूमियो ओ घूमियो...। उई उई सब मर गिया म्हारो घाघरों जब घूम्यो । इला अरुण के इस गाने ने जैसे संगीत प्रेमियों के बीच में गर्दा उड़ा दिया था वैसा ही गर्दा प्रधानमंत्री मोदी ने अपना गमछा घुमा कर बिहार में उड़ा दिया। बिहार की जनता ने भी अपने अपने गमछे घुमा कर प्रधानमंत्री मोदी के गमछा घुमाने का दिल से हर्ष ध्वनि कर के उसी तरह जवाब दिया। उस समय ऐसा लग रहा था मानो कोई रॉक स्टार स्टेज पर अपना परफोर्मेंस दे रहा हो।
इस घटना से मोदी ने सियासत में गर्दा ही उड़ा दिया। विपक्ष के नेताओं के पास मोदी के गमछा चक्र का कोई जवाब नहीं था। वैसे भी मोदी गर्दा उड़ाने में मास्टर हैं। उन्होंने 2014 में सत्ता में आने पर सबसे पहले झाड़ू थाम कर गर्दा को ही अपना निशाना बनाया था। तब से वे चुनाव दर चुनाव यही कर रहे हैं।विपक्षी नेता हैरान परेशान है उन कि समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें कौन सा दांव चले। चुनाव दर चुनाव मोदी विपक्ष का गर्दा ही उड़ाए जा रहे हैं।
लोकसभा में विपक्ष के टीशर्ट धारी नेता से उम्मीद थी कि वे कुछ चमत्कार करेंगे। उन्होंने सब को एक छतरी के नीचे कर के भरसक प्रयास भी किया, यहां तक कि उन्होंने बेगूसराय में, अपने नए नए मित्र अफ़ज़ल की मौत पर शर्मिंदगी महसूस करने वाले कन्हैयाकुमार के साथ तालाब तक में छलांग लगा दी, पर ना तो कोई मछली हाथ लगी ना वोट ही हाथ लगे। वो चोर चोर को नारा लगा कर पूरे बिहार में चोर को ढूंढते फिरे। पर उन्हें चोर तो मिला नहीं, उलटे तेजस्वी ने उनका साथ छोड़ कर एकला चालो के नारे को अपना लिया। अब तो दबी जुबान से कांग्रेसी भी कहने लगे भैया जी ने तो देश के टुकड़े टुकडे करने का नारा लगवाने वाले नटवर लाल के साथ पार्टी को भी तालाब में डूबकी लगवा दी। यदि यही डुबकी वो कुछ महीनों पहले प्रयागराज में जाकर कुंभ मेले में लगा लेते तो शायद बार बार हारने के शाप से मुक्ति मिल जाती।
अब कहने वाले तो कहेंगे ही, क्योंकि हमें संविधान में कहने की ही तो आजादी दी गई है। ऐसे में करने या न करने की, कोई परवाह क्यों करे। कहने की आज़ादी ही है कि हम स्टेज पर चढ़ कर या मीनार पर चढ़ कर किसी को भी मां बहन को गाली दे सकते हैं। किसी को भी चोर कह सकते हैं। किसी को भी देश से चले जाने को कह सकते हैं। हम दावा कर सकते हैं कि इस देश की मिट्टी में हमारा भी खून गिरा है। इसलिए देश हमारा है। अरे तुम से ज्यादा तो इस देश की मिट्टी बकरे, गाय और पाडो के खून से सनी है । लेकिन वो तो कभी देश का मालिक होने का दावा नहीं करते।
इस देश की मिट्टी में किसानों का पसीना मिला है उन्होंने तो कभी दावा नहीं किया की यह धरती और ये दुनिया और यह वतन हमारा है। दावा इसलिए नहीं किया कि दरअसल यह धरती उन्हीं की धरोहर है। वे ही उसके असली मालिक हैं। इस देश की मिट्टी में असल खून तो सरहदों पर तैनात उन जाबांज सैनिकों का मिला है जिन्होंने हंसते हंसते हुए अपने प्राणों को इस सरजमीं पर न्योछावर कर दिया और प्राण त्यागते समय यह कह गए कि अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..।

Post a Comment