'हम तो सरकार को ढूंढ रहे, अभी तक मांगे हैं अधूरी...
शाहजी केतके
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर 26 नवंबर 2020 को दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर, सिंधु बॉर्डर समेत अन्य बॉर्डर पर किसान आंदोलन शुरू हुआ था. बुधवार, 26 नवंबर 2025 को किसान आंदोलन के पांच साल पूरे हो चुके हैं. 26 नवंबर 2020 को हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे. कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए दिल्ली पुलिस ने किसानों को राजधानी में दाखिल होने की अनुमति नहीं दी थी, जिसके चलते किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर ही डेरा डाल दिया और महीनों तक आंदोलन जारी रखा. पांच साल बाद 2025 का यह दिन एक बार फिर किसानों के संघर्ष की यादों को जीवंत कर रहा है.
साल 2020 में केंद्र की मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून पारित किए थे. तीनों कृषि कानून से देशभर के किसानों के अंदर गहरी असुरक्षा की भावना उत्पन्न हुई थी. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब समेत विभिन्न राज्यों के प्रमुख किसान संगठनों ने तीनों कृषि कानून को "खेती को कॉर्पोरेट के हाथों सौंपने" का प्रयास बताया था. तब, हजारों की संख्या में किसान 26 नवंबर 2020 को दिल्ली के गाजीपुर बार्डर (यूपी गेट) और सिंधू बार्डर पर पहुंचे थे. किसान दिल्ली के जंतर मंतर जाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन कई लेयर में दिल्ली पुलिस ने अपनी बैरिकेडिंग लगाने के साथ हजारों की संख्या में पुलिस बल तैनात किया हुआ था.
किसानों ने ट्रैक्टर से बैरिकेडिंग तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश की. इस पर पुलिस ने लाठी चार्ज करने के साथ वाटर कैनन से पानी की बौछार की. इससे भगदड़ मच गई और कई किसान घायल हो गए. काफी जद्दोजहद के बाद किसान दिल्ली में नहीं जा सके तो गाजीपुर बार्डर और सिंधू बार्डर पर सड़क पर बैठ गए.
दिल्ली की चार सीमाओं पर हुआ था आंदोलन
दिल्ली की चार सीमाएं लंबे समय तक किसान आंदोलन का केंद्र बनी रही. सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, चिल्ला बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर हजारों की संख्या में किसान डटे रहे. दिल्ली में दाखिल होने के कई प्रमुख मार्ग किसान आंदोलन के चलते बंद रहे. गाजीपुर बॉर्डर सीमा पर किसान आंदोलन की अगुवाई भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने की थी. जबकि, चिल्ला बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन (भानू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह द्वारा की गई थी. वहीं, टिकरी और सिंधु बॉर्डर पर हरियाणा और पंजाब के किस संगठन आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे.केंद्र सरकार के साथ 11 दौर की बातचीत
किसानों और सरकार के बीच 11 दौर (14 अक्टूबर 2020 से 22 जनवरी 2021) की वार्ता हुई. वार्ता में दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन की अगुवाई कर रही विभिन्न किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए. लेकिन 11 दौर की वार्ता के पश्चात कोई परिणाम नहीं निकल सका.
किसानों की थी दो प्रमुख मांगे
दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों की पहली मांग तीनों कृषि कानून की वापसी और दूसरी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर गारंटी कानून बनाना. अपनी मांगों को लेकर 13 महीने तक किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन करते रहे. इस बीच ठंड, गर्मी, बारिश और कोरोना महामारी के बावजूद किसान अपने मोर्चे पर डटे रहे. किसानों ने शुरुआत में ही साफ कर दिया था कि जब तक मांगे पूरी नहीं होती तब तक दिल्ली की सीमाओं को नहीं छोड़ेंगे.
किसान आंदोलन की हुई जीत
19 नवंबर 2021 को केंद्र की मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानून को वापस लेने का निर्णय लिया. प्रधानमंत्री द्वारा तीनों कृषि कानून की वापसी की घोषणा की गई. केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानून को वापस लेना किसान आंदोलन की जीत मानी गई.
दिल्ली की सीमाओं पर 380 दिनों का संघर्ष
दिल्ली की सीमाओं पर 380 दिनों तक किसान आंदोलन जारी रहा. संयुक्त किसान मोर्चा ने हाल ही में जारी बयान में कहा, "736 शहीदों के बलिदान और 380 दिनों के लंबे संघर्ष ने एनडीए की केंद्र सरकार को तीनों कॉर्पोरेट समर्थक और जन विरोधी कृषि कानून को निरस्त करने के लिए मजबूर कर दिया था. दिल्ली की सीमाओं पर ऐतिहासिक किसान संघर्ष को संयुक्त ट्रेड यूनियन आंदोलन का सक्रिय समर्थन प्राप्त था."
सरकार को ढूंढ रहे हैं: टिकैत
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता किसान नेता राकेश टिकैत ने बातचीत के दौरान अपने व्यंग्नात्मक अंदाज में कहा कहा, "हम तो सरकार को लगातार ढूंढ रहे हैं लेकिन सरकार नहीं मिल रही है. सरकार मिले तो हम अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखें. आखरी बार सरकार से हमारी मुलाकात 22 जनवरी 2021 को हुई थी. किसान आंदोलन के दौरान आखिरी वार्ता सरकार से 22 जनवरी 2021 को हुई थी. उसके बाद हमने सरकार को बहुत ढूंढा लिया है, लेकिन हमें सरकार नहीं मिली. हमने काफी प्रयास किया, सरकार के समक्ष अपनी मांगों को रखा जाए लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला."
MSP गारंटी कानून किसानों का हक
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, "आंदोलन, धरना प्रदर्शन और ज्ञापन आदि के माध्यम से किसानों ने सरकार के समक्ष अपनी बात रखने का प्रयास किया लेकिन सरकार की तरफ से किसानों की मांगों और समस्याओं को लेकर संज्ञान तक नहीं लिया गया. किसान कई सालों से न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर गारंटी कानून बनाने की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार ने इस ओर भी अब तक ध्यान नहीं दिया है. एसपी गारंटी कानून किसानों का अधिकार है.''
फिर होगा किसान आंदोलन ?
राकेश टिकैत से जब सवाल किया गया कि क्या न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी कानून बनाने की मांग को लेकर भी किसानों द्वारा आंदोलन किया जाएगा? इस सवाल के जवाब में किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, " न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी कानून बनाने की मांग को लेकर देश भर में किसानों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहे हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी कानून बनाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन किसानों द्वारा किया जाएगा या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा. हम देश के विभिन्न राज्यों में जाकर किसानों से बातचीत कर रहे हैं."
आंदोलन का दर्द नहीं भूलेगा किसान
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, "किसान आंदोलन के दौरान किसानों ने ताप्ती गर्मी, बारिश और कड़की की ठंड के दिन सड़कों पर बिताए. किसान आंदोलन के दौरान सैकड़ो किसानों ने शहादत दी. आंदोलन के दौरान उठाई गई पीड़ा देश का प्रत्येक किसान कभी नहीं भूल सकता है. 26 नवंबर 2025 को किसान आंदोलन के पांच साल पूरे होने जा रहे हैं. किसान आंदोलन के पांच साल पूरे होने पर देशभर में किस संगठन जिला मुख्यालय पर इकट्ठा होकर प्रदर्शन करेंगे और अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखने का काम करेंगे."
लिखित आश्वासन अभी तक नहीं हुए लागू
संक्युक्त किसान मोर्चे द्वारा जारी ब्यान में कहा गया है, "9 दिसंबर 2021 को एसकेएम को दिए गए एमएसपी@C-2+50%, कर्ज राहत और बिजली क्षेत्र का निजीकरण न करने के लिखित आश्वासनों को अभी तक लागू नहीं किया है. भारत के किसान लगभग पूरी तरह से बर्बादी की कगार पर है. धान 1400 रुपये प्रति क्विंटल (2369 रुपये प्रति क्विंटल), कपास 6000 रुपये प्रति क्विंटल (7761 रुपये प्रति क्विंटल) और मक्का 1800 रुपये प्रति क्विंटल (2400 रुपये प्रति क्विंटल) पर बिक रहा है. C-2+50% के अनुसार धान का एमएसपी 3012 रुपये प्रति क्विंटल है. मोदी सरकार ने पिछले 11 वर्षों में 16.41 लाख करोड़ रुपये का कॉर्पोरेट कर्ज माफ किया है, लेकिन किसानों का एक भी रुपया का कर्ज माफ नहीं किया है."
26 नवंबर को देशभर में प्रदर्शन
संयुक्त किसान मोर्चे द्वारा हाल ही में जारी किए गए लिखित बयान के मुताबिक, "26 नवंबर 2025 को, एसकेएम और सीटीयू अन्य मजदूर व खेत मजदूर यूनियनों के साथ राज्य और ज़िला स्तर पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन आयोजित करेंगे."
राहगीरों को हुई थी सबसे ज्यादा परेशानी: एनएच-9 और दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे के रास्ते गाजीपुर बार्डर से लोग दिल्ली में प्रवेश करते हैं. सिंधू बार्डर से हरियाणा और पंजाब के लोग दिल्ली में प्रवेश करते हैं. इन दोनों के साथ अन्य बार्डर पर किसानों के आंदोलन के चलते रोजाना लाखों राहगीरों को परेशानी का सामना करना पड़ा था. करीब एक साल से अधिक समय तक लोगों को वैकल्पिक रास्तों से दिल्ली जाना पड़ता था, जहां पर वाहनों का दबाव बढ़ने से नियमित जाम लगता था.
संयुक्त किसान मोर्चे की मुख्य माँगें
गारंटीशुदा खरीद के साथ C-2+50% पर MSP प्राप्त करने के लिए तुरंत एक कानून बनाएं. (खरीद प्रणाली न होने के कारण, किसान केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित A2+FL+50% के आधार पर MSP के 30% से कम पर, औने-पौने दर पर फसल बेचने को मजबूर हैं)
केंद्र सरकार किसानों और खेत मजदूरों के लिए एक व्यापक ऋण माफी योजना घोषित करे, सूक्ष्म वित्त संस्थाओं की ब्याज दरों को विनियमित करने के लिए कानून बनाए और उधारकर्ताओं का उत्पीड़न समाप्त करे.
बिजली और सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण न हो, स्मार्ट मीटर न हों. बिजली विधेयक 2025 को निरस्त करें. सभी घरों को प्रति माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली प्रदान करें.
भारत पर 50% अमेरिकी टैरिफ लगाने को भारत की संप्रभुता का उल्लंघन मानें और सख्त पारस्परिक कार्रवाई करें.
कपास, डेयरी क्षेत्रों में कोई एफटीए न हो. कपास पर 11% आयात शुल्क को खत्म करने वाली अधिसूचना को निरस्त करें.
किसानों और श्रमिकों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला कोई एफटीए नहीं होना चाहिए. भारत-यूके एफटीए सीईटीए को रद्द करें. बीज विधेयक 2025 का मसौदा वापस लें.
चार श्रम संहिताओं को निरस्त करें और न्यूनतम वेतन के अधिकार की रक्षा करें.
सभी भीषण बाढ़ों और प्राकृतिक आपदाओं को राष्ट्रीय आपदा घोषित करें; वास्तविक नुकसान के आधार पर पूर्ण मुआवज़ा सुनिश्चित करने के लिए भौतिक सत्यापन अनिवार्य करें.
सभी आपदा प्रभावित राज्यों के लिए 1 लाख करोड़ रुपये और पंजाब के लिए 25,000 करोड़ रुपये का मुआवज़ा जारी करें. बटाईदार किसानों और खेत मजदूरों के मुआवज़े के अधिकार की रक्षा करें.
किसानों के लाभ के लिए 200 दिन काम और 700 रुपये दैनिक मज़दूरी सुनिश्चित करें और मनरेगा को कृषि और डेयरी से जोड़ें.
नौकरियों में भर्ती पर प्रतिबंध हटाएं. स्थाई नौकरियों में आकस्मिकता, आउटसोर्सिंग और ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगाएं. सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र में 65 लाख रिक्त पदों को भरें. पुरानी पेंशन योजना बहाल करें.
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यकों के लिए सामाजिक आरक्षण को सख्ती से लागू करें.
कृषि भूमि का अंधाधुंध अधिग्रहण न हो, बुलडोजर राज न हो, पुनर्वास और पुनर्स्थापन के अधिकार की रक्षा हो. एलएआरआर अधिनियम 2013 के सभी उल्लंघनों की भरपाई हो.

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