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केवल किताबी ज्ञान से नहीं बनेगी कुशल प्रशासन की नींव: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणीBookish knowledge alone will not lay the foundation for efficient administration: Punjab and Haryana High Court's important observation

 पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रियाओं पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल रटकर सीखने और यांत्रिक दोहराव पर आधारित परीक्षाएं प्रभावी प्रशासन और सार्वजनिक सेवा के लिए आवश्यक कौशल को मापने में विफल रहती हैं। न्यायालय ने जोर दिया कि भर्ती प्रक्रियाओं को विकसित होना चाहिए और ऐसे कौशल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो केवल किताबी ज्ञान से परे हों। जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार की पीठ ने हरियाणा लोक सेवा आयोग (HPSC) द्वारा आयोजित असिस्टेंट एनवायर्नमेंटल इंजीनियर की स्क्रीनिंग परीक्षा में सामान्य जागरूकता, सामान्य ज्ञान और मानसिक क्षमता जैसे विषयों को शामिल करने को उचित ठहराया


।न्यायालय ने कहा, "सरकारी नौकरियों में भर्ती का सामान्य चलन अभी भी किताबी ज्ञान पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इन उद्देश्यों के लिए आयोजित होने वाली परीक्षाओं में आलोचनात्मक सोच या व्यावहारिक समस्या-समाधान क्षमताओं के आकलन के बजाय, तथ्यों को रटने और यांत्रिक रूप से दोहराने पर जोर दिया जाता है।" कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा दृष्टिकोण अक्सर रचनात्मकता, अनुकूलन क्षमता, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और अन्य ऐसे कौशल को ध्यान में नहीं रखता है जो सार्वजनिक सेवा के संदर्भ में प्रभावी प्रशासन के लिए आवश्यक हैं।

न्यायालय ने कहा, "भावी लोक सेवकों से संज्ञानात्मक सतर्कता, व्यावहारिक निर्णय लेने की क्षमता, संवैधानिक संवेदनशीलता और नागरिक जागरूकता की अपेक्षा करना पूरी तरह से न्यायसंगत है। इसके अलावा, नौकरी की प्रकृति ही यह मांग करती है कि अधिकारी वैज्ञानिक प्रगति, सामाजिक-आर्थिक रुझानों और सार्वजनिक नीति के विकास से अवगत हों ताकि वे लोगों की सर्वोत्तम क्षमता से सेवा कर सकें।" 

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि जब विज्ञापन स्पष्ट होता है और कानूनी ढांचे के भीतर होता है तो अदालतों को भर्ती प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह नियोक्ता का विशेषाधिकार है कि वह पात्रता मानदंड निर्धारित करे, क्योंकि वही विज्ञापित भूमिका के लिए एक उम्मीदवार की उपयुक्तता का सबसे अच्छा आकलन कर सकता है।दरअसल एक सिविल इंजीनियर ने संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत कोर्ट का रुख किया और स्क्रीनिंग टेस्ट के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम को रद्द करने की मांग की। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पाठ्यक्रम में पद से संबंधित मुख्य इंजीनियरिंग विषयों को बाहर कर दिया गया। 

उनका कहना था कि सामान्य विज्ञान, करेंट अफेयर्स, इतिहास, राजनीति, अर्थव्यवस्था, तर्कशक्ति और हरियाणा-विशिष्ट सामान्य ज्ञान पर केंद्रित परीक्षा का असिस्टेंट एनवायर्नमेंटल इंजीनियर के तकनीकी कर्तव्यों से कोई तार्किक संबंध नहीं है। हरियाणा लोक सेवा आयोग (HPSC) ने अपने फैसले का बचाव करते हुए बताया कि 2023 के पिछले भर्ती चक्र में 54 पदों के लिए 7,000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए और भर्ती में तेजी लाने और शॉर्टलिस्टिंग को आसान बनाने के लिए पाठ्यक्रम को संशोधित किया गया। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि स्क्रीनिंग चरण में केवल 25% अर्हक अंक की आवश्यकता थी और यह केवल शॉर्टलिस्टिंग के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करता था, इस चरण में प्राप्त अंकों को अंतिम मेरिट सूची में नहीं गिना जाना था। 

याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने विशेषज्ञों के विचारों को बदलने से इनकार किया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन बनाम संदीप श्रीराम वराडे (2019) का हवाला दिया जिसमें दोहराया गया कि भर्ती के लिए योग्यता और मूल्यांकन के तरीकों का निर्धारण करने के लिए नियोक्ता ही सबसे अच्छी स्थिति में होता है। HPSC के सामान्य ज्ञान को शामिल करने के निर्णय में कोई अवैधता नहीं पाते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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