विभास क्षीरसागर
शहर और उसके आसपास कई वेटलैंड स्थित हैं। बढ़ते हुए शहरीकरण के बीच ये जल स्रोत जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। इन वेटलैंड में स्थाई रूप से जल भरा रहता है, जिससे जलीय जीव, जलीय पौधे और अनेक पक्षियों को आश्रय मिलता है।
बिगवान वेटलैंड बिगवान भीमा नदी पर बना जलाशय है। यह पुणे, महाराष्ट्र में ताजे पानी का महत्वपूर्ण प्राकृतिक तालाब और दलदली वेटलैंड है। यह पर्यावरण, जैव विविधता और स्थानीय जल व्यवस्था को संतुलित रखता है। आसपास की नदियों और बरसात का पानी साल भर इसमें भरा रहता है।
यह स्थानीय लोगों के मछली पालन और जल संरक्षण में भी सहायक है। यहां अनेक कीट, पतंगे, जल जीव, जलीय पौधे और जलीय पक्षियों मिलते है। इन सब का पर्यावरण संतुलन, परागण और खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण स्थान है।
मछलियां, कीट और पक्षी इस वेटलैंड में रोहू, कतला, मृग, सिल्वर कार्प, भारतीय हिल्सा जैसी मछलियां मिलती हैं।यहां जल के आस पास ड्रैगनफ़्लाई, डैमसेलफ़्लाई, मच्छर, जल-मक्खी, जल-भृंग, स्केटिंग कीट/ जल-पतंगा, चींटियां, मधुमक्खियां, भौंरे, तितलियां , दीमक आदि मिलते हैं। स्थानीय पक्षियों में किंगफिशर, काग, बत्तख, सारस और जल कौवे देखे जा सकते हैं।यहां सर्दियों (अक्तूबर से मार्च) में दूर-दराज से अनेक प्रवासी पक्षी आते हैं- जैसे फ्लेमिंगो, सफेद सारस, पानी के बगुले, सफेद कस्तूरी बाज, फ्लेमिंगो और छोटी बत्तखें, जो उत्तर-पश्चिम एशिया और रूस से यहां पहुंचती हैं।
इनके साथ-साथ ग्रे हेरॉन, कॉर्मोरेंट, गूल, टर्न और पेलिकन जैसी कई प्रजातियां भी देखी जाती हैं।इन पक्षियों का आगमन बिगवान वेटलैंड की जैव विविधता और स्वच्छ पर्यावरण का प्रमाण है, साथ ही यह स्थल पक्षी प्रेमियों और वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का केंद्र भी बन जाता है।स्थानीय मान्यताएं स्थानीय लोग इस सरोवर को पवित्र तथा भगवान शिव द्वारा संरक्षित मानते हैं, अतः इसकी पूजा व साफ-सफाई करते हैं। धार्मिक आस्था के कारण स्थानीय लोग इसे नुकसान नहीं पहुंचाते।गुलाबी फ्लेमिंगो: टूरिस्ट आकर्षण अफ्रीका और भारत के पश्चिमी हिस्सों से फ्लेमिंगो हर साल अक्तूबर से फरवरी तक हजारों किलोमीटर दूर से उड़कर आते हैं।
इन्हें यहां भरपूर शैवाल और झींगे खाने को मिलते हैं। इनके खाने का तरीका अद्भुत होता है। ये पानी में सर उल्टा कर कीचड़ और पानी के अंदर कर लेते हैं फिर अपने घुमावदार मुड़ी चोंच से भोजन खोज कर खाते रहते हैं।ये पंछी हजारों के झुंडों में यहां आते हैं। इनकी गुलाबी रंगत वाले पंख और झुंड में इनकी खूबसूरती देखने लायक होती है। वैज्ञानिक इन्हें बायो इंडिकेटर मानते हैं, यानि फ्लेमिंगो स्वस्थ पर्यावरण का संकेत देने वाले पंछी है। फ्लेमिंग जल से कीट और शैवाल खाकर जल प्रदूषण कम करते हैं और जलाशय और साफ और जैव विविधता को सुरक्षित रखते हैं।इनके गुलाबी पंख और लंबे पैर पक्षी-प्रेमियों और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यही कारण है कि इसे “फ्लेमिंगो पॉइंट” भी कहा जाता है।
किंगफिशर या रामचिरैया किंगफिशर स्वच्छ जलस्रोत और स्वस्थ पर्यावरण का प्रतीक है। ये जल छोटे जलीय जीव को खा कर जल जीवन को स्वच्छ और संतुलित रखने में मदद करते हैं। ये तालाब और झीलों के पास उड़ते हुए अद्भुत अंदाज में मछलियां व जल कीड़े पकड़ते हैं। यह बड़े चमकदार और खूबसूरत नील, हरे और नारंगी रंग के पंखों वाले पंछी होते हैं।इनके शिकार करने की कला बहुत लाजवाब होती है। इन्हें शिकार करते देखना अद्भुत अनुभव है। ये अपनी तेज और पैनी नजरों से आसमान में उड़ते हुए पानी के अंदर अपने शिकार को देख सकते है और फिर बिजली की गति से पानी के अंदर तक डुबकी मारकर मछली का शिकार करते हैं।किंगफिशर पंछी के घोसले बनाने का ढंग भी अनोखा होता है। अन्य पक्षियों से हटकर, ये पेड़ों के बदले नदियों के किनारे ढलानों पर मिट्टी में गड्ढे बनाकर, लंबे ससुरंग जैसे घोंसले बनाते हैं। इन्हीं घोंसलों में मादा किंगफिशर अंडे देती है।
वेटलैंड की समस्याएं शहरों से आने वाला गंदा पानी तथा खेतों में डाले जाने वाले कीटनाशक और रासायनिक उउर्वरक जलके साथ बह कर यहां आते हैं और जल प्रदूषण पैदा करते हैं। यहां जलाशय में मानसून से पानी इकट्ठा होता है। अतः यहां गर्मियों में पानी का स्तर कम हो जाता है।जिससे जल जीवों को कठिनाई होती है। यहां आसपास खेती व निर्माण हेतु भूमि अतिक्रमण और अवैध मछली एवं पक्षी शिकार की समस्या भी है।बचाव और संरक्षणबिगवान वेटलैंड की सुरक्षा हेतु आवश्यक है—
जल स्वच्छता बनाए रखना
जैव विविधता का संरक्षण
स्थानीय लोगों में जागरूकता
आवश्यक शोध और संरक्षण प्रयास
यदि ये कदम उठाए जाएं तो यह स्थल भविष्य में अंतरराष्ट्रीय सूची (रामसर साइट) में स्थान पा सकता है। जिससे यहां पर्यटन और रोजगार के नए अवसर बढ़ेंगे, क्योंकि यह वास्तव में जलीय वन्य जीवन और पक्षियों का जीता-जागता स्वर्ग है।
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