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A .खोमचा मोहब्बत वाला.....! A stall of love.

रवि उपाध्याय 

मोहब्बत की दुकान के कॉन्सेप्ट से प्रेरित होने के बाद हमने सोचा यार यह प्रोजेक्ट अच्छा है। सोचा चलो अपन भी एक मोहब्बत की दुकान खोल लेते हैं। यही सोचते हुए हम ने इसके लिए बैंक से लोन लेने का प्लान बनाया। हम अपनी सोच को लेकर बैंक पहुंचे । वहां हमने एक काउंटर पर बैठी मोहतरमा से कहा मैडमजी, लोन लेना है। किस से मिलना पड़ेगा ? मैडम ने अपनी मूड़ उठा कर हमारी तरफ़ देखा और बोलीं हूं.., काहे के लिए चाहिए लोन। हमने मुस्करा कर उनकी आंखों में झांकते हुए कहा मैडम जी एक दुकान खोलनी है । हमारी तरफ़ देखते हुए अपनी तिरछी सौम्य मुस्कान बिखेरते हुए उन्होंने पूछा काहे की दुकान खोलनी है भाई ? भाई शब्द सुनते ही हमारा मुंह का स्वाद थोड़ा कसैला सा हो गया। 


हमने अपनी बोली में मिश्री सी घोलते हुए कहा मैडम जी मोहब्बत की दुकान खोलनी है। उसी के लिए लोन चाहिए। वे चौंक गईं और उन्होंने मेरी तरफ़ घूर कर देखाऔरआश्चर्य से पूछा क्या..? मोहब्बत की दुकान ! हमने गर्व से कहा जी हां,वही मोहब्बत की दुकान। उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा कभी की है...? हमने गहरी सांस भरते हुए कहा, मैडम की थी पर रुसवाई मिली। परंतु मैडम अब मोहब्बत जिंदाबाद हो रही है। देश के सबसे बड़े सियासी परिवार के नौनिहाल मोहब्बत की दुकान को प्रमोट कर रहे हैं। उन्हें भी अब इसका चस्का लगा है। धीरे-धीरे वे चोर से भी मोहब्बत करने लगेंगे। इसकी उम्मीद बेकार है। 

मैडम कुर्सी से उठते हुए मुस्कुराईं और बोलीं आइए आपको बैंक मैनेजर साहब से मिलवाते हैं। चलते चलते वो थोड़ा रुकीं और उन्होंने मेरी तरफ मुखातिब होते हुए कहा अरे ! मैंने आपका नाम तो पूछा ही नहीं ? मैने कहा मैडम मुझे प्यारेलाल कहते हैं। मैडम मुस्करा कर बोली कहते हैं या आपका नाम प्यारेलाल ही है। मैं भी मुस्करा कर रह गया। मुझे लगा क्या कहीं यह मोहब्बत का असर तो नहीं है। मैं सोच में पड़ गया क्या मोहब्बत कर रही है असर धीरे धीरे।

इसी बीच बैंक मैनेजर का चैम्बर आगया। मैडम ने मैनेजर साहब से नमस्कार करते हुए उनको हमारा परिचय देते हुए कहा सर ये प्यारेलाल जी है। ये मोहब्बत की दुकान खोलना चाहते हैं और इसके लिए हमारे बैंक से लोन लेना चाहते हैं। बैंक मैनेजर ने कहा बैठिए। मैडम बोलीं सर में चलूं। बैठो स्वीटी आप भी बैठो। स्वीटी बोली सर काउंटर पर कस्टमर इंतजार कर रहे हैं। बैंक मैनेजर बोले अच्छा तो फिर ठीक है। 

बैंक मैनेजर ने अपनी कुर्सी मेरी तरफ घुमाते हुए पूछा, हां तो प्यारेलाल जी आप मोहब्बत की दुकान के लिए लोन चाहते हैं ? हमने सिर हिला कर हांमी भरी। मैनेजर बोला प्यारे लाल जी भला मोहब्बत कोई दुकान पर बेचने वाली वस्तु या मॉल है ? हमने कहा सर एक नेता जी ने राष्ट्रीय स्तर पर इसे लांच किया है। बैंक मैनेजर बोले प्यारेलाल जी आप बहुत प्यारे और भोले आदमी लगते हैं। नेताओं के लिए मोहब्बत दुकान की वस्तु हो सकती है। हमारे और तुम्हारे लिए नहीं। हमारे लिए ये तो पूजा की वस्तु है। मोहब्बत बिकती नहीं है। बैंक मोहब्बत की दुकान के लिए लोन नहीं देते हैं।  क्योंकि यदि मोहब्बत की दुकान के लोन मिलने लगा तो समाज नफरत से भर जाएगा। जगह जगह मोहब्बत की गुमटियां खुल जाएगी।

प्यारेलाल जी आपने पहचान फिल्म का वह गाना तो सुना ही होगा जिसमे कहा गया कि पैसे की पहचान यहां इंसान की कीमत कोई नहीं बच के निकल जा इस बस्ती से करता मोहब्बत कोई नहीं। ऐसी दुकानों पर शरीर बिकते हैं मोहब्बत नहीं। मोहब्बत कभी बिकती नहीं है, वो कुर्बानी देती है और जो बिकती है वह मोहब्बत नहीं वह स्वार्थ होता है, लालच होता है और होती है हवस। शायद यही कारण है कि राष्ट्रीय स्तर पर जो मोहब्बत की दुकान खोलने की घोषणा हुई थी वहां आज मोहब्बत के नाम पर नफरत का सामान और हाइड्रोजन बम, एटम बम और तमंचा कट्टा दिखाए जा रहे हैं। वो दुकानें खुलने के पहले ही फ्लॉप हो गईं।

प्यारेलाल जी को यह बात समझ में आई। घर पर पत्नी को बताया कि उन्होंने मोहब्बत की दुकान का ख्याल छोड़ दिया है। उनकी पत्नी बोलीं जो तुम मुझ से नहीं कर सके उसकी दुकान खोलने चले थे। बुड़बको के चक्करों पड़ोगे तो एक दिन मोहब्बत बेचने के चक्कर में इमोरल ट्रैफिक एक्ट में जेल चले जाओगे। मोहब्बत की खरीद फरोख्त का काम तो रेड लाइट एरिया में होता है। इन्हें बेचने वाली यदि औरत होती है तो उसे मौसी कहते हैं और पुरुष हुआ तो उसे दल्ला कहते हैं।

श्रीमती जी ने कहा मोहब्बत की दुकान के चक्कर में मत पड़ों। मोहब्बत दिलों में मिलती है दुकानों में नहीं। यह विदेशों में दुकानों में मिलती होगी। यह तो विदेश जाने वाले नेता बता सकते हैं। हम तो उस दिल्ली तक नहीं गए जहां कहते हैं कि वहां दिल वाले रहते हैं। यह पता नहीं है कि उन दिलों में कभी दर्द भी होता है या नहीं। दस - बारह साल पहले इसी दिल्ली में एक टोपी बाज आया था। उसे दिल्ली के दिल वालों अपना दिल और दिमाग़ दिया और वो जालिम दिल के बदले में दगा दे कर चला गया। यहां के बाशिंदों ने भी उसे कहीं का नहीं छोड़ा उसी की टोपी छीन कर भगा दिया। 

श्रीमती जी बोलीं सुनो जी एक आइडिया दिमाग़ में आया है। हम चौंके, मन ही मन में सोचा दिमाग और इनमें। परंतु दिल की बात जुबान पर रोक कर बोले हां - हां बताओ। श्रीमती जी बोलीं हमने विवाह के पहले एक फिल्म देखी थी। 1983 में  आई उस फिल्म का नाम था किस्मत, उसका एक गाना याद आ रहा है। उसमें एक गाना था कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला...। सुनो क्यों न हम वही मोहब्बत वाला कजरा बनाए। यही मोहब्बत वाला कजरा सब को लगाएं। हमने पूछा क्या यह चलेगा ?

तो पत्नी जी बोलीं क्यों नहीं। नेता लोग तो जनता की आंखों में चुनाव दर चुनाव घोषणा पत्रों के नाम पर धूल झोंक रहे हैं, फिर हम तो मोहब्बत वाला कजरा ही आंजेंगे । 

भाइयों अपन तो वही मोहब्बत वाला कजरा ढूंढ रहे हैं। एक बार मिल गया तो फिर सबकी आंखों में वही कजरा लगा देंगे। तब देश में मोहब्बत ही मोहब्बत की बाढ़ सी आ जाएगी। मोहब्बत की बाढ़ आने पर हम पाकिस्तान की तरफ जाने वाली सिंधु नदी के बांध के गेट भी खोल देंगे ताकि पड़ोस में फैली नफरत को हटा कर मोहब्बत पहुंचा सकें। हो सकता है वहां भी जेश ए मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन जेश ए मुहब्बत में तब्दील हो जाएं।

श्रीमती जी ने कहा लेडीज़ को कजरा में लगा दूंगी जेंट्स को तुम लगा दइयों। हमने कहा लेडीज़ को भी कजरा हम ही लगाएंगे। आजकल महिलाओं ने स्त्री पुरुषों में भेदभाव करना बंद कर दिया है। अब मोदी जी ने उन्हें इतनी सशक्त कर दिया है कि महिलाएं को अब पुरुषों से कजरा, गजरा लगवाने में कोई एतराज नहीं बचा है। उन्होंने शर्म के प्रतीक दुपट्टे को उतार कर फेंक दिया है। अब वह पुरुषों की बराबरी से सीना तान कर चलतीं हैं।

उन्होंने पुरुषों के परिधान अपना लिए हैं और पुरुष महिलाओं ने जो दुपट्टे उतार फेंके थे वे अपने कुर्तों पर अपने गले में डाल कर घूम रहे हैं। नेताओं ने उन्हीं पर अपने चुनाव चिह्न छपवा लिए हैं।लेडीज़ टेलर्स के बोर्ड के नीचे पुरुष लेडीज़ के नाप लेते हैं। इसमें न पुरुष को एतराज़ ने लेडीज़ को। यही समानता है।

श्रीमती जी बोलीं कजरा मोहब्बत वाला तो छोड़ो, मेरी मानो, तुम तो चाट और पानी पूरी या गोल गप्पों की छोटी सी दुकान खोल लो और उसका नाम रखो मोहब्बत का खोमचा। खूब भीड़ आएगी और खोमचे पर महिलाओं के चटखारे के साथ जब अपना गोल गोल मुंह खोल कर गोल गप्पे खा कर सी.. सी की आवाजें गूंजेंगी तो महिलाओं की लंबी लाईनें लग जाएंगी और में गोल गप्पों के लिए मोहब्बत की मिठास वाला पानी बनाया करूंगी। तुम्हारा मोहब्बत वाला खोमचा  सोशल मीडिया के जरिए देश और दुनियां में वायरल हो जाएगा। और लोग ढूंढते चले आएंगे वो कहां है खोमचा मोहब्बत वाला। 

( लेखक व्यंग्यकार और राजनैतिक समीक्षक हैं। )

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