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100 रुपये का पानी, 700 रुपये की कॉफी', मल्टीप्लेक्स की ऊंची कीमतों पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी'Water for Rs 100, coffee for Rs 700': Supreme Court's big comment on high prices in multiplexes

 सुप्रीम कोर्ट ने मल्टीप्लेक्स में चीजों की ऊंची कीमतों पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि पानी 100 रुपये और कॉफी 700 रुपये में बेचना अनुचित है। कोर्ट ने चेताया कि अगर कीमतें नहीं घटीं तो सिनेमा हॉल खाली हो जाएंगे। मामला कर्नाटक सरकार की 200 रुपये टिकट सीमा से जुड़ा है


नई दिल्ली: फिल्म देखने का शौक इन दिनों आम आदमी की जेब पर भारी पड़ता जा रहा है। टिकट के बाद पॉपकॉर्न, कोल्ड ड्रिंक और पानी जैसी साधारण चीजों के दाम भी मल्टिप्लेक्स में आसमान छू रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मल्टीप्लेक्स की मनमानी कीमतों पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर यही हाल रहा तो सिनेमा हॉल खाली हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे। वे कर्नाटक सरकार के उस फैसले पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें फिल्म टिकट की कीमत 200 रुपये तक सीमित करने का आदेश दिया गया है। मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इस फैसले को चुनौती दी है।

'हॉल खाली हो जाएं तो होने दीजिए'

मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस नाथ ने कहा, 'पानी की बोतल के 100 रुपये और कॉफी के 700 रुपये लिए जा रहे हैं। इन कीमतों को नियंत्रित करना चाहिए। सिनेमा पहले से ही गिरावट पर है। लोगों को आने-जाने में मजा आए, इसके लिए कीमतें उचित रखिए, वरना हॉल सूने हो जाएंगे।' मल्टीप्लेक्स की तरफ से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने बहस की। उन्होंने कहा, 'ताज होटल में कॉफी 1000 रुपये की मिलती है, क्या उसे भी फिक्स किया जाएगा? यह तो चॉइस की बात है। हॉल खाली हो जाएं तो होने दीजिए। यह सिर्फ मल्टीप्लेक्स के लिए है। लोग साधारण सिनेमा हॉल में जा सकते हैं। यहीं क्यों आना है?

साधारण हॉल अब बचे ही कहां हैं?'

मुकुल रोहतगी की दलील पर जस्टिस नाथ ने कहा, 'साधारण हॉल अब बचे ही कहां हैं? हम डिवीजन बेंच के साथ हैं, टिकट 200 रुपये ही रहना चाहिए।' यह मामला मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया एंड अदर बनाम कर्नाटक स्टेट फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड अदर्स का है। मल्टीप्लेक्स मालिक कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें राज्य सरकार के 200 रुपये की टिकट सीमा को सही ठहराया गया है। कर्नाटक सरकार का मकसद फिल्मों को आम लोगों की पहुंच में लाना है, क्योंकि खर्च बढ़ता जा रहा है। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने टिकट कैप को फिलहाल रोक दिया है, लेकिन सख्त शर्तें लगाई हैं।

हाई कोर्ट ने लगाईं हैं ये सख्त शर्तें

कोर्ट ने कहा है कि मल्टीप्लेक्स को हर टिकट का ऑडिटेबल रिकॉर्ड रखना होगा, ऑनलाइन-ऑफलाइन खरीदारों को ट्रैक करना होगा और चार्टर्ड अकाउंटेंट से समय-समय पर अकाउंट वेरिफाई करवाना होगा। कोर्ट का कहना है कि अगर राज्य केस जीत जाता है तो इससे उपभोक्ताओं को रिफंड मिल पाएगा। रोहतगी ने हाई कोर्ट की शर्तों को 'अव्यवहारिक' बताते हुए कहा, 'जजों का मानना है कि टिकट काउंटर से बिकते हैं। टिकट तो बुकमायशो से बिकते हैं, उनके पास डिटेल्स होती हैं। मैं आईडी नहीं रखता। टिकट खरीदने कौन आईडी कार्ड लेकर जाता है?' राज्य की तरफ से वकील ने बचाव किया कि ये शर्तें सिर्फ 'रिफंड की व्यवस्था' के लिए हैं। अगर कोई आज 1000 रुपये देता है और राज्य कल जीत जाता है, तो उसे 800 रुपये वापस मिलेंगे।

पहले भी हुआ है ऊंची कीमत पर हंगामा

बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब मल्टीप्लेक्स की कीमतों पर हंगामा हुआ हो। इस बारे में सोशल मीडिया से लेकर पान की दुकानों तक बात होती रही है। लोगों का कहना होता है कि बाहर 50 रुपये में मिलने वाली कोल्ड ड्रिंक अंदर 400 रुपये प्लस टैक्स में बिकती है। आधी लीटर पानी की बोतल 100 रुपये की। टिकट पर 400 से 1200 रुपये खर्च करने के बाद ये कीमतें खुशी छीन लेती हैं। मुंबई के ट्रेड एनालिस्ट हिमेश मनकड़ ने एक्स पर लिखा, 'मल्टीप्लेक्स चेन आम आदमी की सिनेमा जाने की आदत को मार रही हैं। ज्यादातर लोग कीमतों की वजह से हॉल जाने से कतराते हैं। दर्शकों को बड़े पर्दे पर आमंत्रित करने की बजाय, वे ऊंची कीमतों से भगा रहे हैं।'

सेलिब्रिटी भी कर चुके हैं शिकायत

साधारण लोग ही नहीं, सेलिब्रिटी भी शिकायत कर चुके हैं। फिल्ममेकर और प्रोड्यूसर करण जौहर ने पिछले साल कहा था कि 4 लोगों का फिल्म आउटिंग अब 10,000 रुपये का पड़ता है। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री की 2023 की उपभोक्ता सर्वे के मुताबिक, मल्टीप्लेक्स में औसत खर्च प्रति व्यक्ति 1800 रुपये है। इससे मध्यम वर्गीय परिवार मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने से परहेज कर रहे हैं और महामारी के बाद फुटफॉल में 15 फीसदी की गिरावट आई है।फिल्म इंडस्ट्री नेटफ्लिक्स, डिज्नी+हॉटस्टार और दर्जनों ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से मुकाबला कर रही है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से आने वाले सालों में फिल्म देखना जेब पर कम बोझ डाल सकता है।

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