Top News

गीता जयंती (1 नवम्बर) विशेष : आत्मज्ञान, कर्तव्य और कर्मयोग का अनंत संदेश Geeta Jayanti (November 1) Special: The eternal message of self-knowledge, duty and karma yoga

 ✍️ लेखक: सी.ए. तेजेश सुतरिया

भारत की अध्यात्मिक परंपरा में गीता जयंती का दिवस अत्यंत पवित्र माना जाता है। आज ही के दिन कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को वह दिव्य उपदेश दिया था, जिसे हम भगवद्गीता के नाम से जानते हैं — एक ऐसा ग्रंथ जिसने न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के चिंतन को दिशा दी है।


गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का सार है। जब जीवन के बीच द्वंद्व, भ्रम, तनाव, निर्णयहीनता या भय खड़ा हो जाता है, तब गीता हमें भीतर की शक्ति जगाने का मार्ग दिखाती है। यह बताती है कि मनुष्य की विजय बाहरी नहीं, बल्कि अंतर्यात्रा से प्रारम्भ होती है

गीता का महामंत्र :

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”

— भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 47

अर्थ:

मनुष्य को केवल अपने कर्तव्य के पालन का अधिकार है, उसके फल पर नहीं।

फल की चिंता मन को कमजोर करती है, जबकि निःस्वार्थ कर्म साधक को शक्ति और आत्मविश्वास देते हैं। आज के समय में जब व्यक्ति परिणाम, लाभ, तुलना और सामाजिक दबावों में उलझ जाता है, तब यह श्लोक हमें मुक्त करता है— कि कर्म करो, शुद्ध मन से, और फल को ईश्वर की इच्छा पर छोड़ 

गीता जयंती का संदेश

1. *जीवन में स्पष्टता और धैर्य आवश्यक है:* अर्जुन की तरह आज हर व्यक्ति किसी न किसी चुनौती के सामने खड़ा है।

गीता हमें सिखाती है कि भ्रम में नहीं, स्थिरता में समाधान है।

2. *सही निर्णय के लिए मन का शांत होना जरूरी है* : 

कृष्ण ने अर्जुन को पहले शांत मन, फिर सही दृष्टि, और अंत में साहसिक कर्म का मार्ग दिया।

आज भी यही क्रम जीवन को सफल बनाता है।

3. कर्तव्य और नैतिकता हमारे चरित्र की पहचान है 

गीता बताती है कि सच्चा धर्म

“जो सही है, वही करना; और जो गलत है, उससे निडर होकर दूर रहना।”

4. सफलता कर्मयोग से आती है, न कि भय या उम्मीद से :

फल की चिंता मन को जकड़ती है, जबकि निष्काम कर्म जीवन में आनंद, ऊर्जा और निरंतर प्रगति लाता है

आधुनिक समाज के लिए गीता का महत्व : 

आज का समाज तेज़ गति, प्रतिस्पर्धा और अनिश्चितताओं से भरा है।

ऐसे समय में गीता हमें यह सिखाती है—

कठिनाइयाँ स्थायी नहीं हैं।

धैर्य और परिश्रम से हर परिस्थिति बदली जा सकती है।

मनुष्य की असली शक्ति बाहर नहीं, उसके भीतर है।

जीवन कर्म से चलता है, शिकायत से नहीं।

गीता का अध्ययन मतलब —

अपने अंदर छिपे दीपक को जगाना।

गीता जीवन का दिव्य मार्गदर्शन है

गीता जयंती हमें याद दिलाती है कि जीवन का पथ संघर्षों से भरा हो सकता है, लेकिन यदि मन में ज्ञान, हृदय में विश्वास और कर्म में निष्ठा हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।

आज के दिन गीता का संदेश प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचे —

कि हम भय नहीं, प्रकाश चुनें; संशय नहीं, आत्मविश्वास चुनें; और निष्क्रियता नहीं, कर्मयोग का मार्ग चुनें।

Post a Comment

Previous Post Next Post