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तुलसी विवाह: परंपरा और आधुनिकता का संगमTulsi Vivah: A Confluence of Tradition and Modernity

 ✦ जब आस्था मिलती है हरियाली से — तुलसी विवाह बन जाता है प्रकृति और भक्ति का उत्सव ✦

लेखक: CA तेजेश सुतरिया, इंदौर

इतिहास की झलक

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी — जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है — हिंदू संस्कृति में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन होता है, जो धरती पर भक्ति, प्रेम और नवजीवन के संगम का प्रतीक है।


पौराणिक कथा के अनुसार, देवी तुलसी (वृंदा) विष्णुभक्त असुरराज जालंधर की पत्नी थीं। उनकी अटूट निष्ठा के कारण देवताओं को जालंधर पर विजय प्राप्त नहीं हो पा रही थी। तब भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा की तपस्या भंग की, जिससे जालंधर मारा गया।

वृंदा के श्राप से विष्णु शालिग्राम पत्थर बन गए, और वृंदा ने स्वयं तुलसी के रूप में जन्म लिया। बाद में भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह कर इस पवित्र बंधन को अमर बना दिया।

इसी से यह परंपरा देवउठनी एकादशी पर आरंभ हुई, जो देवताओं के “चातुर्मास” विश्राम के बाद शुभ कार्यों के पुनः आरंभ का प्रतीक है।

आधुनिक युग में अर्थ और नया दृष्टिकोण : 

ज जब जीवन की रफ़्तार तेज़ है और लोग प्रकृति से दूर हो रहे हैं, तब तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के रिश्ते की पुनः स्थापना का प्रतीक बन गया है।

जहाँ पहले घर-आंगन में तुलसी चौरा होता था, अब शहरों के फ्लैट्स में छोटे गमलों में यह परंपरा निभाई जाती है।

पर भावना वही है —

हरियाली में ही ईश्वर का वास है।”

आधुनिक युग में लोग तुलसी विवाह को इको-फ्रेंडली वेडिंग कॉन्सेप्ट से भी जोड़ रहे हैं —

🌿 मिट्टी के दीये,

🌿 प्राकृतिक फूलों की सजावट,

🌿 बिना प्लास्टिक के आयोजन,

और बच्चों को तुलसी के पौधे उपहार में देना —

यह सब नयी पीढ़ी को भक्ति के साथ पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का संदेश दे रहे हैं।


आजकल एक नया और सुंदर ट्रेंड भी देखने को मिल रहा है — लोग उपहार में तुलसी का पौधा देने लगे हैं।

कई विवाह समारोहों में अतिथियों को “ग्रीन गिफ्ट” के रूप में तुलसी का पौधा भेंट किया जाता है,

जो न केवल शुभता का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है।

वास्तव में, यह परंपरा का आधुनिक रूप है — जहाँ आशीर्वाद हरियाली के साथ दिया जाता है। 🌿


आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व :


तुलसी विवाह का अर्थ है — अहंकार और भक्ति का मिलन।

भगवान विष्णु संरक्षण का प्रतीक हैं, और तुलसी समर्पण का।

जब यह दोनों मिलते हैं, तो जन्म लेता है संतुलन — जो आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।


जहाँ पहले तुलसी विवाह को कन्यादान के समान महत्व दिया जाता था, आज इसे महिलाओं की श्रद्धा, शक्ति और सहनशीलता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

यह त्योहार हमें सिखाता है कि सच्चा विवाह केवल दो शरीरों का नहीं, बल्कि दो आत्माओं और दो संस्कृतियों का संगम होता है।


परंपरा और हरियाली का संगम :


तुलसी विवाह हमें यह याद दिलाता है कि परंपराएँ कभी पुरानी नहीं होतीं, वे तो बस अपना रूप बदलती हैं।

चाहे गमले में उगी तुलसी हो या आँगन में चौरा — भाव वही रहता है, बस माध्यम बदल जाता है।


आज जब कंक्रीट के जंगलों में हरियाली सिमटती जा रही है, तब तुलसी केवल एक पौधा नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते की जीवित डोर बन गई है।

तुलसी का हर पत्ता जीवन का संदेश देता है — साँसों में ऑक्सीजन, घर में सकारात्मकता और मन में शुद्धता।

विज्ञान भी मानता है कि तुलसी वातावरण को शुद्ध करती है, तनाव कम करती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।


इसीलिए आज के ग्रीन कॉन्सेप्ट वाले जीवन में तुलसी का स्थान और भी महत्वपूर्ण हो गया है —

जहाँ हर घर, हर बालकनी और हर ऑफिस डेस्क पर एक छोटा-सा तुलसी पौधा हमें प्रकृति से जोड़ने की ताकत देता है।


तुलसी विवाह का सच्चा अर्थ :

तुलसी विवाह केवल पूजा नहीं, बल्कि धरती और जीवन के प्रति हमारी जिम्मेदारी का संकल्प है।

जब हम तुलसी के सामने दीप जलाते हैं, तो वह केवल भक्ति की लौ नहीं होती —

वह एक संदेश होता है कि “हम हरियाली को, जीवन को और अपनी परंपरा को जीवित रखना चाहते हैं।”

और इसीलिए —

जब तक तुलसी की हरियाली हमारे घरों में मुस्कुराती रहेगी,

जब तक उसके पत्तों की खुशबू हमारे मन को शांति देती रहेगी,

तब तक यह परंपरा जीवित रहेगी —

आस्था में भी, और हर सांस में भी। 🌿

🖋️ लेखक: CA तेजेश सुतरिया, इंदौर

(लेखक पर्यावरण और संस्कृति आधारित अध्यात्मिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं)

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