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सहारा कंपनी की संपत्तियां अडानी प्रॉपर्टीज को बेचने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और SEBI से मांगा जवाब The Supreme Court has sought responses from the Centre and the Securities and Exchange Board of India (SEBI) on a petition seeking the sale of Sahara's assets to Adani Properties.

 

सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार और सेबी (SEBI) से सहारा इंडिया कमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा दायर उन आवेदनों पर जवाब मांगा है, जिनमें महाराष्ट्र स्थित अम्बी वैली और लखनऊ स्थित सहारा सिटी सहित 88 संपत्तियों को अदाणी प्रॉपर्टीज प्रा. लि. को बेचने की अनुमति मांगी गई है। न्यायालय ने सहारा को निर्देश दिया कि वह अपने आवेदन में वित्त मंत्रालय और कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs) को पक्षकार बनाए।



चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुन्दरश की खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया कि जिन पक्षों के इन संपत्तियों पर दावे हैं, वे सीनियर एडवोकेट शेखर नफाडे, जो मामले में अमिकस क्यूरी (amicus curiae) हैं, के समक्ष अपने दावे प्रस्तुत करें। अमिकस से कहा गया कि वे एक चार्ट तैयार करें, जिसमें बताया जाए कि कौन सी संपत्तियां विवादित हैं, कौन सी मुक्त हैं, और किन संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।

अदालत ने सहारा को निर्देश दिया कि वह अपने कर्मचारियों के दावों की भी जांच करे। केंद्र सरकार, सेबी और अमिकस को सहारा के आवेदन पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया। इस मामले की अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी। अपने आवेदन में कंपनी ने कहा कि सेबी की ओर से संपत्तियों की बिक्री के कई प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिली है और संस्थापक सुब्रत रॉय के निधन के बाद समूह की संपत्तियों को प्रबंधित व निस्तारित करने की क्षमता कमजोर हो गई है। सहारा ने कहा कि उसकी कई संपत्तियां विभिन्न न्यायिक आदेशों के कारण रोकी गई हैं, इसलिए बिक्री की अनुमति दी जाए ताकि प्राप्त राशि से बकाया दायित्वों का भुगतान किया जा सके। सहारा ने यह भी बताया कि अदाणी प्रॉपर्टीज के साथ 88 संपत्तियों की बिक्री के लिए एक टर्म शीट (term sheet) पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।

सहारा की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि उन्होंने एक समग्र योजना प्रस्तुत की है, जिसके तहत इन संपत्तियों की बिक्री से लगभग ₹12,000 करोड़ प्राप्त होंगे और यह राशि बकाया दायित्वों के भुगतान के लिए जमा कराई जाएगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्रस्ताव उचित प्रतीत होता है, लेकिन इसे केंद्र सरकार द्वारा विचार की आवश्यकता है। उन्होंने संबंधित मंत्रालयों — वित्त मंत्रालय और कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय — के सचिवों को मामले में पक्षकार बनाने का अनुरोध किया।

बशर्ते बिक्री मूल्य बाजार मूल्य के 90 प्रतिशत से कम न हो, और जब तक पूरा लेनदेन न्यायालय की देखरेख में रहेगा, सेबी के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होगी। सेबी ने बताया कि सहारा समूह पर अब भी सेबी-सहारा खाते में ₹9000 करोड़ का बकाया है। सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने बताया कि सहारा के आवेदन में जिन 88 संपत्तियों का उल्लेख है, उनमें से कई पहले से विवादित हैं या अन्य पक्षों के साथ समझौतों के अधीन हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि दावों की जांच के लिए एक अमिकस क्यूरी नियुक्त किया जाए। 

अदाणी प्रॉपर्टीज की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि उनका मुवक्किल सभी 88 संपत्तियों को एक साथ खरीदने को तैयार है, भले ही उन पर दावे हों, ताकि आगे के विवादों से बचा जा सके। अदालत ने कहा कि विभिन्न पक्षों के हित टकरा रहे हैं, इसलिए किसी भी स्वीकृति से पहले विस्तृत जांच आवश्यक है। यह आवेदन सहारा-सेबी मामले से संबंधित है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सहारा संस्थाओं को उन निवेशकों को हजारों करोड़ रुपये लौटाने का निर्देश दिया था, जिन्होंने ऑप्शनली फुली कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (OFCDs) में निवेश किया था। वर्ष 2012 में अदालत ने सहारा को ₹24,000 करोड़ से अधिक की राशि सेबी के पास जमा कराने का आदेश दिया था ताकि निवेशकों को भुगतान किया जा सके। वर्षों से सहारा का कहना है कि उसने बड़ी राशि जमा करा दी है, लेकिन सेबी का कहना है कि अब भी ₹9000 करोड़ से अधिक बकाया है। हाल ही में, 12 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने सेबी-सहारा खाते से ₹5000 करोड़ निवेशकों को वितरित करने की अनुमति दी थी।

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