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विकास की सवारी Ride on development

सितंबर का महीना देश के ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए सुनहरा साबित हुआ है, तो इसकी वजह सिर्फ त्योहारी उत्साह नहीं, बल्कि इसके पीछे कुछ ठोस आर्थिक कारण भी हैं। इस दौरान घरेलू दोपहिया वाहनों की बिक्री 6.7 फीसदी की वार्षिक वृद्धि के साथ 21.60 लाख यूनिट के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची, तो यात्री वाहनों की बिक्री भी 3.72 लाख यूनिट के सर्वकालिक उच्चांक पर रही। ट्रैक्टर एंड मेकनाइजेशन एसोसिएशन (टीएमए) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान 1.46 लाख से भी ज्यादा ट्रैक्टर बिके, जो अब तक का सर्वश्रेष्ठ आंकड़ा है।ये आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हैं, जो दर्शाते हैं कि उपभोक्ता मांग में सुधार हो रहा है और ग्रामीण व शहरी, दोनों क्षेत्रों में खरीदारी की क्षमता बढ़ रही है। हालांकि, श्राद्ध पक्ष के चलते सितंबर की सुस्त रफ्तार को देखते हुए इस तरह का कोई रिकॉर्ड दूर की कौड़ी ही लग रहा था, लेकिन जीएसटी की दरों में कटौती की घोषणा के बाद पूरी तस्वीर ही बदलने लगी।



 इसके अतिरिक्त, आयकर स्लैब में मिली छूट से भी मध्यवर्ग को वास्तविक बचत का अवसर मिला। जब मध्यवर्ग के हाथ में अधिक खर्च योग्य आय आती है, तब उसका पहला असर ऑटो सेक्टर पर ही दिखता है। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष देश भर में बेहतर मानसून ने फसलों की पैदावार और किसानों की आय, दोनों को मजबूती दी है।फसल बीमा योजनाओं की पहुंच और ग्रामीण सड़कों तथा बुनियादी ढांचे में निवेश ने भी किसानों को नए ट्रैक्टर खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया है। ट्रैक्टर बिक्री में आई मजबूती को केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि ग्रामीण समृद्धि का भी सूचक माना जा सकता है, जो बताता है कि गांव और यहां के लोग, विकास के सक्रिय चालक बने हुए हैं। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सात फीसदी से अधिक का योगदान देने वाला ऑटो क्षेत्र देश के औद्योगिक उत्पादन, रोजगार और कर संग्रह में भी बड़ा योगदान देता है। ऐसे में, दोपहिया, यात्री वाहन और ट्रैक्टर-तीनों श्रेणियों में एकसाथ वृद्धि दर्शाती है कि देश की घरेलू मांग-चालित अर्थव्यवस्था अब स्थिर गति पकड़ चुकी है।हालांकि, यह भी सच है कि आने वाले महीनों में वैश्विक टैरिफ युद्ध की दिशा, निर्यात बाजार की अनिश्चितता, कच्चे तेल की कीमतें और ब्याज दरों में संभावित बदलाव जैसी चुनौतियां इस गति को प्रभावित कर सकती हैं। फिर भी, घरेलू बाजार की मजबूती यह भरोसा देती है कि भारत का उपभोग तंत्र किसी भी बाहरी झटके को संतुलित करने में सक्षम है। सितंबर की वृद्धि को एक रिकॉर्ड के रूप में ही नहीं, बल्कि एक संकेत के रूप में भी देखा जाना चाहिए कि भारत अब परिवहन और ऊर्जा के नए युग में प्रवेश कर रहा है। 

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