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ऊर्जा मंत्री को सस्पेंड करने का अधिकार नहीं: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट No authority to suspend Energy Minister: Punjab-Haryana High Court


पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में टिप्पणी की है कि हरियाणा के ऊर्जा मंत्री को जिले की शिकायत निवारण समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए भी उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड (UHBVN) के किसी अधिकारी को निलंबित करने का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की एकल पीठ ने कहा कि राज्य के मनमाने कदम से जनता का विश्वास कम होता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि UHBVN के कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई केवल निगम के प्रबंध निदेशक द्वारा ही की जा सकती है क्योंकि वह संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए लागू सेवा नियमों के अनुसार एकमात्र सक्षम प्राधिकारी हैं।



यह मामला UHBVN में गुहला में तैनात उप-मंडल अधिकारी (SDO) से संबंधित है। एक शिकायतकर्ता बलविंदर सिंह ने आरोप लगाया कि अधिकारी ने उसके बेटे के मुर्गी फार्म के लिए स्थायी बिजली कनेक्शन देने के लिए रिश्वत मांगी थी। इस शिकायत पर कैथल की जिला शिकायत निवारण समिति की बैठक में जिसकी अध्यक्षता राज्य के ऊर्जा मंत्री कर रहे हैं, अधिकारी को निलंबित करने और उसके खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया गया। याचिकाकर्ता अधिकारी ने तर्क दिया कि DGC गैर-सांविधिक निकाय है जिसके पास सेवा मामलों से संबंधित कोई निर्देश पारित करने का अधिकार नहीं है। अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने की शक्ति केवल UHBVN के प्रबंध निदेशक के पास है।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों को स्वीकार करते हुए पाया कि ऊर्जा मंत्री ने DGC के अध्यक्ष के रूप में अपनी क्षमता से निलंबन के निर्देश दिए, जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था। कोर्ट ने जोर देकर कहा, "प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता को निलंबित करने की अनुशासनात्मक कार्रवाई केवल प्रतिवादी संख्या 7 (ऊर्जा मंत्री) द्वारा की गई घोषणा से प्रेरित प्रतीत होती है, जिसका कारण उनके पद का प्रभाव है। शिकायतकर्ता ने DGC के समक्ष शिकायत दर्ज की, जो गैर-सांविधिक निकाय है। इस संबंध में कोई कार्रवाई शुरू करने की शक्ति उसके पास नहीं है।"बेंच ने आगे कहा कि DGC अधिकतम उस शिकायत को सक्षम प्राधिकारी को आगे बढ़ा सकती थी। कोर्ट ने पाया कि मंत्री की घोषणा के बाद 24.10.2025 को जारी किया गया निलंबन आदेश स्वतंत्र रूप से विचार किए बिना जारी किया गया और यह मंत्री के प्रभाव से प्रेरित था।सविधान के अनुच्छेद 309 के तहत संवैधानिक योजना कोदोहराते हुए कोर्ट ने जोर दिया कि सेवा नियम कर्मचारियों को मनमानी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं। कोर्ट ने टिप्पणी की, "राज्य और उसके उपकरणों को इस तरह से कार्य करना चाहिए जो मनमानी से मुक्त हो, अन्यथा यह कानून के शासन में सार्वजनिक विश्वास को कम करता है।" हाईकोर्ट ने 13.10.2025 के निलंबन संचार और उससे उत्पन्न होने वाली किसी भी परिणामी कार्रवाई पर, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ दंडात्मक उपाय भी शामिल हैं, अगले आदेश तक रोक लगा दी। मामले की अगली सुनवाई अब 21 अप्रैल को होगी।

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