रवि उपाध्याय
बिहार विधानसभा चुनाव में प्रथम चरण के मतदान के लिए ठीक सात दिन और दूसरे चरण के मतदान के लिए 12 दिन बचे हैं। राज्य में चुनाव प्रचार अपने पूर्ण उरोज पर है। पिछले 15 सालों के रिकॉर्ड पर नजर दौड़ने से एक बात तो साफ़ है कि इन 15 सालों के दौरान 2010, 2015 और 2020 में बिहार में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में चाहे जो भी गठबन्धन जीता हो पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने हैं। एक बात एक दम साफ है कि बिहार में नीतीश कुमार है जहां सत्ता है वहां।
शायद यही कारण है कि पिछले लोकसभा चुनाव 2024 और इन दिनों हो रहे विधानसभा चुनावों के पूर्व तक राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र तथा महा गठबंधन के मुख्य मंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव यह प्रयास करते रहे कि किसी तरह चच्चा महा गठबंधन के साथ आ जाएं। बता दें कि 2013 और 2017 और 2022 में वे नीतीश कुमार के साथ सरकार में सत्ता सुख भोग चुके हैं। लालू प्रसाद यादव ने उक्त दोनों बार अपने दोनों पुत्रों में से छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री और बड़े बेटे तेज प्रताप को मंत्री बनवा दिया था। जब नीतीश कुमार पुनः लालू यादव द्वारा बनाए गए महा गठबंधन के साथ नहीं गए तो फिर दोनों बाप बेटों ने नीतीश कुमार के स्वास्थ और मानसिक स्थिति पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। उन्हें पलटू राम का संबोधन दिया।
यह रहा 20 साल का रिकॉर्ड
बिहार की सियासत में नीतीश कुमार की अनिवार्यता के लिए हमें पिछले 20 वर्षों का चुनावी इतिहास देखना होगा। एक समय सब्जियों में आलू की अनिवार्यता की तरह लालू प्रसाद यादव की तुलना आलू से की जाती थी। वह हर सब्जी में समा कर सबकी का स्वाद बढ़ा देता था। उसी तरह जिस सियासी गठबन्धन में लालू यादव होते थे वह मजबूत माना जाता था। सन् 2005 के बाद लगभग वही दर्जा अब नीतीश कुमार का हो गया।
इस दावे की प्रामाणिकता के लिए हम को 20 साल के चुनाव परिणामों को देखना होगा। लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के सत्ता काल के सन् 2005 में समाप्त होने के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव हुए। इन चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने 88 सीट पर जीत हासिल की। भाजपा ने 55 सीट हासिल की और जदयू तथा भाजपा के गठबन्धन ने बिहार में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। इसके बाद 2010 के चुनाव में इसी गठबन्धन ने फिर से प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई। इन चुनावों में जदयू और भाजपा ने मिलकर अभूतपूर्व ढंग से 242 सदस्य की विधानसभा में 206 सीटें जीत लीं। इन चुनावों में लालू प्रसाद की पार्टी राजद को 22 सीट मिलीं, यह संख्या 2005 से 10 कम थीं। राम विलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी को 03और कांग्रेस को 04 सीट ही मिल सकीं।
मोदी से रार - राजग से अलगाव
भाजपा ने जन 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा बना कर पेश करने की घोषणा की तो नीतीश कुमार बिचक गए और उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अपना 10 पुराना नाता तोड़ लिया और लालू यादव के महा गठबंधन के साथ हो गए। उस समय लालू यादव की पार्टी के विधायकों की संख्या महज 22 थी। जबकि जदयू के 115 विधायक थे। इस तरह दोनों ने मिलकर सरकार बनाई। दर असल नीतीश कुमार चाहते थे कि राजग की तरफ से उन्हें प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया जाए अथवा चुनाव उपरांत पीएम का चुनाव राजग के सांसदों में से चुना जाए।
2015 का विधानसभा चुनाव
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश ने लालू यादव की पार्टी के साथ महा गठबंधन कर चुनाव लड़ा जिसमे लालू की राजद को बंपर फायदा और वह इन चुनावों में 80 सीटें जीतने में सफल हुई। जबकि उसे 2010 में वह 22 सीट ही जीत सकी थी। इस तरह उसे 58 सीटों का बड़ा फायदा हुआ। बिहार के मतदाताओं को नीतीश का लालू यादव के साथ जाना पसंद नहीं आया और उनकी पार्टी 71 सीट ही जीत सकी जो पिछले 2010 के चुनाव में मिली सीटों से 44 सीट कम थीं। भाजपा ने इस चुनाव में अकेले चुनाव लड़ा और उसे पिछले चुनाव से 38 सीट कम मिलीं और उनकी संख्या घट कर 53 रह गईं। वहीं कांग्रेस को इन चुनाव में 27 सीट मिली जो पिछले 2010 के चुनावों से 23 अधिक थीं।
आरक्षण खत्म करने का प्रचार
2015 के चुनाव में भाजपा के हार का एक बड़ा कारण आरएसएस के सर संघ चालक मोहन भागवत का एक बयान था जिसमें उन्होंने मौजूदाआरक्षण की यह कहते हुए समीक्षा की बात की थी कि यह समीक्षा की जाए कि आरक्षण के कितना आरक्षित वर्ग के गरीबों को मिला है। उनका कहना था कि गरीबों का आरक्षण उसी वर्ग के संपन्न लोगों ने हड़प लिया है और गरीब उसने लाभ से वंचित है। लालू प्रसाद यादव ने इसे यह कह कर प्रचारित किया कि भाजपा को वोट दिया तो वह आरक्षण खत्म कर देगी। इसका लाभ राजद को मिला और वह बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन बैठी।
नीतीश कुमार की दूसरी पलटी
2015 के विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने 2017 में नीतीश कुमार ने अपने उपमुख्यमंत्री और लालू यादव के पुत्र के खिलाफ सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद एक बार फिर महागठबंधन को छोड़ कर राजग गठबंधन का दामन थाम कर पुनः मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
नीतीश कुमार की तीसरी पलटी
नीतीश कुमार ने तीसरी बार फिर 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में राजग के साथ चुनाव लड़ा। इन चुनावों में उनकी पार्टी 115 सीटों पर चुनाव लड़ी और वह 43 सीट जीत सकी। वहीं भाजपा 74 सीट जीती। जबकि 2015 के चुनावों में उसे 53 सीट पर कामयाबी मिली थी। लगभग दो साल तक महागठबंधन के साथ सरकार का नेतृत्व करने के बाद और लालू यादव और उप मुख्य मंत्री के साथ मतभेद और राजद नेताओं की मन मानी के चलते वे पुनः एक बार वे राजग गठबन्धन में शामिल हो कर मुख्य मंत्री बन गए।
नीतीश कुमार की चौथी पलटी
सन् 2022 में एक बार फिर नीतीश कुमार राजग गठबन्धन को छोड़ कर राजद - कांग्रेस के महा गठबन्धन के साथ चले गए। वहां फिर एक बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन जब उन्हें इण्डिया गठबन्धन का संयोजक नहीं बनाया गया तो वे पुनः महा गठबंधन को छोड़ कर राजग में लौट आए और फिर भाजपा के पार्टनरशिप में मुख्य मंत्री पद की कुर्सी संभाल ली।
बार बार माफ़ी
नितीश कुमार अटल जी के समय 2003 से आज 2025 तक भाजपा के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ रहे हैं। भाजपा नेता नीतीश कुमार को राजग का स्वाभाविक साथी मानती है। 2024 के पहले जब पुनः राजग में लौटे तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी के मंचों पर एक से अधिक बार पलटी मारने पर माफ़ी मांगी और अब आगे कहीं भी न जाने की कसमें खाईं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वह अपने पलटी न मारने के प्रण पर अटल रहेंगे।
नीतीश हैं जहां सरकार है वहां
इन बीस साल में देखा गया है कि जहां भी जिस भी गठबन्धन के साथ नीतीश कुमार और जदयू रही है वही गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रहा है। इसी के चलते 2005 से 2025 तक हुए चार विधानसभा चुनावों के बाद जो भी सरकारें बनीं उन सबके मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ही रहे हैं। बिहार में नीतीश कुमार अकेले ऐसे मुख्य मंत्री हो गए हैं जो लगातार 20 साल तक मुख्य मंत्री रहे हो।
तेजस्वी नहीं बन सकेंगे मुख्य मंत्री
जिस तरह से बिहार का सियासी माहौल है उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनावों के बाद फिर एक बार राजग की सरकार बनेगी और ऐसी उम्मीद लग रही है कि नीतीश कुमार ही बिहार के अगले मुख्य मंत्री होंगे।
जहां तक तेजस्वी यादव के मुख्य मंत्री बनने की बात है तो यह कहा जा सकता है कि यदि राजद - कांग्रेस नीत महा गठबंधन बना भी तो वह कांग्रेस पर निर्भर होगा कि मुख्यमंत्री कौन होता है।
चुनाव प्रचार में राहुल गांधी ने तेजस्वी को मुख्य मंत्री बनाने के सवाल पर मुंह नहीं खोला है। राजद और लालू प्रसाद यादव के दवाब के चलते कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत ने तेजस्वी के सीएम चेहरा होने की बात कही। परंतु राहुल गांधी आज तक इस मामले में मौन साधे हुए हैं। यदि कांग्रेस बिहार चुनाव में 30, 35 सीट जीत सकी तो वह सरकार बनाने में किंग मेकर की महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
आम आदमी साफ
अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी ने बिहार में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी पर वह दोनों चरणों के नामांकन की तिथि निकल जाने के बाद भी केवल 99 उम्मीदवारों की ही घोषणा कर सकी है लेकिन उनकी चुनावों में उपस्थिति नाम मात्र भी नहीं दिखाई दे रही है।
इसी तरह प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज पार्टी 116 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इस प्रति को कोई चमत्कार की उम्मीद नहीं है। पार्टी अधिकतम 10, 15 सीट सकती है। आम आदमी पार्टी के रिकॉर्ड जमानतें जब्त हो सकतीं हैं। पार्टी का उद्देश्य राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे को बनाए रखने के लिए वोट प्रतिशत बढ़ सके।
बिहार में पहले चरण का मतदान आगामी 6 नवम्बर को और दुसरे चरण का मतदान 11 नवम्बर को होगा। चुनाव मतगणना और रिजल्ट 14 नवम्बर को घोषित किया जाएगा। 20 नवम्बर के पहले नई सरकार का गठन हो जाएगा।

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