अमेय बजाज
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह भारतीय अध्यात्म, स्थापत्य, और रहस्य का ऐसा संगम है जिसने दुनिया के वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और श्रद्धालुओं—सभी को अचंभित किया है।
मंदिर के नीचे फैली हुई भूमिगत संरचनाओं में से एक ऐसा तहखाना है, जिसे कभी पूरी तरह नहीं खोला गया। इसे मंदिर के इतिहास का “सबसे गुप्त द्वार” कहा जाता है। वह द्वार, जो सोने और हीरों के खजानों से कहीं अधिक गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए है — एक ऐसा द्वार, जो स्वयं भगवान विष्णु की शांति का रक्षक बताया जाता है।
१. दिव्यता की नगरी – पद्मनाभस्वामी का नगर
“तिरुवनंतपुरम” नाम का अर्थ ही है — “भगवान अनंत का शहर”।
यह वही भगवान हैं, जिनके शेषनाग पर विराजमान रूप को श्री पद्मनाभस्वामी के रूप में पूजा जाता है।
यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन विष्णु मंदिरों में से एक माना जाता है। इसकी चर्चा संगम काल के तमिल ग्रंथों और पुराणों में मिलती है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु शेषनाग के सहस्र फनों पर शयन करते हुए हैं — एक हाथ में कमल, दूसरे में शंख और चक्र लिए हुए।
लेकिन मंदिर का रहस्य केवल गर्भगृह तक सीमित नहीं।
वास्तव में, इसका सबसे बड़ा आकर्षण उसके भूमिगत तहखाने हैं — विशेषकर वह एक तहखाना जो आज तक खुला नहीं।
२. खजानों के बीच एक अनखुला रहस्य
साल 2011 में जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर के तहखानों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो वहां से ऐसे खजाने निकले जिन्हें देखकर विश्व स्तब्ध रह गया।
सोने की मूर्तियाँ, हीरे-मोती जड़े मुकुट, प्राचीन आभूषण, सिक्के, और अनमोल कलाकृतियाँ — जिनकी कीमत अरबों डॉलर आँकी गई।
फिर भी एक तहखाना ऐसा रहा, जिसे विशेषज्ञों, सुरक्षा बलों, या पुजारियों—किसी ने भी खोलने का साहस नहीं किया।
उस तहखाने का द्वार अब भी सील है, और स्थानीय परंपरा कहती है —
“यह द्वार केवल मंत्रबल से ही खुल सकता है, न कि किसी मानव के बल से।”
३. रहस्यमय द्वार और सर्प-चिह्न
इस द्वार का दृश्य स्वयं में भय और श्रद्धा दोनों उत्पन्न करता है।
भारी लोहे का बना यह द्वार जटिल ताले और परस्पर फंसे जंजीरों से ढका है। उसके ऊपर उकेरे गए हैं सर्पों के प्रतीक — नागों के कुंडलित चित्र, जो इस बात का संकेत देते हैं कि द्वार किसी साधारण मानव के लिए नहीं है।
स्थानीय मान्यता है कि इस द्वार पर “नाग-बंधन” (Divine serpent seal) लगा हुआ है — अर्थात् इसे केवल वही खोल सकता है जो उस मंत्र का ज्ञाता हो जो नागदेवों को शांत कर सके।
कहा जाता है कि यदि किसी ने बलपूर्वक इसे खोलने की कोशिश की, तो विनाशकारी घटनाएँ घट सकती हैं —
“समुद्र का जल उमड़ पड़ेगा, और सम्पूर्ण त्रावणकोर राज्य डूब जाएगा।”
यह सुनने में किंवदंती लग सकता है, पर सदियों से यह कथा लोगों के हृदय में भय और आस्था दोनों के रूप में जीवित है
४. इतिहास की परतों में दबी सच्चाई
इतिहासकार बताते हैं कि यह तहखाना संभवतः कई शताब्दियों से बंद है।
कुछ स्रोतों के अनुसार, इसे त्रावणकोर राजघराने ने तब सील किया था जब राज्य पर आक्रमण का खतरा मंडरा रहा था। उन्होंने यह निश्चय किया कि भगवान के खजाने को कोई छू न सके, इसलिए इसे आध्यात्मिक सुरक्षा के साथ बंद कर दिया गया।
माना जाता है कि द्वार को बंद करते समय विशेष वैदिक अनुष्ठान और मंत्रोच्चारण किए गए थे, जिनसे वह “दैवीय मुहर” में परिवर्तित हो गया।
ऐसी मान्यता भी है कि जब तक वह द्वार स्वयं भगवान की इच्छा से नहीं खुलेगा, तब तक कोई शक्ति उसे नहीं खोल पाएगी।
५. जब इसे खोलने की कोशिश की गई
सन 1931 में कुछ साहसी व्यक्तियों ने इस तहखाने को खोलने का प्रयास किया था।
किंवदंती कहती है कि जैसे ही द्वार को तोड़ने की कोशिश की गई, वहां से सर्पों का झुंड निकल आया। डरकर सभी भाग गए और फिर कभी किसी ने उस द्वार को छूने की हिम्मत नहीं की।
दशकों बाद, जब 2011 में तहखानों का सर्वेक्षण हुआ, तो अन्य सभी दरवाज़े क्रमशः खोले गए, पर यह एक द्वार जस का तस बंद रहा।
लोहे की परत के नीचे एक और भारी दरवाज़ा था, और कहा जाता है कि उसके पार एक विशाल पत्थर की दीवार जैसी संरचना थी।
जब आधुनिक तकनीक से इसकी जाँच की गई, तो अंदर से धात्विक गूँज जैसी आवाज़ें सुनाई दीं — लेकिन किसी ने भी आगे बढ़ने का साहस नहीं किया।
६. श्रद्धा और श्राप के बीच
स्थानीय पुजारी और राजपरिवार के सदस्यों का मत है कि यह तहखाना स्वयं भगवान पद्मनाभ की “शांति का स्थल” है।
यदि इसे खोला गया, तो यह अधर्म माना जाएगा।
मंदिर से जुड़ी एक पुरानी शिला पर लिखा है —
“जो इस द्वार को बलपूर्वक खोलेगा, वह अनंत श्राप का भागी बनेगा।”
यह सिर्फ डराने वाली कथा नहीं, बल्कि मंदिर की आस्था प्रणाली का हिस्सा है।
यह मंदिर सदियों से देवता की संपत्ति के रूप में संचालित होता आया है। त्रावणकोर के राजा स्वयं को “पद्मनाभ दास” कहते थे — अर्थात् भगवान के सेवक, न कि स्वामी।
इसलिए यह धारणा और भी मजबूत है कि भगवान के खजाने को मनुष्य के हाथों से नहीं छेड़ना चाहिए।
७. अनुमान और सिद्धांत
इस द्वार के पीछे क्या है — इसे लेकर अनेक अनुमान हैं:
1. भौतिक खजाना:
कुछ विद्वानों का मानना है कि इसमें सोने-चाँदी से भी अधिक मूल्यवान वस्तुएँ हैं — जैसे प्राचीन रत्न, दुर्लभ मूर्तियाँ, या वैदिक यंत्र।
2. प्राचीन ग्रंथ या रहस्य:
एक मत यह भी है कि इसमें वैदिक युग की पांडुलिपियाँ, रहस्यमयी तकनीकें, अथवा दिव्य अस्त्रों का उल्लेख करने वाले शिलालेख हैं।
3. अलौकिक संरक्षण:
कुछ रहस्यवादी यह दावा करते हैं कि इस द्वार के भीतर “ऊर्जा क्षेत्र” (energy field) मौजूद है — एक ऐसी विद्युत या चुम्बकीय शक्ति जो बाहरी संपर्क से असंतुलित हो सकती है।
4. सुरंग-सिद्धांत:
पुरातत्वविदों के एक वर्ग का मानना है कि यह तहखाना समुद्र से जुड़ी किसी गुप्त सुरंग से संबंधित है, जो हजारों साल पहले रक्षा-उद्देश्य से बनाई गई थी। यदि इसे खोला गया तो वह सुरंग समुद्री जल को भीतर ला सकती है।
८. विज्ञान की सीमाएँ और आस्था की ऊँचाइयाँ
आधुनिक तकनीकें — जैसे ग्राउंड-पेनिट्रेटिंग रडार और सोनार स्कैन — का उपयोग करने के प्रस्ताव दिए गए, लेकिन मंदिर प्रशासन ने इसे अस्वीकार कर दिया।
उनका कहना था कि वैज्ञानिक उपकरण पवित्र स्थल की मर्यादा का उल्लंघन करेंगे।
यह एक दिलचस्प विरोधाभास है — जहाँ विज्ञान सवाल पूछता है, वहीं धर्म कहता है “कुछ रहस्य प्रश्नों से नहीं, श्रद्धा से समझे जाते हैं।”
९. न्यायालय और धर्म के बीच संतुलन
साल 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि मंदिर का प्रशासन और उसकी देखरेख त्रावणकोर के राजपरिवार के पास ही रहेगी।
साथ ही यह भी कहा गया कि बंद तहखाने को खोलने का निर्णय केवल धार्मिक परिषद ही कर सकती है।
यह निर्णय न केवल आस्था की जीत थी, बल्कि उस भारतीय दृष्टिकोण की भी जो यह मानता है कि हर रहस्य का समाधान तर्क से नहीं, समय और श्रद्धा से होता है।
१०. क्या यह रहस्य कभी खुलेगा?
यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।
कभी-कभी जब मंदिर के भीतर रात्रि के सन्नाटे में हवन या दीप प्रज्वलन होता है, तब कहा जाता है कि उस बंद द्वार के पीछे से हल्की सी धातु जैसी झंकार सुनाई देती है।
पुजारी इसे भगवान की उपस्थिति का संकेत मानते हैं।
कई श्रद्धालु यह मानते हैं कि जब कलियुग अपने चरम पर पहुँचेगा, तब स्वयं भगवान पद्मनाभ उस द्वार को खोलेंगे — और सत्य का नया युग प्रारंभ होगा।
११. रहस्य का दार्शनिक अर्थ
इस तहखाने का रहस्य केवल ताले और दीवारों में नहीं है।
वह हमारे भीतर के रहस्य का प्रतीक है — हमारी अपनी आत्मा के उस गहरे द्वार का, जिसे खोलने के लिए बाहरी बल नहीं, बल्कि आंतरिक साधना चाहिए।
शायद इसीलिए यह द्वार अब तक नहीं खुला — क्योंकि यह मनुष्य को एक गहरा संदेश देता है:
“हर रहस्य को जानना आवश्यक नहीं।
कुछ रहस्य इसलिए होते हैं ताकि हम विनम्र बने रहें।
१२. निष्कर्ष
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का यह बंद तहखाना केवल एक पुरातात्विक या आर्थिक विषय नहीं है।
यह भारतीय सभ्यता की उस आत्मा का प्रतीक है जिसमें विज्ञान और अध्यात्म, ज्ञान और श्रद्धा, दोनों साथ चलते हैं।
यह हमें सिखाता है कि कुछ द्वार ऐसे होते हैं जो बंद रहकर ही अपनी पवित्रता बनाए रखते हैं।
शायद यही कारण है कि वह द्वार आज भी नहीं खुला — क्योंकि उसका रहस्य स्वयं भगवान की निःशब्द उपस्थिति है।

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