सम्पादकीय
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट की यह उम्मीद कि आखिरकार अमेरिका और भारत साथ आएंगे, मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। अच्छी बात यह है कि अमेरिका के एकतरफा टैरिफ और कुछ तीखे बयानों के बावजूद बातचीत का रास्ता बंद नहीं हुआ है। वॉशिंगटन और नई दिल्ली, दोनों मिलकर इस मसले को सुलझा सकते हैं।
भड़काने वाले बयान: भारत पर थोपे गए ट्रंप के 50% टैरिफ को लेकर अमेरिका में साफ तौर पर दो विरोधी स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। एक धड़ा कूटनीतिक सीमाओं के इतर जाकर बयानबाजी कर रहा है और जिसकी वजह से दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ा है। वहीं, दूसरे धड़े का मानना है कि रूस से तेल खरीदने के लिए केवल भारत को निशाना बनाना सही नहीं, जबकि सबसे बड़ा खरीदार चीन है। ऐसे माहौल में जरूरी है कि दोनों देशों के बीच शीर्ष स्तर पर संवाद जारी रहे। अच्छी बात यह है कि बेसेंट के मुताबिक, दोनों पक्ष मौजूदा हालात को लेकर चिंतित हैं और मसले को सुलझाना चाहते हैं।
आपसी सहयोग जरूरी: भारत-अमेरिका का रिश्ता केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। हाल के बरसों में दोनों ने सुरक्षा, तकनीक, ऊर्जा समेत दूसरे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाया है। चीनी मनमानी पर नियंत्रण के लिए अमेरिका को खासतौर पर भारतीय सहयोग की जरूरत है। इसी मकसद से क्वॉड का गठन किया गया, जिसे अमेरिकी सरकार ने तवज्जो भी दी। लेकिन, ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी की वजह से क्वॉड के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं। वहीं, वॉशिंगटन में यह भी चिंता है कि पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका रिश्तों में जो प्रगति हुई थी, वह इन कुछ दिनों में बेकार हो गई।
दुनिया पर असर: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका सबसे पुराना लोकतंत्र। भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और अमेरिका सबसे अमीर अर्थव्यवस्था। दोनों देशों के बीच टकराव बढ़ता है, तो असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। अमेरिकी मांग के अनुसार, भारत अगर रूस से खरीदारी बंद भी कर देता है, तो इससे ग्लोबल ऑयल सप्लाई बाधित होगी और तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। US इस पहलू को लगातार नजरअंदाज कर रहा है।गतिरोध खत्म हो: दोनों देशों के बीच पिछले एक दशक में द्विपक्षीय व्यापार लगभग दोगुना हो गया है और इसे 2030 तक 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन यह तभी संभव है, जब मौजूदा गतिरोध खत्म हो। इसके लिए बातचीत ही रास्ता है। अड़ियल रुख अपनाने के बजाय अमेरिका को भारतीय नजरिया समझने की जरूरत है।
ट्रंप की टैरिफ रणनीति भारत के साथ भी वैसी काम नहीं आई है, जैसी वे चाहते थे। भारत भी भारी टैरिफ और प्रतिबंधों की धमकी से किसी समझौते के लिए जल्दबाजी करने को तैयार नहीं है।
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