डॉ. अनिल कुमार त्रिवेदी, एमबीबीएस, एमएस,
जनरल सर्जरी, एमसीएच, सीटीवीएस, कैटियोथोरेसिक सर्जन
एसोसिएट प्रोफेसर
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान,
एम्स,
नई दिल्ली
ये ऐसा जाल है जो इसमे एक या दो बार फँस गया तो एक मध्यम वर्गीय परिवार की पूरी जिन्दगी की जमा पूजी निकल जाती है क्योंकि ये अब इलाज नही करते है विजनेस सेन्टर बन गये है यहाँ विजनेस मीटिंग होती है जैसा कि मुझे पता है कि आपरेशन भी विना जरूरत के करना डाक्टर की मजबूरी होती है ढ़ेर सारे टेस्ट दो दो तीन तीन बार रिपीट कर के करवाना भी डाक्टर की मजबूरी होती है मामूली बुखार के मरीज को ICU मे पहुंचाना भी डाक्टर की मजबूरी होती है क्योंकि इसके लिये डाक्टर को अस्पताल से मोटा पैसा मिलता है
अत्यंत गंभीर मामला
भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र पतन के कगार पर है, और इसे स्वयं भारत की संसदीय समिति ने स्वीकार किया है।
ज़ी न्यूज़ की हालिया शोध रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 44% मानव शल्यक्रियाएँ (सर्जरी) फ़र्ज़ी, धोखाधड़ीपूर्ण या अनावश्यक हैं। इसका अर्थ है कि देश में किए जाने वाले लगभग आधे ऑपरेशन केवल मरीजों या सरकार को लूटने के उद्देश्य से किए जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 55% हृदय शल्यक्रियाएँ, 48% हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय निकालना), 47% कैंसर सर्जरी, 48% घुटना प्रत्यारोपण, 45% सी-सेक्शन, कंधा प्रत्यारोपण, रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन आदि भारत में फ़र्ज़ी या अनावश्यक होते हैं।
महाराष्ट्र के कई प्रतिष्ठित अस्पतालों में किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि बड़े अस्पतालों में वरिष्ठ डॉक्टरों को एक-एक करोड़ रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। कारण यह है कि जो डॉक्टर अधिक जाँच, उपचार, भर्ती और ऑपरेशन करवाते हैं—चाहे आवश्यकता हो या न हो—उन्हें अधिक वेतन से पुरस्कृत किया जाता है।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने कई मामलों के अध्ययन के बाद रिपोर्ट छापी कि मृत मरीजों को ज़िंदा दिखाकर इलाज किया गया और पैसे ऐंठे गए। यह अत्यंत शर्मनाक कृत्य कई जगह उजागर हुआ है।
एक मामले में, एक प्रतिष्ठित अस्पताल ने 14 वर्षीय मृतक लड़के को जीवित बताकर एक महीने तक वेंटिलेटर पर रखा और “इलाज” किया। बाद में उसे मृत घोषित किया गया। शिकायत पर अस्पताल दोषी पाया गया और परिवार को 5 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया गया। लेकिन परिवार को एक महीने तक झेली मानसिक पीड़ा का क्या?
कई बार अस्पताल मृतक मरीजों पर भी तुरंत ऑपरेशन का नाटक करते हैं, परिवार से तुरंत पैसे माँगते हैं और बाद में कहते हैं कि “ऑपरेशन के दौरान मृत्यु हो गई।” इस तरह भारी रकम वसूली जाती है। (स्रोत: Dissenting Diagnosis – डॉ. गदरे और शुक्ला)
बीमा (मेडिक्लेम) घोटाला भी उतना ही भयावह है।
भारत में लगभग 68% लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर दावे अस्वीकार कर दिए जाते हैं या आंशिक भुगतान किया जाता है, और शेष खर्च परिवार पर छोड़ दिया जाता है।
करीब 3,000 प्रतिष्ठित अस्पताल बीमा कंपनियों द्वारा फ़र्ज़ी दावों के कारण ब्लैकलिस्ट किए जा चुके हैं। कोविड-19 काल में कई बड़े अस्पतालों ने फ़र्ज़ी कोविड केस बनाकर बीमा कंपनियों को ठगा।
मानव अंग तस्करी भी बड़े स्तर पर हो रही है।
2019 में इंडियन एक्सप्रेस ने एक दर्दनाक घटना उजागर की। कानपुर की संगीता कश्यप को दिल्ली में नौकरी का झाँसा देकर फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया। स्वास्थ्य जाँच के बहाने उसे भर्ती कर लिया गया। सौभाग्य से उसने डॉक्टरों को “डोनर” शब्द बोलते सुना और वहाँ से भाग निकली। शिकायत पर एक अंतरराष्ट्रीय अंग तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ हुआ, जिसमें डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, पुलिस आदि शामिल पाए गए।
‘अस्पताल रेफ़रल घोटाला’ भी व्यापक है।
कुछ डॉक्टर मरीज को गंभीर बीमारी बताकर बड़े अस्पताल भेजते हैं। अपोलो, फोर्टिस, एपेक्स आदि अस्पतालों में रेफ़रल प्रोग्राम चलते हैं। मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल ने खुलेआम 40 मरीज भेजने पर ₹1 लाख, 50 मरीज पर ₹1.5 लाख और 75 मरीज पर ₹2.5 लाख देने की पेशकश की। मरीज की हालत चाहे जैसी हो, डॉक्टर को रेफ़रल फ़ीस सीधे बैंक खाते में मिलती है।
‘डायग्नोसिस घोटाला’ ...
..यह तो अरबों का धंधा है।
बेंगलुरु में आयकर विभाग की छापेमारी में प्रतिष्ठित पैथोलॉजी लैब से 100 करोड़ रुपये नकद और 3.5 किलो सोना मिला, जो डॉक्टरों को रिश्वत देने के लिए रखा गया था। डॉक्टर अनावश्यक जाँच लिखते हैं और 40-50% कमीशन लेते हैं।
अधिकतर जाँचें सिर्फ़ काग़ज़ पर दिखती हैं। यही कारण है कि भारत में 2 लाख से अधिक लैब हैं, जबकि केवल 1,000 ही प्रमाणित हैं।
फार्मा कंपनियों के घोटाले...
20-25 बड़ी दवा कंपनियाँ हर साल डॉक्टरों पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च करती हैं। कोविड काल में डोलो टैबलेट बेचने वाली कंपनी का घोटाला सामने आया। डॉक्टरों को अपनी दवा लिखवाने के लिए कंपनियाँ नकद, विदेश यात्राएँ और 5-7 दिन के फाइव स्टार होटल में ठहराव देती हैं।
उदाहरण के लिए, USV Ltd. हर डॉक्टर को 3 लाख रुपये नकद या ऑस्ट्रेलिया/अमेरिका यात्रा देती है।
अस्पताल–फार्मा कंपनी गठजोड़..
कई कंपनियाँ सर्जरी उपकरण और दवाएँ अस्पतालों को बेहद सस्ते में देती हैं, लेकिन मरीज से अत्यधिक दाम वसूले जाते हैं।
इंडिया टुडे की जाँच में पाया गया कि EMCURE कंपनी की कैंसर दवा टेमिक्योर अस्पताल को ₹1,950 में मिलती है, लेकिन मरीज से ₹18,645 वसूले जाते हैं।
मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया (MCI)
2016 में सरकारी समिति की रिपोर्ट ने साफ़ लिखा कि MCI मेडिकल कॉलेज खोलने की अनुमति देने में तो सक्रिय है, लेकिन डॉक्टरों और अस्पतालों को नियंत्रित करने में पूरी तरह विफल है।
MCI के नियम, जिनका अक्सर उल्लंघन होता है:
1. डॉक्टर को ब्रांडेड दवा नहीं, बल्कि जनरिक दवा लिखनी चाहिए।
2. डॉक्टर को उपचार से पहले अपनी पूरी फ़ीस बतानी चाहिए
3. जाँच/इलाज से पहले मरीज की सहमति अनिवार्य है।
4. प्रत्यक मरीज का रिकॉर्ड कम से कम 3 वर्ष सुरक्षित रखना ज़रूरी है।
5. अनैतिक या अयोग्य डॉक्टरों को उजागर करना डॉक्टरों का कर्तव्य है।
सरकारी योजनाओं में भी भारी घोटाला
पूर्व सैनिक जैसे लोगों को मामूली बीमारी में भी भर्ती कर लिया जाता है और सरकारी योजना में उनका नाम जोड़कर नकली इलाज दिखाकर लाखों रुपये का बिल बनाया जाता है। इसमें अस्पताल और भ्रष्ट अधिकारी दोनों शामिल रहते हैं।
👉 यह संदेश हर नागरिक तक पहुँचना चाहिए ताकि वे स्वयं और अपने परिवार को बचा सकें।

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