Top News

शराब ठेकेदार सूरज रजक पर हमला, आशंका लोकायुक्त छापे से भदौरिया, सिंह गुट नाराज तो नहीं, हवाई फायरिंग भी हुई ?Liquor contractor Suraj Rajak attacked, suspicion is there any anger on Bhadoria and Singh groups due to Lokayukta raid, was there any aerial firing also?

 

मुख्यमंत्री मोहन यादव का खामोश बैठना किस बात का संकेत....है?

इंदौर के शराब ठेकेदार सूरज रजक पर हमले की घटना के बाद शराब लॉबी में तनाव बढ़ गया है। हमले के पीछे लोकायुक्त छापे और गुटीय रंजिश की आशंका जताई जा रही है। पुलिस की नाकामी पर सवाल भी उठ रहे हैं।के शराब ठेकेदार सूरज रजक पर शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात पॉश एरिया में हमला हो गया। करीब 12 हमलावर पांच बाइकों से आए थे। उन्होंने रजक की कार टोकी और उन पर हमला करने लगे। तभी रजक के गनमैन ने दूसरी गाड़ी से बाहर आकर हवाई फायरिंग की और स्थिति को संभाला। वहीं, गनमैन को देखकर हमलावर भाग गए।


इस हमले ने शराब लॉबी में हलचल मचा दी है। साथ ही, रात को हवाई फायरिंग के मामले को लेकर सूरज रजक पर थाने में एफआईआर भी हुई है।

पहले से ये आशंका थी कि इस लॉबी में गैंगवार हो सकती है, और अब इसे उसी से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं, पुलिस की रात में की गई सख्त चेकिंग की असलियत भी सामने आ गई।

  शराब माफिया भदौरिया और सिंह गुट पर भी जा रही शंका की सुई

लोकायुक्त ने 15 अक्टूबर को ही आलीराजपुर से रिटायर हुए जिला पूर्व आबकारी अधिकारी धर्मेंद्र सिंह भदौरिया पर इंदौर, ग्वालियर में छापे मारे थे। इसमें 20 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति मिली थी। भदौरिया गुजरात लाइन चलाने वाले शराब ठेकेदार एके सिंह के समधी हैं।

इस गुट की रजक और उनके ग्रुप से बीते दो-तीन सालों से जमकर रंजिश चल रही है। आशंका जताई जा रही है कि भदौरिया, सिंह गुट लोकायुक्त छापे के पीछे कहीं ना कहीं रजक और उनकी लॉबी का हाथ मान रहे हैं। ऐसे में आशंका इस बात की भी है कि कहीं यह हमला इसी रंजिश का नतीजा तो नहीं। उल्लेखनीय है कि जब लोकायुक्त का छापा हुआ तो भदोरिया लगातार उनसे यह पूछता रहा कि मेरी शिकायत किसने की मुझे यह बता दीजिए।

सिंह और रजक में हो चुका है विवाद

रजक ने इस मुद्दे पर द सूत्र से कहा कि यह जांच का विषय है। मैं किसी भी आशंका से इंका उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी रजक और सिंह के बीच में विवाद हो चुका है। अप्रैल 2024 में गुजरात में अवैध शराब पकड़ी गई थी। तब यह बात उठी थी कि इसमें सिंह गुट, रजक पर केस कराना चाहता है और उन्हें उलझाना चाहता है। इसी बात को लेकर रजक सिंह से मिलने उनके घर भी गए थे, लेकिन तब सिंहनहीं मिले थे। तब भी बड़ी गैंगवार की आशंका जताई गई थी।

इस तरह हुआ रात को घटनाक्रम, नहीं थी पुलिस

यह घटना करीब रात साढ़े बारह बजे हुई है। रजक ने द सूत्र को बताया कि वह पत्नी के साथ कार से थे। कनाडिया बायपास स्कीम 140 के बोगदे से निकल रहे थे। तभी पांच बाइक पर 10-12 लोग आए और कार के आगे अड़ा कर टोक लिया। वे हमले की नीयत से दिख रहे थे। वे हमारी ओर आए, में कार से निकला, तभी पीछे कार से हमारा गनमैन और ड्राइवर आए और सुरक्षा के लिए गनमैन ने गन लोड कर ली। इसके साथ ही गनमैन ने 3 से 4 बार हवाई फायरिंग भी की। इसे देखकर वे सभी भाग गए। किसी ने हेलमेट नहीं पहना था

पुलिस नदारद 

बता दें कि जिस जगह घटना हुई, वह एक पाक्ष एरिया है। यहां हर दिन पुलिस का चेकिंग प्वाइंट लगता है। पुलिस टोज ब्रीथ एनालाइजर लेकर खड़ी रहती है, लेकिन उस दिन मौके पर कोई पुलिस नहीं दिखी। रजक ने कहा कि पुलिस को अपनी व्यवस्था सख्त करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "अगर हम जैसे लोगों पर हमला हो सकता है, तो फिर शहर में कौन सुरक्षित होगा, जबकि हमारे पास गनमैन और सुरक्षा है?" पुलिस मौके पर कहीं नहीं थी।


कनाडिया थाने में कराएंगे केस, बीजेपी भी साथ

उधर रजक पर हुए हमले को लेकर बीजेपी नेता मिलकर शिकायत करने जा रहे हैं। इसके लिए वे पुलिस के आला अधिकारियों से भी मिलेंगे और साथ ही कनाडिया थाने में जाकर अज्ञात हमलावरों पर केस भी कटाएंगे।

जिन धाराओं में पकड़ते हैं, वह गैर जमानती

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिन धाराओं में भ्रष्ट अधिकारियों पर केस बनता है इनमें अधिकांश धाराएं गैर जमानती हैं। इन पर भ्रष्टाचार निवारण एक्ट 2018 के तहत केस होते हैं। इसमें आय से अधिक कमाई के मामले में मुख्य धारा 13 (1) बी, 13 (2) होती है जिसमें सजा 3 से 7 साल और दूसरे में 4 से 10 साल की सजा है। इसी तरह रिश्वत लेने के मामले में धारा 7 ए लगती है जिसमें सजा एक से सात साल की है। यह धाराएं गैर जमानती हैं।

शराब माफिया करोड़पति भदौरिया हो या जीपी मेहरा या दूसरे अधिकारी को क्यों छोड़ा यह है वजह ?

लोकायुक्त भोपाल ने सात दिन पहले पीडब्ल्यूडी के पूर्व चीफ इंजीनियर जीपी मेहरा के यहां छापा मारा था। इस दौटान करोड़ों की बेहिसाब संपत्ति पकड़ी, लेकिन उन्हें छोड़ दिया।फिर 15 अक्टूबर को भदौरिया को पकड़ा और 18.59 करोड़ की संपत्ति मिली। इसके अलावा 1.13 करोड़ नकद, 5.48 करोड़ का सोना और 8 लाख की चांदी भी मिली, लेकिन फिर भी छोड़ दिया गया। इसी तरह भ्रष्टाचार में फंसे आबकारी डीसी आलोक खरे या कोई और, किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया।

यह है गिरफ्तार नहीं करने की वजह

इसकी मुख्य वजह यह है कि बीएनएस या भ्रष्टाचार एक्ट के तहत गिरफ्तारी के बाद तय दिन में चालान लगाना जरूरी होता है। सात साल तक की सजा वाले मामलों में 60 दिन के अंदर चालान, और गंभीर मामलों में 90 दिन के भीतर चालान पेश करना होता है। यह जांच एजेंसियों के लिए बड़ी मुश्किल बन जाती है। सबसे बड़ी समस्या है अभियोजन की मंजूटी। अधिकारियों के खिलाफ एजेंसियों को पहले मप्र शासन से मंजूरी लेनी होती है, तभी चालान पेश होता है। इस मंजूरी में एक-दो महीने नहीं, बल्कि सालों तक फाइल अटकी रहती है। बिना मंजूरी के चालान पेश नहीं होता, जिससे अधिकारी को राहत मिल जाती है।

परिवहन कांस्टेबल सौरभ शर्मा ऐसे ही बचा था

लोकायुक्त ने परिवहन विभाग के पूर्व कांस्टेबल सौरभ शर्मा (सौरभ शर्मा भ्रष्टाचार मामला) को गिरफ्तार किया था, लेकिन समय पर चालान पेश नहीं हुआ और उसे जमानत मिल गई। हालांकि, ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था, इसलिए वह जेल में रहा। वहीं भ्रष्टाचार के मामले में चालान न होने की वजह से उसे जमानत मिल गई। ऐसे में सभी जांच एजेंसियां विवेचना में लगने वाले समय और अभियोजन मंजूरी के कारण भ्रष्ट अधिकारियों को रंगे हाथ पकड़ने के बाद भी जेल नहीं भेज पातीं।

सीबीआई के केस भी इसलिए बिगड़ते हैं

उधर सीबीआई इस मामले में तुरंत गिरफ्तारी करती है। जैसे नर्सिंग घोटाले के केस में सीबीआई ने अपने ही अधिकारियों को पकड़ा, लेकिन फिर चालान की समस्या आई और कई को जमानत मिल गई।इस पर हाईकोर्ट जज ने सीबीआई को देटरी पर फटकार लगाईी असल में, जैसे ही आटोपी गिरफ्त्तार होता है, वह जमानत के लिए लग जाता है। जांच एजेंसियों को फिर कोर्ट में जवाब देना पड़ता है, जिससे वह भी बचना चाहती हैं। सीबीआई जरुरी मामलों में ही गिरफ्तारी करती है। जैसे रावतपुरा रायपुर मेडिकल घोटाले में कुछ ही आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इसमें 30 से ज्यादा आरोपी हैं, जैसे इंडेक्स के सुरेश भदौरिया और इंदौर के पूर्व कुलपति डीपी सिंह, लेकिन इन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया। जांच पूरी होने के बाद आगे कार्रवाई होगी।

शराब माफिया भदौरिया की ज्यादातर पोस्टिंग धार-झाबुआ, आलीराजपुर जिले में रही।

प्रदेश में यह आदिवासी जिले आर्थिक रुप से कमजोर माने जाते है, गुजरात बार्डर समीप होने के कारण यहां अवैध शराब का कारोबार खूब जोरों पर चलता है।

जंगल वाली बार्डर में है कई चोर रास्ते

गुजरात में शराब प्रतिबंधित है, लेकिन मध्य प्रदेश की बार्डर करीब होने के कारण यहां से अवैध शराब खूब सप्लाई होती है। इस सीमा पर मध्य प्रदेश और गुजरात के जंगल वाले इलाके है। इस कारण कई चोर रास्ते है। अवैध शराब माफिया इन रास्तों का उपयोग कर अवैध शराब गुजरात पहुंचाते है। माफिया आबकारी विभाग के अफसरों से भी सेंटिंग करके रखते है। भदौरिया भी अवैध शराब के सिंडिकेट से जुड़ा था। इस कारण अवैध कमाई भी खूब की। अपने सेवाकाल में भदौरिया की तनख्वाह दो करोड़ रुपये थी, लेकिन उसके पास 18 करोड की चल-अचल संपत्ति लोकायुक्त पुलिस को मिली है। भदौरिया ने अपने बेटे और बेटी के नाम पर भी संपत्ति खरीद रखी है।

गनमैन के साथ चलता है भदौरिया

नौकरी में रहते वह शराब कारोबारियों का अघोषित साझेदार भी हो गया था। इस कारण उसकी कई शराब ठेकेदारों व अफसरों से दुश्मनी भी चल रही थी। सेवानिवृत होने के बाद उसने अपनी सुरक्षा के लिए चार गनमैन भी रखे थे।

निलंबन के बाद सेवानिवृत्त हुए आबकारी अधिकारी धर्मेंद्र भदौरिया के यहां लोकायुक्त की छापेमारी की जांच दूसरे दिन भी जारी रही। अफसरों ने छापे में मिले दस्तावेजों से अवैध कमाई में साथ देने वालों के लिंक तलाशे। अपने पिता को भ्रष्टाचार से रोकने के बजाए बेटे और बेटी ने भी काली कमाई से अपना साम्राज्य खड़ा किया।बेटी एक कंपनी में साझेदार थी और करोड़ों रुपये की काली कमाई उसमें निवेश की। एक टाउनशिप में बन रहे बंगले का काम बेटी की कंपनी ही देख रही है।

इसके अलावा बेटा सूर्यांश भी काली कमाई फिल्म निर्माण और अपने कारोबार को फैलाने में लगाता था। बेटे ने एक साझेदार के साथ इंदौर में करोड़ों रुपये निवेश कर एक जिम भी खोला था।लोकायुक्त पुलिस ने भदौरिया और उसके परिवार के बैंक खातों की जानकारी जुटाई। उनके और परिवार के खातों में कुल एक करोड़ 26 लाख रुपये जमा हैं। 20 से ज्यादा बीमा और अन्य पॉलिसियां भी जांच में मिलीं।

पत्नी के नाम बैंक ऑफ बड़ौदा में एक लॉकर पाया गया है। कुल चार लॉकर विभिन्न बैंकों में भदौरिया और उसके परिवार के नाम पर हैं। अफसरों ने उन लॉकरों को फ्रीज कराया है और उन्हें भदौरिया तथा उसके परिवार की मौजूदगी में खोला जाएगा। पुत्र सूर्यांश भदौरिया की एक रेस्टोरेंट में भी साझेदारी मिली है, जिसमें सूर्यांश ने निवेश किया है।अब तक भदौरिया के पास कुल 20 करोड़ रुपये की संपत्ति मिली है, जबकि उसके सेवाकाल में उसकी कुल तनख्वाह लगभग दो करोड़ रुपये थी। इतनी काली कमाई सामने आने के बाद ईडी भी अपनी जांच शुरू कर सकता है

Post a Comment

Previous Post Next Post