"मंजिलें उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है।
पंख से कुछ नहीं होता हौसलों में उड़ान होती है।।"
(सागर से विपिन दुबे)
किसी शायर की इन पंक्तियों को सच साबित किया है बुंदेलखंड अंचल के सागर की बेटी डॉक्टर लता वानखेड़े ने। लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई पंच से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाली डॉक्टर वानखेड़े आज राजनीति के क्षितिज पर चमकते सितारे की तरह है। उनकी मेहनत; लगन और पार्टी के प्रति वफादारी को सैल्यूट....। और पार्टी ने भी उन्हें हर कसौटी पर आका और आज उन्हें संगठन में प्रदेश की बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है।
श्रीमती वानखेड़े ने जिस दिन से राजनीति की दहलीज पर कदम रखा फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। पंच से संसद तक के सफर में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन दिल में जज्बा था और फिर बात वही "हौसलों में उड़ान होती है..."और आज नतीजा सबके सामने है। प्रदेश महामंत्री बनने के बाद जब बुंदेलखंड की जमीन पर श्रीमती वानखेडे का छिंदवाड़ा से आना हुआ तो लोगों ने खुशी में पलक पाउडे बिछाए।
संभागीय मुख्यालय सागर में करीब 22 जगह उनका स्वागत किया गया। चारों ओर लता दीदी जिंदाबाद के जयकारे गूंज रहे थे। और जिस गली से उनका काफिला गुजरता आम जनता की जुबान पर एक ही बात होती "लता ने संघर्ष से सफलता की कहानी लिखी है।"
सियासत के शिखर पर जाने के लिए शॉर्टकट कभी नहीं चलता.....
सागर की राजनीति में अक्सर दिग्गजों के नाम ही गूंजते हैं, लेकिन इस बार सुर्खियों में हैं डॉ. लता वानखेड़े — जिन्होंने सत्ता के गलियारों तक अपनी पहचान खुद गढ़ी है।
डॉ. वानखेड़े ने यह साबित किया है कि सियासत में न कोई रास्ता आसान होता है और न कोई मंज़िल करीब — लेकिन अगर जज़्बा सच्चा हो तो इतिहास लिखा जा सकता है।
पुरुष वर्चस्व वाली राजनीति में डॉ. लता वानखेड़े ने धैर्य, कर्मठता और संतुलन से जो स्थान बनाया है, वह हर महिला राजनेता के लिए प्रेरणास्रोत है।
सागर की यह बेटी आज प्रदेश की पहचान बन चुकी है।

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