दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट ने राजधानी के कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (सीईटीपी) में जल प्रदूषण की स्थिति पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट ने राजधानी के कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (सीईटीपी) में जल प्रदूषण की स्थिति पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। 13 सीईटीपी की जांच में ओखला सीईटीपी (24 एमएलडी) को सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला पाया गया, जहां आउटलेट पानी में सल्फाइड का स्तर 2.5 मिलीग्राम/लीटर दर्ज किया गया, जो ईपीए मानक 2.0 से 25 प्रतिशत अधिक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति न केवल पर्यावरण के लिए घातक है, बल्कि यमुना नदी की सेहत को और बिगाड़ रही है, क्योंकि ओखला प्लांट सीधे नदी से जुड़े नालों में अपशिष्ट जल छोड़ता है। रिपोर्ट से पता चलता है कि अन्य पैरामीटर्स जैसे बीओडी, सीओडी और टीएसएस में तो सुधार है, लेकिन सल्फाइड जैसा विषैला तत्व नियंत्रण से बाहर है। डीपीसीसी की आईसी वाटर लैबोरेटरी की तरफ से तैयार इस रिपोर्ट में सैंपल 8 से 22 सितंबर के बीच लिए गए। इसके मुताबिक, राजधानी के कई कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (सीईटीपी) में जल शुद्धिकरण की प्रक्रिया प्रभावी नहीं है। इन प्लांट्स में औद्योगिक अपशिष्ट जल का उपचार किया जाता है, लेकिन आउटलेट पानी के कई पैरामीटर्स पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के मानकों से ऊपर पाए गए हैं।
कई मामलों में मानकों की सीमाएं पार हो गईं रिपोर्ट के अनुसार, सीईटीपी के इनलेट और आउटलेट पानी के सैंपल लिए गए, जिनमें पीएच, टोटल सस्पेंडेड सॉलिड्स (टीएसएस), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी), बीओडी, ऑयल एंड ग्रीस, अमोनिकल नाइट्रोजन, सल्फाइड और फॉस्फेट जैसे पैरामीटर्स की जांच की गई। ईपीए मानकों के तहत आउटलेट पानी में बीओडी 30 मिलीग्राम/लीटर से कम, सल्फाइड 2.0 मिलीग्राम/लीटर से कम और अन्य पैरामीटर्स निर्धारित सीमा में होने चाहिए। लेकिन कई मामलों में ये सीमाएं पार हो गईं।
उपचार के बाद भी नहीं घटा सल्फाइड 4.2 वैज्ञानिक डॉ. श्वेता गुप्ता और अन्य की टीम ने विश्लेषण किया। इसमें पाया गया कि ओखला में इनलेट सल्फाइड 4.2 था, जो उपचार के बाद भी मानक के अनुरूप 2.5 तक नहीं आ सका। यह कमी प्लांट की दक्षता पर सवाल उठाती है, क्योंकि अन्य प्लांट्स में सल्फाइड नियंत्रण बेहतर रहा। उदाहरण के तौर पर एसएमए सीईटीपी में सल्फाइड 2.3 और नरेला में 2.1 था, लेकिन ओखला का स्तर सबसे ऊंचा है। बड़े आकार (24 एमएलडी) के कारण यहां से निकलने वाला अतिरिक्त सल्फाइड लगभग 12 किलोग्राम प्रतिदिन है,
जो पर्यावरण पर भारी बोझ डाल रहा है।अमानक प्लांटों की स्थितिरिपोर्ट के अनुसार, बादली सीईटीपी (12 एमएलडी) में आउटलेट बीओडी 35 मिलीग्राम/लीटर पाया गया, जो मानक 30 से अधिक है। इसी तरह, जीटीके सीईटीपी (6 एमएलडी) में बीओडी 38, एसएमए सीईटीपी (12 एमएलडी) में सल्फाइड 2.3, लॉरेंस रोड सीईटीपी (12 एमएलडी) में बीओडी 33, नरेला सीईटीपी (24 एमएलडी) में सल्फाइड 2.1 और ओखला सीईटीपी (24 एमएलडी) में सल्फाइड 2.5 मिलीग्राम/लीटर दर्ज किया गया। ये सभी ईपीए मानकों से ऊपर हैं, जो दर्शाता है कि इन प्लांट्स में उपचार प्रक्रिया अपर्याप्त है। दूसरी ओर, झिलमिल (16.8 एमएलडी), वजीरपुर (24 एमएलडी), नारायणा (21.6 एमएलडी), मायापुरी (12 एमएलडी), मंगोलपुरी (2.4 एमएलडी), नांगलोई (12 एमएलडी) व बवाना (35 एमएलडी) सीईटीपी ने पैरामीटर्स में मानकों का पालन किया। जलीय जीवों के लिए खतरापर्यावरणविद् वरुण गुलाटी ने बताया कि उच्च सल्फाइड स्तर हाइड्रोजन सल्फाइड गैस उत्पन्न करता है, जो जलीय जीवों को मार सकता है और सीवर सिस्टम को क्षतिग्रस्त करता है। इसके अलावा, यह सीवर पाइपों में जंग लगाती है, जिससे रखरखाव की लागत बढ़ती है और दुर्गंध फैलती है। डीपीसीसी की रिपोर्ट से जुड़े अध्ययनों से पता चलता है कि उच्च सल्फाइड वाले अपशिष्ट जल से नदी में जैव विविधता कम होती है।

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