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गोवर्धन पूजा: पड़वा पर इंदौर में निखरेगा गोवंशों का रूप और रंग, जानें क्यों खास है यहां के जेवरों का बाजार? Govardhan Puja: The appearance and colour of cattle will be enhanced in Indore on Padwa, know why the jewellery market here is special?


दीपावली के अगले दिन इंदौर में पड़वा पर गोवर्धन उत्सव मनाने की प्राचीन परंपरा है। इस बार सीएम डॉ. मोहन यादव के आह्वान पर यह पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर मनाया जाएगा। इंदौर की गोशालाओं और ग्रामीण अंचल में गोवंश और अन्य मवेशियों को भी नहला-धुला कर खूब सजाया और संवारा जाएगा और उन्हें विविध व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा और शहर व गांवों में घुमाया जाएगा।



भारतीयों की धर्म के प्रति अटूट आस्था और श्रद्धा को देखते हुए अधिकतर देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षी-जीवों को बनाया गया है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि धर्म की आस्था के साथ लोग पशु-पक्षियों का भी ध्यान रखें और उनकी रक्षा करें। भादव माह में बच्छ बारस का पर्व भी आता है, जिस दिन गाय और बछड़े की, नागपंचमी पर सर्प की पूजा हमारे धार्मिक रीति-रिवाज का हिस्सा है। गोवर्धन पूजा दिवाली के बाद मवेशियों के प्रति प्रेम के प्रकटीकरण का बड़ा उत्सव है।


भारत दूध उत्पादन में अव्वल भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की करीब सत्तर प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। कृषि प्रधान देश होने के कारण किसान आज भी पशुपालन करते हैं। इसलिए वे पशु को भी धन के रूप में पूजते हैं। भारत दूध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। विश्व के दूध उत्पादन में भारत का हिस्सा एक चौथाई है। विश्व के दूध उत्पादन में भारत का हिस्सा 24.76 प्रतिशत है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में दुधारू पशुधन अधिक संख्या में हैं।


कृष्ण को था गायों से प्रेम भारतीय संस्कृति में कृष्ण जिन्हें गायों से बड़ा स्नेह था, आज भी वृंदावन-गोकुल में बड़ी-बड़ी गौ-शालाएं हैं, जहां लाखों गायें हैं। किसानों के आय का एक साधन दूध भी है। देश में सरकारी और निजी एजेंसियां किसानों से दूध संग्रह कर उसे बिक्री का कार्य कर रही हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से हुई अत्यधिक बारिश से ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। तब से दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन विशेषकर गायों की पूजा होती है। राजस्थान के नाथद्वारा में गोवर्धन उत्सव की भव्य परंपरा देखने लाखों लोग प्रतिवर्ष वहां जाते हैं। देश के किसान दीपावली से अधिक गोवर्धन पूजा भव्यता के साथ मनाते हैं।

पशुओं का होगा मनमोहक शृंगार गोवर्धन पूजा के पूर्व किसान या पशुपालक अपने पशुओं को नहलाते हैं और उनके सींगों को रंगते हैं। पशुओं की पीठ पर रंग-बिरंगे ठप्पे लगते हैं। हरदा जिले के पशुपालक कृषक रंजीत सिंह राजपूत का कहना है कि हम दीपावली से ज्यादा पशुओं की पूजा और उनके शृंगार को महत्व देते हैं। उन्हें मोरकी, गठेली, काठी, घुंघरू, मोर पंखी जैसे जेवरों से सजाया जाता है और दीपावली के दूसरे दिन सुबह-सुबह पूजा कर भेजते हैं।

आकर्षक होते हैं पशुओं के जेवर सोने की बढ़ती कीमतों ने आसमान छू रखा है। ऐसे में गौ-धन जिसमें गाय, भैस, बैल, बकरी सभी का रंग-बिरंगे जेवरों से शृंगार होता है। इनकी कीमतें प्रति जेवर दस रुपये से 100 रुपये तक होती हैं, जो सियागंज में कुछ दुकानों पर और फुटपाथ पर बेचने वालों के पास मिलती हैं। एक पशुओं के जेवर विक्रेता रामप्यारी बाई जो वर्षों सियागंज में दीपावली पर फुटपाथ दुकान लगाती हैं, उनका कहना है कि गांव के लोग खरीदी करने आते हैं। नगर में भी कुछ लोग जानवर पालते हैं। गौशाला वाले भी खरीद कर ले जाते हैं। ये जेवर वे घर पर ही निर्मित करती हैं, जिसका कच्चा माल भी सरलता से मिल जाता है।

घुंघरू की माला ज्यादा प्रिय एक अन्य विक्रेता राधेश्याम का कहना है कि जानवरों के जेवर वर्ष गोवर्धन पूजा के अवसर पर ही खरीदे जाते हैं। बाकी तो घुंघरू की माला अधिक बिकती है, जो दुकानों पर मिल जाती है। हमारी कोई पक्की दुकान नहीं है, हम तो फुटपाथ पर बैठे हैं। वैसे भी पहले की तरह अब इन जेवरों की बिक्री नहीं रही है। नगर में दूध देने वाले पशु नहीं हैं। ग्रामीण किसान और गौशाला वाले ही इन्हें खरीदते हैं।

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