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कभी हार मत मानो’ हेडबैंड के माध्यम से जर्मन एथलीट मार्ज़िलियर ने जताया आभार German athlete Marzilier expresses gratitude with 'Never Give Up' headband

नई दिल्ली । यहां जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में चल रही विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप्स 2025 में पुरुषों की 400 मीटर टी47 स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतने वाले जर्मनी के फर्राटा धावक मैक्स मार्ज़िलियर ने बड़े अनोखे और भावनात्मक अंदाज में भारत में मिल रहे शानदार आतिथ्य के प्रति अपना सम्मान और आभार जताया।अपने फाइनल मुकाबले में मार्ज़िलियर ने सफेद रंग का हेडबैंड पहन रखा था, जिस पर केसरिया अक्षरों से ‘कभी हार मत मानो’ लिखा था। साथ ही बैंड के ऊपरी हिस्से में कमल का फूल भी उकेरा गया था, जो इस एथलीट के मुताबिक यह बौद्ध धर्म के प्रति उनके सांस्कृतिक जुड़ाव के साथ-साथ पवित्रता और दृढ़ता का प्रतीक है।यह भारत को धन्यवाद कहने का उनका तरीका था। 



जापान के रयोटा फुकुनागा और बोत्सवाना के बोस मोकगवती को पछाड़ने के बाद मार्ज़िलियर ने बताया, "हम एथलीटों का यहां बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया जाता है। हिंदी में लिखे शब्दों को माथे पर पहनना मेरे लिए सम्मान और कृतज्ञता दिखाने का एक तरीका था। हम जिस देश में खेलने जाते हैं, वहां इसी अंदाज में उसके प्रति अपनी भावना व्यक्त करते हैं।"मार्ज़िलियर के मुताबिक यह विचार उनके और जर्मन लंबी कूद एथलीट मार्कस रेम की कोच और ओलंपिक पदक विजेता भाला फेंक एथलीट स्टेफी नेरियस से आया है। स्टेफी को शिष्टाचार के प्रतीक के रूप में हर मेज़बान देश की भाषा में लिखे शब्दों को पहनने की आदत थी। मार्ज़िलियर ने दिल्ली में उस परंपरा को अपनाया और उसे अपना बना लिया।हेडबैंड पर कमल के प्रतीक ने इसमें अर्थ की एक और रोचक परत जोड़ दी। इस 29 वर्षीय खिलाड़ी के लिए यह लचीलेपन और शालीनता का प्रतीक है और ऐसे गुण चोट से उबरने के उनके अपने सफर को दर्शाते थे। वह कहते हैं, "मुझे पता है कि बौद्ध धर्म में शालीनता और लचीलापन महत्वपूर्ण है।

 यह कठिनाइयों से बेदाग़ होकर आगे बढ़ने के बारे में है। मेरे लिए, यह एक आदर्श प्रतीक था।"ऐसा नहीं है कि मार्ज़िलियर सिर्फ दिखावे के लिए हेडबैंड लगाए हुए थे। इस बैंड पर लिखे संदेश और प्रतीक चिन्ह ने उनकी मानसिकता पर असर डाला था। यही मानसिकता रेस के अंतिम क्षणों में जीवंत हो उठी। फुकुनागा के आगे होने के साथ, मार्ज़िलियर स्वर्ण पदक से चूकते हुए नजर आ रहे थे, लेकिन उनके माथे पर लिखे शब्दों ने उन्हें हार न मानने की याद दिला दी। आखिरी मीटर में, उन्होंने पूरा जोर लगाया और सेकंड के तीन सौवें हिस्से से जीत हासिल कर ली।रेस के बाद उन्होंने स्वीकार किया, "मुझे घुटनों में तकलीफ थी और मैं हफ़्तों तक ठीक से ट्रेनिंग नहीं कर पाया था। इसलिए यह पदक मेरे लिए बिल्कुल अप्रत्याशित है। लेकिन हेडबैंड ने मुझे याद दिलाया—कभी हार मत मानो।'रेस के बाद मार्ज़िलियर का हेडबैंड चर्चा का केंद्र बन गया। वह काफी खुश और भावनात्मक नजर आए क्योंकि उनके लिए, यह पल पदक से कहीं बढ़कर था। यह उस जुड़ाव का एहसास था जो एक एथलीट का उस देश की संस्कृति को अपनाने जैसा था, जिसने उसका ख्याल रखा और शानदार मेज़बानी की थी।अंत में उन्होंने कहा, "खेल में सम्मान उतना ही मायने रखता है, जितना परफार्मेंस। आज रात, मैं बस भारत के प्रति यही सम्मान दिखाना चाहता था। औऱ मैं खुश हूं कि भारत ने मुझे मुश्किल समय में स्वर्ण पदक दिया और इसके लिए मैं सदैव इस

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