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नोबेल पुरस्कार 2025 -आर्थराइटिस, डायबिटीज का उपचार खोजने वाले वैज्ञानिकों को मिला मेडीसन का नोबेल Nobel Prize 2025 - Scientists who discovered treatments for arthritis and diabetes received the Nobel Prize in Medicine.

 नई दिल्ली. नोबेल पुरूस्कारी की घोषणा ने दुनिया करे बार फिर चमत्कार से रूबरू करा दिया। वर्ष 2025 का नोबेल पुरस्कार फिजियोलॉजी या मेडीसन (चिकित्सा) में अमेरिका की मैरी ई. ब्रंकों, अमेरिका के फ्रेड राम्सडेल और जापान के शिमोन सकागुची को दिया गया है। यह पुरस्कार उनकी ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस; (शरीर के बाहरी हिस्सों में इम्यून सिस्टम की सहनशीलता) से जुड़ी खोजों के लिये हैं। यह खोज शरीर की रक्षा प्रणाली को समझने में क्रांति लाई है। जो ऑटोइम्यून बीमारियों जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप-1, डायबिटीज और ल्यूपस के उपचार का रास्ता खोलेगी। स्टॉकहोम के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने सोमवार को घोषणा की है।

इम्यून टॉलरेंस क्या है, शरीर की रक्षा प्रणाली का रहस्यहमारा शरीर इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) से सदैव खतरे से लड़ता है-जैसे वायरस या बैक्टीरिया से। लेकिन कभी-कभी यह सिस्टम गलती से अपने ही अंगों पर हमला कर देता है। जिसे ऑटोइम्यून बीमारी कहते हैं। पुराने वैज्ञानिकों को लगता था कि इम्यून सेल्स (रोगाणु से लड़ने वाली कोशिकायें) शरीर के अन्दर ही सहिष्णु (टॉलरेंट) बन जाती है। जिसे सेंट्रल इम्यून टॉलरेंस कहते हैं। लेकिन विजेताओं ने दिखाया कि शरीर के बाहरी (पेरिफेरल) में भी एक खास तंत्र काम करता है। जो इम्यून सिस्टम को नियंत्रित रखता है। इससे शरीर के अंग सुरक्षित रहते हैं। यह खोज 1990 के दशक से शुरू हुई। विजेताओं ने पाया कि ‘‘रेगुलेटरी टी सेल्स’’ (टीआरईजीएस) नामक कोशिकायें इम्यून सिस्टम को ब्रेक लगाती है। अगर यह कोशिकायें कमजोर हों तो शरीर के अंगों पर हमला होता है। यह खोज कैंसर, ट्रांसप्लांट और एलर्जी के इलाज में भी सहयोग करेगी।तीन साइंटिस्टों का टीम वर्कशिमोन सकागुची (जापान)शिमोन सकागुची को रेगुलेटरी टी सेल्स की खोज के लिये जाना जाता है। 1995 में उन्होंने दिखाया है कि सीडी4, सीडी25 प्लस कोशिकायें इम्यून सिस्टम को दबाती है। यह कोशिकायें शरीर का अपने ही ऊतकों से लड़ने से रोकती है। सकागुची की खोज से पता चला है कि ट्रेग्स इम्यून टॉलरेंस बनाये रखने में मुख्य भूमिका निभाती है। उनके काम ने ऑटो इम्यून रोगों की समझ बदल दी। आज ट्रैग्स को इंजीनियर करे दवाये बन रही है।

मैरी ई. ब्रंकों और फ्रेड राम्सडेल (अमेरिका)मैरी ब्रंकों और फ्रेड राम्सडेल ने फॉक्सपी3 (एफओएक्सपी3) जीन की खोज की, जो ट्रैग्स कोशिकाओं का मास्टर स्विच हैं। 2001 में उन्होंने पाया कि फॉक्सपी 3 में म्यूटेशन से आईपीईएक्स सिंड्रोम होता है। एक दुर्लभ बीमारी जहां बच्चे का इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर पर हमला करता है। इससे बाल रोग, डायबिटीज और आंतों की समस्या होती है। उनके काम ने साबित किया है फॉक्सपी3 ट्रैग्स कोशिकाओं को सक्रिय रखता है। यह खोज पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस को समझने में मील का पत्थर साबित हुई। तीनों ने मिलकर दिखाया कि सेंट्रल टॉलरेंस के अलावा पेरिफेरल टॉलरेंस भी जरूरी है। उनकी खोजें अब दवाओं में उपयोग हो रही है। जैसे ऑटो इम्यून बीमारियों के लिये ट्रैग्स थेरेपी।नयी दवाओं का दौरयह पुरस्ेार ऑटो इम्यून बीमारियों से जूझ रहे करोड़ों लोगों लिये उम्मीद है। दुनिया में 50 मिलियन से अधिक लोग इन बीमारियों से प्रभावित है। ट्रैग्स थेरेपी से ट्रांसप्लांट रिजेक्शन कम होगा। कैंसर में ट्रैग्स को काबू करके इम्यून सिस्टम को मजबूत किया जा सकता है। नोबेल समिति ने कहा है कि यह खोज इम्यून सिस्टम को नियंत्रित रखने का तरीका बताती है। पुरस्कार राशि 11 मिलियन स्वीडिश कोना (लगभग 8.5 रूपये है)

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