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उम्र बढ़ते ही क्यों ढीली पड़ने लगती है शरीर की सुरक्षा दीवार? डॉक्टर ने आसान भाषा में समझाया इम्यून सिस्टम के कमजोर होने का पूरा विज्ञानWhy does the body's defense system weaken with age? A doctor explains the science behind the weakening of the immune system in simple terms.

 नई दिल्ली। अगर मानव शरीर को एक मजबूत और सुरक्षित किले के रूप में देखा जाए, तो इम्यून सिस्टम उस किले की सबसे भरोसेमंद और सतर्क सेना है। बचपन और जवानी के दिनों में यह सेना हर हमले के लिए तैयार रहती है। वायरस हो या बैक्टीरिया, शरीर में घुसते ही इम्यून सिस्टम उन्हें पहचानकर खत्म करने में देर नहीं लगाता। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, यही सुरक्षा व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है और शरीर की लड़ने की ताकत पहले जैसी नहीं रह जाती।


चिकित्सकीय भाषा में उम्र के साथ शरीर की इस कमजोर होती सुरक्षा क्षमता को इम्यूनोडेफिशिएंसी कहा जाता है। यह कोई अचानक होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि एक लंबी और धीमी प्रक्रिया है, जिसका असर वर्षों बाद साफ दिखाई देने लगता है। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एस.के. बख्शी बताते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ हमारे शरीर की ‘आंतरिक सेना’ में कई स्तरों पर बदलाव आते हैं, जो हमें संक्रमणों और गंभीर बीमारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना देते हैं।

डॉ. बख्शी के अनुसार, हमारे इम्यून सिस्टम का पहला हिस्सा इननेट इम्यून सिस्टम होता है, जो किसी भी बाहरी कीटाणु के खिलाफ सबसे पहले मोर्चा संभालता है। उम्र बढ़ने के साथ इस प्रणाली की ताकत धीरे-धीरे घटने लगती है। शरीर में मौजूद न्यूट्रोफिल, मैक्रोफेज और नेचुरल किलर सेल्स जैसी महत्वपूर्ण कोशिकाएं सुस्त हो जाती हैं। ये वही कोशिकाएं हैं, जो वायरस और बैक्टीरिया को पहचानकर उन्हें नष्ट करने का काम करती हैं। जब इनकी सक्रियता कम होती है, तो शरीर संक्रमण से लड़ने में ज्यादा समय लेने लगता है। उम्र के साथ एक और बड़ी समस्या सामने आती है, जिसे इन्फ्लेमएजिंग कहा जाता है। इसमें शरीर के भीतर लगातार हल्के स्तर की सूजन बनी रहती है। यह सूजन बाहर से दिखाई नहीं देती, लेकिन अंदर ही अंदर शरीर को नुकसान पहुंचाती रहती है। यही स्थिति आगे चलकर मधुमेह, हृदय रोग, गठिया और अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। इसके अलावा सूजन की प्रक्रिया धीमी हो जाने से घाव भरने में भी ज्यादा समय लगता है और शरीर से कीटाणुओं को बाहर निकालने की क्षमता कम हो जाती है।

इम्यून सिस्टम का दूसरा और बेहद अहम हिस्सा होता है स्पेसिफिक या एडैप्टिव इम्यून सिस्टम, जो शरीर में पहले आ चुके कीटाणुओं को याद रखता है और दोबारा हमला होने पर तेजी से प्रतिक्रिया करता है। उम्र बढ़ने पर इस प्रणाली पर भी गहरा असर पड़ता है। डॉ. बख्शी बताते हैं कि थाइमस ग्रंथि, जहां टी-सेल्स का निर्माण होता है, उम्र के साथ सिकुड़ने लगती है। इसका सीधा मतलब यह है कि शरीर नए संक्रमणों से लड़ने के लिए नई टी-सेल्स नहीं बना पाता। साथ ही बी-सेल्स की कार्यक्षमता भी घटने लगती है, जो एंटीबॉडी बनाने का काम करती हैं। नतीजतन शरीर की एंटीबॉडी प्रतिक्रिया कमजोर हो जाती है। इसी कारण बुजुर्गों में वैक्सीन का असर युवाओं की तुलना में कम देखने को मिलता है और उन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है।

कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण बुजुर्गों में फ्लू, निमोनिया और कोविड-19 जैसे संक्रमण ज्यादा गंभीर रूप ले सकते हैं। इन बीमारियों से जटिलताएं पैदा होने और अस्पताल में भर्ती होने का खतरा भी बढ़ जाता है। कई मामलों में मामूली सा संक्रमण भी जानलेवा साबित हो सकता है, क्योंकि शरीर की लड़ने की क्षमता पहले जैसी नहीं रहती।

हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि उम्र के साथ इम्यून सिस्टम में बदलाव आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन सही जीवनशैली अपनाकर इसके असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। संतुलित और पौष्टिक आहार, जिसमें एंटीऑक्सीडेंट भरपूर हों, नियमित व्यायाम, पूरी नींद और तनाव से दूरी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाए रखने में मदद करती है। इसके अलावा समय-समय पर फ्लू, निमोनिया और शिंगल्स जैसे टीके लगवाना बुजुर्गों के लिए बेहद जरूरी है, ताकि गंभीर संक्रमणों से बचाव हो सके।

डॉ. बख्शी यह भी सलाह देते हैं कि नियमित हेल्थ चेकअप को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इससे किसी भी बीमारी या संक्रमण की पहचान शुरुआती स्तर पर हो जाती है और इलाज आसान हो जाता है।

कुल मिलाकर बढ़ती उम्र के साथ इम्यून सिस्टम में होने वाले बदलावों को समझना बेहद जरूरी है। जागरूकता, सही जीवनशैली और समय पर बचाव के उपाय अपनाकर बुजुर्ग उम्र में भी स्वस्थ, सुरक्षित और बेहतर जीवन जिया जा सकता है।

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