[रामानुजन: संख्याओं का ऋषि, जिसने अनंत को शब्द दिया]
[सूत्रों के साधक रामानुजन: जिसकी सोच ने अनंत को आकार दिया]
· प्रो. आरके जैन “अरिजीत”
जब मानवीय चेतना अपनी सीमाओं को लाँघकर अनंत से संवाद करने लगती है, तब इतिहास ऐसे महामानव को जन्म देता है जो गणित को केवल गणना नहीं, बल्कि साधना, दर्शन और आत्मानुभूति का शिखर बना देता है। ऐसे ही संख्याओं के द्रष्टा थे श्रीनिवास रामानुजन—सूत्रों के तपस्वी और अनदेखे सत्य के उद्घोषक। 22 दिसंबर उस दिव्य अवसर का स्मरण कराता है जब भारत की धरती पर ऐसी विलक्षण प्रतिभा का अवतरण हुआ, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि मानवीय मस्तिष्क की कोई सीमा नहीं होती, उसकी संभावनाएँ अनंत होती हैं। रामानुजन केवल गणितज्ञ नहीं थे; वे संख्याओं के द्रष्टा थे—ऐसे द्रष्टा जिन्होंने अनंत को केवल अनुभूत ही नहीं किया, बल्कि उसे सूत्रों, प्रतीकों और विचारों के माध्यम से संपूर्ण मानवता के लिए साकार कर दिया।
रामानुजन का जीवन इस सत्य का जीवंत प्रमाण है कि प्रतिभा सुविधाओं की दासी नहीं होती। तमिलनाडु के इरोड नगर में जन्मे उस बालक के पास न धन था, न प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान, न ही कोई अकादमिक संरक्षण। फिर भी उसके भीतर एक ऐसी अग्नि जल रही थी, जो किसी भी बाधा से बुझने वाली नहीं थी। आर्थिक तंगी, सामाजिक सीमाएँ और औपचारिक शिक्षा की कमी—ये सब उसके मार्ग की कठिनाइयाँ थीं, पर उसकी जिज्ञासा, उसका विश्वास और उसकी एकाग्रता उससे कहीं अधिक प्रबल थे। जहाँ सामान्य मनुष्य परिस्थितियों के आगे झुक जाता है, वहीं रामानुजन ने परिस्थितियों को अपने सामने झुकने पर विवश कर दिया।
बचपन से ही संख्याएँ उनके लिए मात्र अंक नहीं थीं। वे उनके मित्र थीं, उनके स्वप्न थीं, उनका संसार थीं। जहाँ अन्य बच्चे खेल-कूद में मग्न रहते, वहीं रामानुजन संख्याओं की आंतरिक संरचना को समझने में लीन रहते। स्कूल की गणित उनके लिए शीघ्र ही अपर्याप्त सिद्ध हुई, और उन्होंने स्वयं ज्ञान की खोज आरंभ की। पंद्रह वर्ष की आयु में जब उन्हें जी. एस. कार की प्रसिद्ध गणितीय पुस्तक प्राप्त हुई, तो वह उनके लिए केवल पुस्तक नहीं रही—वह उनके जीवन का मार्गदर्शक ग्रंथ बन गई। उसी क्षण से उनकी नोटबुक्स में ऐसे सूत्र उतरने लगे, जिन्हें समझने में विश्व को आने वाले दशकों तक संघर्ष करना पड़ा।
रामानुजन के लिए गणित एक आध्यात्मिक अनुभूति थी। वे मानते थे कि उनके सूत्र किसी बौद्धिक प्रयास का परिणाम नहीं, बल्कि ईश्वरीय अनुकंपा का प्रसाद हैं। उनकी कुलदेवी नमगिरि उनके लिए प्रेरणा का स्रोत थीं। वे गणित और ईश्वर को अलग-अलग नहीं देखते थे; उनके लिए दोनों एक ही सत्य के दो रूप थे। अनंत श्रेणियाँ, निरंतर भिन्न, विभाजन फलन, मॉड्यूलर समीकरण और मॉक थीटा फलन—ये सब उनके लिए केवल गणितीय संरचनाएँ नहीं थीं, बल्कि ब्रह्मांड की उस भाषा के अक्षर थे, जिनमें सृष्टि स्वयं संवाद करती है। π (पाई) के लिए दी गई उनकी श्रृंखलाएँ आज भी आधुनिक गणना प्रणालियों का आधार हैं, और उनके सिद्धांत आधुनिक भौतिकी से लेकर ब्रह्मांड विज्ञान तक में प्रयुक्त हो रहे हैं।
1913 में लिखा गया उनका पत्र गणित के इतिहास की दिशा बदल देने वाला सिद्ध हुआ। जब यह पत्र कैम्ब्रिज के महान गणितज्ञ जी. एच. हार्डी के हाथ लगा, तो वे पहले चकित हुए, फिर विस्मित और अंततः नतमस्तक। दर्जनों मौलिक सूत्रों से भरे उस पत्र ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रतिभा किसी भौगोलिक सीमा की मोहताज नहीं होती। कैम्ब्रिज में हार्डी और रामानुजन की जोड़ी ने संख्या सिद्धांत को नई ऊँचाइयाँ दीं। हार्डी–रामानुजन सूत्र आज भी गणित की आधारशिला माने जाते हैं। स्वयं हार्डी ने स्वीकार किया कि रामानुजन जैसी प्रतिभा जीवन में एक बार मिलती है—या शायद कभी नहीं।
रामानुजन की नोटबुक्स केवल काग़ज़ों का संग्रह नहीं, बल्कि गणित के भविष्य का उद्घोष हैं। उनमें संचित हजारों सूत्र इस सत्य की साक्षी हैं कि उनकी दृष्टि अपने युग की सीमाओं से बहुत आगे तक पहुँच चुकी थी। उनकी मॉक थीटा फलन जैसी गूढ़ अवधारणाएँ इक्कीसवीं सदी में जाकर अपनी सम्पूर्ण अर्थवत्ता में समझी जा सकीं, जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि रामानुजन किसी एक कालखंड के गणितज्ञ नहीं थे। वे गणित के आने वाले युगों के शिल्पकार थे—ऐसे दूरदर्शी जिनका सृजन समय से आगे चल रहा था। उनका कार्य आज भी विश्वभर के शोधकर्ताओं को नई दिशाएँ प्रदान करता है और यह सिद्ध करता है कि सच्ची प्रतिभा घड़ी की सुइयों से नहीं बँधती, वह समय को स्वयं दिशा देती है।
इसी असाधारण योगदान के सम्मान में 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया गया। यह निर्णय केवल एक महान व्यक्ति को सम्मान देने का औपचारिक कार्य नहीं, बल्कि उस दृष्टिकोण का सार्वजनिक स्वीकार है जो गणित को भय का विषय नहीं, बल्कि संभावनाओं का संसार मानता है। यह दिन विद्यार्थियों को यह संदेश देता है कि गणित याद करने का नहीं, बल्कि सोचने, प्रश्न करने और खोजने का विषय है। रामानुजन का जीवन हमें सिखाता है कि साधन सीमित हो सकते हैं, परिस्थितियाँ कठिन हो सकती हैं, किंतु यदि संकल्प असीम हो, तो असंभव जैसा कुछ भी नहीं रह जाता।
आज, 22 दिसंबर को, जब हम श्रीनिवास रामानुजन की जयंती का स्मरण करते हैं, तब हम केवल एक महान गणितज्ञ को याद नहीं करते—हम उस चेतना को नमन करते हैं जिसने संख्याओं को आत्मा दी। हम उस अनंत दीप के सम्मुख नतमस्तक होते हैं, जो गणित के मंदिर में युगों से प्रज्वलित है और युगों तक प्रज्वलित रहेगा। समय बदलेगा, सिद्धांत विकसित होंगे, तकनीक नई ऊँचाइयों को छुएगी, किंतु रामानुजन की साधना, उनका तेज और उनकी प्रेरणा कभी क्षीण नहीं होगी। जब तक संख्याएँ जीवित रहेंगी, जब तक समीकरण गूँजते रहेंगे, श्रीनिवास रामानुजन अमर रहेंगे—अनंत को स्पर्श कर उसे संपूर्ण मानवता को अर्पित करने वाले महामानव के रूप में।

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