मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में नक्सल विरोधी अभियान को बड़ी सफलता मिली है। प्रदेश के इतिहास में पहली बार एक साथ 10 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इनमें 77 लाख रुपए के इनामी हार्डकोर नक्सली कबीर उर्फ महेंद्र समेत नौ अन्य नक्सली शामिल हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में ये सभी नक्सली औपचारिक रूप से हथियार डालेंगे। मुख्यमंत्री आज दोपहर 3 बजे बालाघाट पहुंचेंगे।
सरेंडर करने वालों में कान्हा भोरमदेव (केबी) डिवीजन से जुड़े नक्सली शामिल हैं। इनमें चार महिला और छह पुरुष नक्सली हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार सभी को पुलिस लाइन में सुरक्षित रखा गया है।
सुरक्षाबलों के दबाव और आत्मसमर्पण नीति का असरपुलिस सूत्रों के अनुसार, नक्सलियों का यह सरेंडर प्रदेश की नक्सल आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर हुआ है। प्रदेश सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सल समस्या के समाधान की समय-सीमा तय की है। इसके साथ ही जंगलों में सुरक्षाबलों की लगातार बढ़ती दबिश ने नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। यह घटनाक्रम शनिवार को लांजी क्षेत्र में छत्तीसगढ़ सीमा से लगे माहिरखुदरा में हुई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के बाद सामने आया। मुठभेड़ के कुछ घंटे बाद शनिवार रात करीब 10 बजे सभी नक्सली बालाघाट पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने पहुंचे। इससे पहले 1 नवंबर को महिला नक्सली सुनीता ने भी शांति वार्ता की इच्छा जताते हुए हथियार डाले थे।
वनकर्मी की मदद से हुआ बड़ा सरेंडरवनकर्मी गुलाब उइके ने पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताया। उनके अनुसार, गुरुवार रात दो नक्सली कैंप पहुंचे और सरेंडर की इच्छा जताई। उन्होंने छत्तीसगढ़ के रेनाखाड़ में आत्मसमर्पण की बात कही, लेकिन उइके ने वहां ले जाने से इनकार कर दिया। इस पर नक्सलियों ने कहा कि वे बालाघाट या मंडला में सरेंडर करना चाहते हैं। नक्सलियों ने कलेक्टर से संपर्क की इच्छा भी जताई, लेकिन नंबर न मिल पाने पर उन्होंने उइके से शनिवार को बैगा टोला के पास वाहन के साथ मिलने को कहा। निर्धारित समय पर जब उइके वाहन लेकर पहुंचे, तो वहां सभी 10 नक्सली मौजूद थे। उन्हें वाहन में बैठाकर बालाघाट पुलिस लाइन लाया गया।
नक्सल संगठन कमजोर, ग्रामीणों ने भी छोड़ा साथएसडी आदित्य मिश्रा ने बताया कि 1980 के बाद नक्सल प्रभावित इलाकों में यह सबसे बड़ा परिवर्तन है। एक समय तीन दर्जन से अधिक नक्सली सक्रिय थे, लेकिन अब संख्या दो दर्जन से भी कम रह गई है। पुलिस के बड़े स्तर पर चल रहे ऑपरेशनों और ग्रामीण इलाकों में पुलिस कैंप खुलने से नक्सलियों को मिलने वाला जनसमर्थन कम हो गया है।

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