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मेवे-मसाले बेचने वाले निगम के रिकॉर्ड में भंगार व्यापारी, सियागंज में आधे लाइसेंस गलत !Scrap dealers in corporation records selling dry fruits and spices, half the licenses in Siyaganj are wrong!


इंदौर: प्रदेश की सबसे बड़ी थोक किराना मंडी सियागंज में मसालों से लेकर सूखे मेवे बेचने वाले व्यापारी नगर निगम के रिकॉर्ड में स्क्रैप यानी भंगार का व्यापार कर रहे हैं। एक-दो नहीं बल्कि करीब 60 प्रतिशत व्यापारियों को नगर निगम से ऐसे ही लाइसेंस जारी हुए हैं।


निगम को लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हर साल

10-15 वर्षों से ऐसे ही लाइसेंस पर व्यापारी कारोबार कर रहे हैं और उसका नवीनीकरण भी होता रहा। लाइसेंस बनाने वाले एजेंट ने कमीशन लेकर इस खेल को अंजाम दिया। निगम को लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हर साल हुआ और अब व्यापारी घबराए हुए हैं कि उन पर कार्रवाई न हो जाए।

कई लाइसेंस पर कोड के रूप में स्क्रैप डीलर

नगर निगम की ओर से बाजार में लाइसेंस नवीनीकरण के लिए एक शिविर करीब तीन दिन तक लगाया गया था। इसी दौरान कम से कम 550 गलत लाइसेंस निगम की पकड़ में आ चुके हैं। ऐसे तमाम व्यापारी भी निगम के कर्मचारियों के पास पहुंचे जिनके लाइसेंस 2010 और उससे पहले के बने हुए हैं।

लाइसेंस के प्रकार में खाद्य पदार्थों के लिए चिह्नित श्रेणियों के अलावा अन्य व्यवसाय लिखा गया है। कई लाइसेंस पर कोड के रूप में स्क्रैप डीलर भी लिखा गया है। इतने वर्षों में लगातार गलत बने इन लाइसेंसों का नवीनीकरण भी होता रहा। सियागंज में दो हजार से ज्यादा व्यापारी हैं। ये किराना, सूखे मेवे, मसालें का व्यापार कर रहे हैं। व्यापारी एसोसिएशन भी मान रहा है कि इनमें से करीब 60 प्रतिशत के लाइसेंस गलत जारी हुए हैं।

एजेंट और कमीशन का खेल

नगर निगम ने लाइसेंस के लिए अलग-अलग प्रकार के लिए अलग कोड देने का वर्गीकरण साल 2002 से लागू किया। इसमें लाइसेंस फीस का भी अंतर आ जाता है। थोक व रिटेल कारोबार के लिहाज से भी फीस अलग-अलग होती है। खाद्य व थोक किराना व्यापारी को एक हजार या उससे ज्यादा लाइसेंस शुल्क देना होता है। जबकि स्क्रैप जैसे रिटेल व अवर्गीकृत कारोबार के लिए 300 से 400 रुपये लाइसेंस फीस लगती रही।

कम शुल्क वाली श्रेणी में लाइसेंस बनवाकर दिया

सियागंज के व्यापारी जिनके लाइसेंस गलत निकले उन्होंने एक एजेंट के जरिए लाइसेंस बनवाए। एजेंट ने लाइसेंस बनाने के लिए फीस तो डेढ़ से दो हजार रुपये प्रति लाइसेंस ली, लेकिन कम से कम शुल्क वाली श्रेणी में लाइसेंस बनवाकर दे दिया। इस तरह उसकी जेब में ज्यादा से ज्यादा कमीशन चला गया। व्यापारी अब घबरा रहे हैं कि इतने वर्षों से गलत लाइसेंस पर कारोबार करने पर उन पर निगम को जुर्माना न लगा दे।

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