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भारतीय कोर्ट के पास विदेश में बैठे आर्बिट्रेशन के लिए आर्बिट्रेटर नियुक्त करने का अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट Indian courts have no jurisdiction to appoint arbitrators for arbitrations held abroad: Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेशनल कमर्शियल आर्बिट्रेशन में आर्बिट्रेटर नियुक्त करने की मांग वाली याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब मुख्य कॉन्ट्रैक्ट विदेशी कानून के तहत आता है और विदेश में बैठे आर्बिट्रेशन का प्रावधान करता है तो भारतीय कोर्ट्स का अधिकार क्षेत्र खत्म हो जाता है, चाहे किसी भी पार्टी की राष्ट्रीयता भारतीय हो। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की बेंच ने एक ऐसे मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा, जिसका मुख्य मुद्दा 06.06.2019 के बायर-सेलर एग्रीमेंट (BSA) से जुड़ा विवाद था। इसमें साफ तौर पर कहा गया कि आर्बिट्रेशन "बेनिन में होगा" और एग्रीमेंट बेनिन के कानून के तहत होगा। याचिकाकर्ता बालाजी स्टील ने घरेलू आर्बिट्रेशन के लिए बहस करने के लिए ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ (GoC) डॉक्ट्रिन का इस्तेमाल करने के लिए भारत में बैठे आर्बिट्रेशन क्लॉज़ वाले बाद के एंसिलरी कॉन्ट्रैक्ट्स पर भरोसा किया।



कोर्ट ने इस तरीके को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि BSA मुख्य कॉन्ट्रैक्ट था, जबकि बाद के सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स और हाई सीज़ सेल एग्रीमेंट्स सिर्फ़ खास शिपमेंट को पूरा करते थे। चूंकि कथित उल्लंघन BSA से ही हुए थे, इसलिए बेनिन कानूनी सीट थी। कोर्ट ने कहा, “तथ्यों के आधार पर भी BSA और इसका एडेंडम मदर एग्रीमेंट बनाते हैं, जिसमें बेनिन को आर्बिट्रेशन की कानूनी जगह और बेनिन के कानून को गवर्निंग और क्यूरियल कानून के तौर पर साफ और जानबूझकर चुना गया। बाद के सेल्स कॉन्ट्रैक्ट और HSSA सिर्फ़ सहायक हैं, जो अलग-अलग शिपमेंट के परफॉर्मेंस को आसान बनाते हैं और BSA के विवाद सुलझाने के फ्रेमवर्क को ओवरराइड नहीं कर सकते। इस तरह मामले के सिद्धांत और असल हालात दोनों में BSA में आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट लागू होता है। याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए विवाद सीधे BSA से पैदा हुए और पार्टियों ने उनके फैसले के लिए बेनिन में आर्बिट्रेशन को चुना है। इसलिए 1996 एक्ट के सेक्शन 11(6) के तहत पार्ट I और मौजूदा रिक्वेस्ट का इस्तेमाल करना असल में गलत है, कानूनी तौर पर सही नहीं है और कानूनी स्कीम के साथ-साथ पार्टियों के कॉन्ट्रैक्ट के डिज़ाइन की ऑटोनॉमी के भी खिलाफ है।”

कोर्ट ने आगे कहा, “पिटीशनर की इस कोर्ट को अधिकार देने की कोशिश, अलग-अलग पार्टियों के साथ किए गए और जिनमें काफी अलग आर्बिट्रेशन क्लॉज़ हैं, एक अलग तरह के सहायक कॉन्ट्रैक्ट का इस्तेमाल करके पूरी तरह से गलत है और 1996 के एक्ट के मूल में मौजूद क्षेत्रीय सिद्धांत के खिलाफ है। इसलिए यह याचिका न सिर्फ नामंज़ूर है, बल्कि कानून के हिसाब से और याचिकाकर्ता के अपने पिछले लिटिगेशन के व्यवहार से पैदा हुए एस्टॉपेल की वजह से भी बंद है।”कोर्ट ने भारत में आर्बिट्रेशन का इस्तेमाल करने के लिए ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ सिद्धांत पर अपील करने वाले के भरोसे को भी खारिज कर दिया। बेंच ने कॉक्स एंड किंग्स लिमिटेड बनाम SAP इंडिया (P) लिमिटेड, 2023 SCC ऑनलाइन SC 1634 का हवाला देते हुए कहा, “यह सिद्धांत बहुत कम और सिर्फ़ तभी लागू होता है, जब इस बात का पक्का सबूत हो कि सभी संबंधित पार्टियों का आपसी इरादा किसी ऐसे व्यक्ति को आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट से बांधने का है, जिसने साइन नहीं किया। ऐसा इरादा बातचीत में सीधे तौर पर हिस्सा लेने, कॉन्ट्रैक्ट को पूरा करने, या पूरे ट्रांज़ैक्शन में निभाई गई भूमिका से पता लगाया जा सकता है। हालांकि, सिर्फ़ शेयरहोल्डिंग का ओवरलैप होना, या यह बात कि एंटिटीज़ एक ही कॉर्पोरेट फ़ैमिली से जुड़ी हैं, अपने आप में काफ़ी नहीं है।” इसके साथ ही आर्बिट्रेशन पिटीशन खारिज कर दी गई।

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