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मजबूरी में ही सियासत में वारिस बनाई गईं हैं बेटियां Daughters have been made heirs in politics out of compulsion.

 


                        

   • रवि उपाध्याय 

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के परिवार में जिस तरह उनकी दूसरे नम्बर की बेटी रोहाणी यादव से जिस तरह पिता लालू यादव,मां और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की मौजूदगी में जिस तरह लालू यादव के छोटे बेटे, बिहार के उप मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव ने अपनी बड़ी बहन रोहिणी आचार्य से जो दुर्व्यवहार किया है उसकी बिहार के साथ पूरे देश में चर्चा है। इस घटना को महज़ सियासी परिवार का निजी मामला कह कर टाला नहीं जा सकता। क्योंकि पब्लिक लाइफ़ में कुछ भी निजी नहीं होता है।यह घटना अकेले लालू यादव के परिवार की ही घटना नहीं है। यह दुनिया के पितृ सत्तात्मक परिवार की एक कड़वी सच्चाई है। 

शिक्षित या अशिक्षित परिवार से इसका उसी तरह कोई मतलब नहीं है। यह ठीक वैसा ही है जैसा पहले यह आम धारणा बनाने का प्रयास किया जाता था कि अशिक्षा के कारण आतंकवादी बनते हैं। लेकिन इंजिनियर, डॉक्टर डिग्री धारी आतंकियों के पकड़े जाने से यह धारणा की असलियत हमारे सामने आ गई है। ऐसा माना जाता है कि अशिक्षित अथवा जाहिल लोग सर तन से जुदा तो कर सकते हैं, वे बम विस्फोट तो कर सकते हैं परंतु वे बम नहीं बना सकते हैं।ठीक इसी तरह बेटियों के ऊपर बेटों को तरजीह देने की मानसिकता शिक्षित हों या अशिक्षित सभी परिवारों में हैं। फिर चाहे वे लोग एशियन हों या यूरोपियन या अफ्रीकी ही क्यों न हो। यह एक आदिम मानसिकता है। जो सियासत से लेकर हर एक क्षेत्र में सदियों से व्याप्त रही है।

वास्तविकता तो यह है कि आज और अतीत में हम जिन महिलाओं को राजनीति में सक्रिय या उच्च पदों पर आसीन देखते हैं वे इसलिए है क्योंकि उन परिवारों कोई बेटा नहीं था। इसलिए बेटी को अपना वारिस बनाना उनकी मजबूरी रही। वरना परिवार के वारिस के रूप में प्रत्येक मां - बाप की पहली पसंद बेटा ही होता है और वही उनकी आशा का केंद्र बिंदु होता है। बेटियों को तो सदैव से पराया और दूसरी वरीयता में रखा जाता है। उससे केवल त्याग की अपेक्षा की जाती है। 

इसका ताजा और सामयिक उदाहरण लालू यादव की बेटी रोहाणी ही है। उसने किडनी की बीमारी से पीड़ित और जीवन मौत से संघर्ष कर रहे अपने पिता को बिना कुछ हिला हवाला किए अपनी एक किडनी दान में दे कर उनकी जान बचाई। उस समय उनके दोनो बेटे और अन्य छह बेटियां चुप रहे। उसके बदले में रोहिणी को क्या मिला ? तिरस्कार, प्रताड़ना और चप्पलों से पिटाई। यह सब रोहिणी की मां राबड़ी देवी और वो पिता लालू यादव यह टुकुर टुकुर देखते रहे जिन की सांसे आज केवल बेटी के कारण चल रही हैं। बेटा तो अपने बीमार पिता को तभी अपने चुनाव क्षेत्र में मंच पर लेकर जाता है जब वोटर को भावनात्मक रूप से ब्लैक मेल करना हो।

विरासत बचाने आगे की जाती हैं बेटियां 

आइए इस बारे में हम इतिहास में भी झांक कर देखते हैं। बारहवीं सदी में एक बेगम हुईं है रजिया सुल्तान उनका जन्म 1205 में नवाब शमसुद्दीन इल्तुतमिश के यहां बदायूं में हुआ था। पिता ने बड़े बेटे को वारिस घोषित किया। उसकी कम उम्र में मौत के बाद रजिया को नबाव बनाया गया। वे केवल 1236 से 1240, तक दिल्ली की गद्दी पर बैठीं पर कट्टर पंथियों को एक औरत का गद्दी पर बैठना रास नहीं आया और साजिश कर उनकी हत्या कर दी गई।

मार्गेट थ्रेचर 

ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रहीं मार्गेट थ्रेचर अपने पिता की अकेली बेटी थीं। अपनी दृढ़ता की वजह से उन्हें आयरन लेडी कहा गया। उन्हें मजबूरी वश राजनीति में तभी उतारा गया जब परिवार के सामने कोई विकल्प नहीं था। भाई म्युरिएल को पॉलिटिक्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

इंदिरा गांधी 

भारत की आयरन लेडी के रुप में प्रसिद्ध श्रीमती इंदिरा गांधी को उनकी पिता,देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राजनीति में तभी उतारा जब उनके समक्ष कोई दूसरा विकल्प नहीं था। बता दें कि इंदिरा जी अपने पिता की एक मात्र संतान थीं। अब बात जवाहर लाल नेहरू की तो उनकी दो बहनें,कृष्ण हठीसिंह और विजय लक्ष्मी पंडित थीं। उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने जब राजनीति में विरासत की बात आई तो बेटे जवाहर लाल को ही आगे बढ़ाया।

इंदिरा गांधी को कोई बेटी नहीं थी इस कारण से उन्होंने पहले अपने छोटे बेटे संजय गांधी को और संजय गांधी की मृत्यु उपरांत राजीव गांधी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 

सोनिया गांधी 

राजीव गांधी की असामायिक मृत्यु के बाद सोनिया गांधी ने प्रतिभाशाली बेटी प्रियंका वाडरा की जगह अपने मनमौजी बेटे राहुल गांधी को परिवार का सियासी वारिस चुन कर आगे बढ़ा रहीं हैं। 

शरद पवार 

सुप्रिया सुले भी महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार की एक मात्र संतान हैं। इसलिए सुप्रिया सुले राजनीति में सक्रिय हैं। अन्यथा वे भू नेपथ्य में कहीं होतींं।

करुणानिधि 

अब बात दक्षिण भारत में बेटों को प्रधानता देने की तो तमिलनाडु के सीएम रहे करुणा निधि ने राज्य की राजनीति में बेटे स्टालिन को आगे बढ़ाया। बेटी कनिमोझी को पीछे रखा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने बेटी किरण राव को पीछे रखा और बेटे को सियासत में आगे बढ़ाया। 

मुफ्ती परिवार 

जम्मू कश्मीर में पीडीपी के नेता और वहां के मुख्यमंत्री रहे मोहम्मद सईद मुफ्ती ने अपनी बड़ी बेटी महबूबा मुफ्ती को अपनी राजनीतिक विरासत इसलिए सौंपी क्योंकि उनके कोई बेटा नहीं था।

मायावती

मायावती का चयन बसपा के सुप्रीमों कांशीराम ने किया था। उन्होंने उन्हें ही अपना राजनीतिक वारिस बनाया। बताया जाता है कि कांशीराम के भी कोई पुत्र नहीं है।

ऐसी महिला नेताओं में सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त, पूनम महाजन का नाम लिया जा सकता है। राजस्थान की मुख्य मंत्री रहीं वसुंधरा राजे, उनकी छोटी बहन यशोधरा राजे ने राजनीति में अपना रास्ता खुद बनाया। यशोधरा को अपना माता राजमाता विजयराजे सिंधिया का सहयोग मिला। वहीं राजपरिवार का होने के चलते वसुंधरा राजे अपना मां विजया राजे सिंधिया की तरह सक्रिय और लोकप्रिय रहीं।

वृंदा करात 

माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात विवाह के बाद अपने पति प्रकाश करात के प्रोत्साहन के बाद राजनीति में सक्रिय हुईं और सांसद बनीं। प्रकाश करात खुद माकपा के वरिष्ठतम नेता हैं।

ममता बनर्जी 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का उल्लेख किए बिना आलेख के साथ न्याय नहीं होगा। वे शायद एक मात्र ऐसी नेता हैं जिन्होंने अपनी संघर्षशीलता से अपना रास्ता खुद बनाया और करीब दो दशक से अधिक समय तक पश्चिम बंगाल से साम्यवादी शासन का पतन किया।

( लेखक राजनैतिक समीक्षक और एक व्यंग्यकार हैं। )

 18 नवम्बर 2025

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