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फेफड़ों को साफ करने के लिए अपनाएं ये 6 प्राकृतिक तरीका, बाहर निकल आएगी सारी गंदगीFollow these 6 natural ways to clean your lungs, all the dirt will come out.

 आपका फेफड़े आपके शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं. हर सांस के साथ, आप न केवल अपने फेफड़ों में हवा भरते हैं, बल्कि प्रदूषक, धूल, जलन पैदा करने वाले पदार्थ या धुआं जैसे हानिकारक पदार्थ भी अपने अंदर लेते हैं. ये कारक आपके फेफड़ों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है. इससे फेफड़ों की बीमारी हो सकती है. इसलिए, स्वस्थ रहने के लिए अपने फेफड़ों को डिटॉक्सीफाई करना जरूरी है. इस खबर में जानें कि नेचुरल तरीके से आप अपने फेफड़े की कैसे सफाई कर सकते हैं.


इन तरीकों को अपनाकर आप अपने लंग को डिटॉक्सीफाई कर सकते हैं.

तुलसी के सेवन के फायदेतुलसी को होली बेसिल भी कहा जैता हैं, इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं.नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिनऔर कई अध्ययनों से पता चला है कि तुलसी में मौजूद ये फाइटोकेमिकल्स वायुमार्ग में सूजन को कम करने और श्वसन संबंधी जकड़न को दूर करने में मदद करते हैं. तुलसी के पत्तों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें, या तो सीधे सेवन करके या चाय के रूप में, जो फेफड़ों को डिटॉक्सीफाई करने और सांस लेने में आसानी में मदद कर सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि तुलसी का सेवन नियमित रूप से सीमित मात्रा में ही करना चाहिए.

वासाका के लाभवासका, जिसे आमतौर पर मालाबार नट के नाम से जाना जाता है, अपने फेफड़ों को साफ करने वाले गुणों के लिए जानी जाने वाली एक यूनिक जड़ी-बूटी है. अध्ययनों से पता चला है कि वासाका में मौजूद एल्कलॉइड्स में ब्रोन्कोडायलेटर और कफ निस्सारक प्रभाव होते हैं, जो खांसी से राहत दिलाने, कफ को बाहर निकालने और लंग फंक्शन में सुधार करने में मदद करते हैं.इंडियन जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसीश्वसन संबंधी बीमारियों के इलाज में वासाका की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालता है.अपनी दैनिक दिनचर्या में वासाका को शामिल करने से वायुमार्ग साफ हो सकता है और रेस्पिरेटरी हेल्थ में सुधार हो सकता है.

अदरक के फायदेअदरक के शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी माइक्रोबियल गुण इसे फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए एक मूल्यवान जड़ी-बूटी बनाते हैं. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि अदरक का अर्क रेस्पिरेटरी हेल्थ के विरुद्ध सुरक्षात्मक प्रभाव प्रदर्शित करता है और वायुमार्ग में सूजन को कम करने में मदद कर सकता है. अपने आहार में अदरक को शामिल करने से, चाहे ताजा हो, चाय के रूप में हो, या हर्बल मिश्रण के रूप में हो, फेफड़ों को साफ करने और रेस्पिरेटरी फंक्शन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है.

मुलेठी की जड़आयुर्वेद में यष्टिमधु के नाम से जानी जाने वाली मुलेठी की जड़ का उपयोग सदियों से श्वसन संबंधी बीमारियों को कम करने के लिए किया जाता रहा है. अध्ययनों से पता चला है कि मुलेठी की जड़ में मौजूद कंपाउंड में कफ निस्सारक गुण होते हैं, जो श्वसन मार्ग से बलगम को बाहर निकालने में मदद करते हैं. जर्नल ऑफ एथनोफार्माकोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार, मुलेठी की जड़ में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो इसे ब्रोंकाइटिस और गले में खराश जैसी स्थितियों के लिए फायदेमंद बनाता है. अपनी दिनचर्या में मुलेठी की जड़ की चाय या सप्लीमेंट्स को शामिल करने से फेफड़ों को साफ करने और श्वसन संबंधी तकलीफों को कम करने में मदद मिल सकती है.

हल्दी के फायदेहल्दी, जो अपने शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए जानी जाती है, लंग हेल्थ के लिए एक और लाभकारी जड़ी-बूटी है. हल्दी में मौजूद एक्टिव कंपाउंड, करक्यूमिन, का श्वसन संबंधी स्थितियों पर इसके चिकित्सीय प्रभावों के लिए व्यापक अध्ययन किया गया है. जर्नल ऑफ क्लिनिकल बायोकैमिस्ट्री एंड न्यूट्रिशन में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि करक्यूमिन वायुमार्ग की सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करके अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य श्वसन डिसऑर्डर के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है. अपने आहार में हल्दी को शामिल करने या पूरक के रूप में इसका सेवन करने से फेफड़ों को साफ और स्वस्थ बनाए रखने में मदद मिल सकती है.

पिप्पली (लंबी मिर्च)पिप्पली, या लंबी मिर्च, पश्चिम में एक कम ज्ञात जड़ी-बूटी है, लेकिन आयुर्वेद में इसके श्वसन संबंधी लाभों के लिए इसे बहुमूल्य माना जाता है. अध्ययनों से पता चला है कि पिप्पली में मौजूद बायोएक्टिव कंपाउंड वायुमार्गों को शिथिल करने और श्वसन क्षमता में सुधार करने में मदद करते हैं. पिप्पली में कफ निस्सारक गुण भी होते हैं, जो कफ को बाहर निकालने और श्वसन अवरोध से राहत दिलाने में मदद करते हैं.जर्नल ऑफ एथनोफार्माकोलॉजी में प्रकाशित शोध अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी श्वसन संबंधी स्थितियों के प्रबंधन में पिप्पली की क्षमता पर प्रकाश डालता है.अपनी स्वास्थ्य दिनचर्या में पिप्पली चूर्ण या सप्लीमेंट्स को शामिल करने से फेफड़ों की सफाई और श्वसन क्रिया में सुधार हो सकता है.

भारत में रेस्पिरेटरी हेल्थ एक बड़ी समस्या

भारत में रेस्पिरेटरी प्रॉब्लम एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गई हैं, जिससे लाखों लोग प्रभावित हैं. करोड़ों लोग श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं. भारत में अस्थमा लगभग 3.5 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है. वहीं, सीओपीडी भारत में श्वसन संबंधी प्रमुख समस्याओं में से एक है, जिससे 5.523 करोड़ लोग प्रभावित हैं. खराब एयर क्वालिटी अस्थमा, सीओपीडी और इंफेक्शन जैसी श्वसन संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देता है. वाहन प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण गतिविधियां और कृषि दहन वायु को प्रभावित करते हैं. इसके अलावा, घरेलू वायु प्रदूषण भी श्वसन संबंधी बीमारियों में योगदान देता है. अन्य कारणों में तंबाकू धूम्रपान, उम्र, सर्दी-जुकाम और क्रोनिक साइनसाइटिस शामिल हैं.

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