गैर-राजग (NDA) शासित राज्यों में कम से कम 33 विधेयक अभी भी राज्यपाल या राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए लंबित हैं। इससे संबंधित प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की राय के मद्देनजर यह संख्या महत्वपूर्ण है।
राज्यपाल या राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार कर रहे 33 विधेयकों में से 19 बंगाल से, 10 कर्नाटक से, तीन तेलंगाना से और एक केरल से है।
क्या बोले विधानसभा स्पीकर?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बंगाल विधानसभा के स्पीकर बिमान बनर्जी ने गुरुवार को कहा कि जब कोई विधेयक बिना किसी स्पष्टीकरण के अटका रहता है तो उसका महत्व कम हो जाता है।
उन्होंने कहा, ''विधेयक लोगों के फायदे के लिए लाया जाता है। सरकार इसे लाती है, इस पर बहस होती है और असहमति दर्ज की जाती है। पास होने के बाद यह राज्यपाल के पास जाता है। वह मंजूरी दे सकते हैं या मना कर सकते हैं, या सिफारिश के साथ वापस कर सकते हैं। अगर वापस किया जाता है और फिर पास किया जाता है, तो उन्हें मंजूरी देनी होगी।''
कर्नाटक में 10 विधेयक लंबित
कर्नाटक विधानसभा से पारित एवं लंबित 10 विधेयकों में सिविल ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने वाला विधेयक भी शामिल है। ये विधेयक राज्यपाल के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास लंबित हैं।
तेलंगाना में आरक्षण से संबंधित विधेयक लंबित
तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण से संबंधित विधेयक राज्यपाल के पास लंबित है। राज्यपाल के पास एक और प्रस्ताव लंबित है, जिसमें अगस्त में राज्यपाल के कोटे के तहत पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन को एमएलसी नामित करना है।
मंजूरी के लंबित रहते अजहरुद्दीन ने हाल में मंत्री के तौर पर शपथ ली है। केरल विधानसभा से पारित विधेयक राज्य के अलग-अलग विश्वविद्यालयों लिए वाइस चांसलर, टीचिंग स्टाफ और अलग-अलग चांसलर की नियुक्ति से जुड़ा है

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