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भारत को अब सतर्क रहकर स्पष्ट रणनीतिक दिशा तय करनी होगी India must now remain vigilant and set a clear strategic direction.


प्रणव बजाज

भारत और बांग्लादेश के बीच के रिश्ते, जो कभी दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग का आदर्श उदाहरण माने जाते थे, अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से गंभीर तनाव और अनिश्चितता के दौर में पहुंच चुके हैं। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने ऐसी नीतियां अपनाई हैं, जिन्हें भारत में खुली शत्रुता और रणनीतिक उकसावे के रूप में देखा जा रहा है। उनके शासन में पाकिस्तान से नजदीकी, चीन से बढ़ते रिश्ते, अल्पसंख्यकों पर हिंसा और भारत के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी ने संकेत दिया है कि ढाका अब सहयोग के बजाय टकराव की दिशा में आगे बढ़ रहा है। सबसे हालिया विवाद तब भड़का, जब अक्तूबर 2025 में ढाका में यूनुस ने पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख जनरल साहिर शमशाद मिर्जा को एक कलाकृति 'आर्ट ऑफ ट्रायम्फ' भेंट की। 



बताया जाता है कि इस कलाकृति के कवर पर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल) को 'ग्रेटर बांग्लादेश' के नक्शे में दिखाया गया है। यह उस मानसिकता को उजागर करता है, जो बांग्लादेश की मौजूदा सरकार को पाकिस्तान से जोड़ती है और भारत-विरोधी नीति को बढ़ावा देती है। ढाका ने अब तक इस पर कोई सफाई नहीं दी है, जिससे यह संदेह और गहराता है कि यह सुनियोजित था।

यह अकेला उदाहरण नहीं है। यूनुस ने कई बार भारत के उत्तर-पूर्व को लैंडलॉक्ड बताते हुए कहा है कि बांग्लादेश इस क्षेत्र का 'महासागर का संरक्षक' है। यह बयान भले ही भौगोलिक टिप्पणी लगे, लेकिन इसमें निहित संकेत भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाले हैं। इससे पहले यूनुस के करीबी, सेवानिवृत्त मेजर जनरल ए.एल.एम. फजलुर रहमान ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद कहा था कि यदि भारत पाकिस्तान पर हमला करे, तो बांग्लादेश को चीन के साथ मिलकर उसके पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र पर कब्जा कर लेना चाहिए। इससे पूरे क्षेत्र में चिंता फैल गई। रहमान मौजूदा अंतरिम सरकार द्वारा गठित नेशनल इंडिपेंडेंट कमीशन के अध्यक्ष हैं, इसलिए उनके बयान को सामान्य राय नहीं माना जाना चाहिए। हालांकि बाद में यूनुस सरकार ने इस बयान से दूरी बनाई और कहा कि यह सरकार का आधिकारिक रुख नहीं है। लेकिन भारत के रणनीतिक हलकों में यह बात गहराई से महसूस की जा रही है कि बांग्लादेश में इस समय जो राजनीतिक सोच उभर रही है, वह भारत-विरोधी है और इसे यूनुस सरकार मौन स्वीकृति दे रही है।शेख हसीना के शासन काल में भारत-बांग्लादेश संबंध सहयोग और विश्वास पर आधारित थे। हसीना ने आतंकवाद और पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। भारत के साथ मिलकर सीमा प्रबंधन मजबूत किया और आतंकवादियों को ढूंढकर भारत को सौंपा। इससे पूर्वोत्तर में उग्रवाद कम हुआ। हसीना की नीतियों ने बांग्लादेश के कट्टरपंथी और भारत-विरोधी समूहों को नाराज कर दिया था। अंतरिम सरकार के आने के बाद अब वही ताकतें फिर से सक्रिय हो गई हैं।यूनुस सरकार की पाकिस्तान से नजदीकी चिंताजनक है। यह वही पाकिस्तान है, जिसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए 1971 में भारत ने बांग्लादेश के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई थी। स्वाभाविक रूप से भारत को उम्मीद थी कि यह संबंध स्थायी कृतज्ञता और सहयोग में बदलेगा, लेकिन यूनुस के शासन में यह इतिहास भुला दिया गया प्रतीत होता है। इसके रणनीतिक परिणाम भारत के लिए गंभीर हैं। सिक्किम और असम के बीच स्थित मात्र 22 किलोमीटर चौड़ा सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत की पूर्वोत्तर से जुड़ी एकमात्र जमीनी कड़ी है। यदि बांग्लादेश चीन से रणनीतिक तालमेल बनाता है, तो पूर्वोत्तर की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। चीन पहले ही अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है और बांग्लादेश में ललमनीरहाट हवाई अड्डा में निवेश कर रहा है, जो भारत-भूटान-चीन त्रिकोणीय क्षेत्र के पास है। यह सब मिलकर चीन की 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति को सुदृढ़ करते हैं, जिसका उद्देश्य भारत को घेरना है।एक और बड़ी चुनौती अवैध प्रवास और जनसांख्यिकीय बदलाव की है। दशकों से बांग्लादेश से अवैध रूप से लोग भारत में आते रहे हैं, जिससे असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के सामाजिक ढांचे पर गहरा प्रभाव पड़ा है। भारत ने सीमा पर बाड़ लगाने और अवैध प्रवास रोकने के प्रयास किए, लेकिन बांग्लादेश इनका विरोध करता रहा है। हाल के महीनों में सीमा पर बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड की आक्रामकता बढ़ी है, जिसने कई बार भारत के निर्माण कार्यों को रोकने की कोशिश की है। यूनुस शासन में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार भी बढ़े हैं। हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा, मंदिरों की तोड़फोड़ और धार्मिक उन्माद के बढ़ते मामले पर यूनुस का मौन रहना दर्शाता है कि सरकार राजनीतिक समर्थन के लिए इस्लामी समूहों को संतुष्ट कर रही है। इससे बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष छवि धूमिल हुई है और क्षेत्रीय स्थिरता पर भी नकारात्मक असर पड़ा है।भारत ने इन घटनाओं पर संयमित, किंतु दृढ़ प्रतिक्रिया दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में यूनुस को स्पष्ट चेतावनी दी कि 'ऐसे बयान न दें, जो माहौल बिगाड़ें।' 

भारत ने बांग्लादेश के साथ कुछ व्यापारिक समझौतों पर रोक लगाई, कुछ परियोजनाओं को स्थगित किया और सिलीगुड़ी कॉरिडोर के आसपास सैन्य तैनाती को मजबूत किया है। अब भारत के सामने अपनी पूर्वी रणनीति को पुनर्परिभाषित करने की चुनौती है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और चीन का यह उभरता गठजोड़ भारत के लिए नई भू-राजनीतिक वास्तविकता पैदा कर रहा है। चीन के लिए ढाका हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव विस्तार का एक प्रमुख केंद्र है, जबकि पाकिस्तान के लिए यह भारत-विरोधी प्रचार का नया मंच बन सकता है। इससे भारत पर पूर्व और पश्चिम से दबाव बनाया जा सकता है।इस स्थिति में भारत को सतर्क और सक्रिय रहना होगा। उसे एक ओर ढाका से कूटनीतिक संवाद जारी रखना चाहिए, वहीं दूसरी ओर अपनी सीमाओं को और मजबूत करना, भूटान और म्यांमार जैसे पड़ोसियों के साथ सहयोग बढ़ाना और बिम्सटेक व क्वाड में अपनी भूमिका को सशक्त बनाना चाहिए। भारत को स्पष्ट संदेश देना होगा कि वह मित्रता चाहता है, पर देश की अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा। यूनुस शासन की यह भारत-विरोधी प्रवृत्ति न केवल द्विपक्षीय संबंधों को पीछे ले गई है, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थिरता और सहयोग की संभावनाओं को भी कमजोर कर रही है। भारत को अब सतर्क रहकर स्पष्ट रणनीतिक दिशा तय करनी होगी, ताकि कोई भी ताकत उसकी संप्रभुता पर बुरी नजर न डाल सके। 

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