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गूगल के लिए भारत 15 अरब डॉलर खर्च करने को प्रतिबद्धIndia commits to spending $15 billion for Google

संपादकीय



भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) डाटा सेंटर के निर्माण के लिए गूगल ने पांच वर्षों में 15 अरब डॉलर खर्च करने की प्रतिबद्धता जताई, जो इन दिनों चर्चा में है। इससे भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बहस तेज हो गई है। विशाखापत्तनम में एक गीगावाट का डाटा सेंटर अदाणी समूह और एयरटेल की साझेदारी में बनाया जाएगा। इस दक्षिणी बंदरगाह शहर को चुनना रणनीतिक कदम है-विशाखापत्तनम समुद्र के नीचे बिछाई गई केबलों के जरिये ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और मलयेशिया सहित 15 वैश्विक गंतव्यों से जुड़ता है, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय डाटा प्रवाह का केंद्र बन जाता है।

इस परियोजना से हजारों नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है और यह आंध्र प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण प्रोत्साहन है। यह गूगल का भारत में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है और यह एआई-संचालित सेवाओं के विस्तार में तेजी लाने के लिए भारत सरकार के विकसित भारत-2047 विजन के अनुरूप है। गूगल द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, यह पहल भारत और अमेरिका, दोनों के लिए पर्याप्त आर्थिक और सामाजिक अवसर पैदा करती है, साथ ही एआई क्षमता में पीढ़ीगत बदलाव का मार्ग प्रशस्त करती है। फिर भी एआई की क्षमता को लेकर उत्साह और नौकरी छिनने की चिंताओं के बीच, एक महत्वपूर्ण सच्चाई अक्सर नजरअंदाज हो जाती है। एआई की लहर पर सवार होने के इच्छुक युवा भारतीयों को याद रखना चाहिए कि स्वचालन द्वारा तेजी से बदल रही दुनिया में अपनी सोच को मशीनों को सौंपना खतरनाक हो सकता है। आज जानकारी मानसून की बारिश की तरह बहती है। गूगल व चैटजीपीटी पर कुछ भी खोजकर उसे कुछ ही सेकंडों में संश्लेषित किया जा सकता है, लेकिन जो चीज असल में टिकती है, वह प्रश्न नहीं, बल्कि प्रश्नकर्ता है। एआई ज्ञान तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाता है, हरेक स्मार्टफोन को एक बुद्धिमान व्यक्ति में बदल देता है, लेकिन यह उस चीज को भी रेखांकित करता है, जिसका कोई विकल्प नहीं है यानी मानवीय निर्णय। जैसा कि व्हार्टन के प्रोफेसर और को-इंटेलिजेंस  के लेखक एथन मॉलिक कहते हैं कि एआई के इस्तेमाल के कई कारण हैं और कुछ ऐसे मौके भी आते हैं, जब इसका इस्तेमाल न करना ही समझदारी है। वह कहते हैं, ‘एआई से किसी समस्या का समाधान मांगना सीखने का प्रभावी तरीका नहीं है, भले ही लगे कि ऐसा होना चाहिए। कुछ नया सीखने के लिए आपको स्वयं पढ़ना और सोचना होगा, हालांकि सीखने की प्रक्रिया के कुछ हिस्सों में एआई आपको अब भी मददगार लग सकता है।’जब बहुत उच्च सटीकता की आवश्यकता होती है, तो एआई की त्रुटियां सामने आती हैं। लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) एक प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता है, जो मानव की तरह पाठ को संसाधित और तैयार करती है। मतिभ्रम के लिए कुख्यात एलएलएम के साथ समस्या यह है कि इसके काम करने के तरीके से अनेक तरह की त्रुटियां पैदा होती हैं। एलएलएम मतिभ्रम तब होता है, जब एक बड़ा भाषा मॉडल पूरे विश्वास के साथ तथ्यात्मक रूप से गलत जानकारी उत्पन्न करता है। इसलिए मतिभ्रम को पहचानना कठिन होता है।शोध से पता चलता है कि लोग अक्सर एआई पर भरोसा करके ड्राइविंग करते समय सो जाते हैं और इस पर ध्यान नहीं देते हैं। मतिभ्रम को कम किया जा सकता है, लेकिन समाप्त नहीं किया जा सकता। हालांकि, वास्तविक दुनिया में कई कार्यों में त्रुटियां सहन की जा सकती हैं। मनुष्य भी गलतियां करते हैं। यह भी संभव है कि कुछ मामलों में एआई मनुष्यों की तुलना में कम गलतियां करते हों। लेकिन एआई मनुष्य की तरह गलतियां नहीं करते हैं।एआई अक्सर आपको यह समझाने की कोशिश करते हैं कि वे सही हैं, या वे चापलूसी कर सकते हैं और आपके गलत उत्तर से सहमत हो सकते हैं। इन जोखिमों को समझने के लिए आपको एआई का पर्याप्त उपयोग करने की आवश्यकता है। यदि आप किसी विषय के बारे में कुछ नहीं जानते हैं और हर चीज के लिए सीधे एआई की मदद लेने लगते हैं-रिपोर्ट तैयार करने से लेकर व्यावसायिक योजनाओं की रणनीति बनाने तक-तो इसका मतलब है कि आप एक ऐसी मशीन को नियंत्रण सौंप रहे हैं, जो एक नौसिखिए जुआरी की तरह तथ्यों और तर्क के जाल में आपको उलझा देती है। आप ऐसी गलती कभी न करें। स्वचालन, चिंता और भू-राजनीतिक उथल-पुथल के इस दौर में यह याद रखना जरूरी है कि क्या प्रासंगिक रहेगा-सहानुभूति, अनुकूलनशीलता, संचार, नेतृत्व, और सबसे बढ़कर आलोचनात्मक सोच। ये जरूरी चीजें हैं। इसलिए अब, जबकि भारत में एआई का उदय हो रहा है, तो मशीनों का स्वागत जरूर करें, लेकिन अपनी सोच के बदले एआई पर निर्भर न रहें। अपनी निगाहें आईने पर टिकाएं। भविष्य का निर्माण सिर्फ कोड से नहीं होता, बल्कि यह बातचीत, धुरी, सहानुभूतिपूर्ण अनुमान, आलोचनात्मक अंतर्मन के परीक्षण से होता है। सच्ची बुद्धिमत्ता कृत्रिम नहीं होती, बल्कि यह गहन रूप से, खूबसूरती से मानवीय होती है। पिछले साल विश्व आर्थिक मंच पर आईबीएम के अध्यक्ष और सीईओ अरविंद कृष्णा ने एक महत्वपूर्ण बात की थी कि जेनरेटिव एआई का नौकरियों पर प्रभाव बहुत बड़ा होगा। उन्होंने कहा कि 'यह पहली तकनीक है, जो सफेदपोश कार्यों की नकल करती है... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप भौतिक विज्ञानी हैं, गणितज्ञ हैं, कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं, डॉक्टर हैं, लेखक हैं।'तो, एआई के युग में सफल होने के लिए हमें किस प्रमुख कौशल की आवश्यकता होगी? कृष्णा ने कहा, 'अगर सफेदपोश कार्य भी जेनरेटिव एआई द्वारा हड़प लिया जाता है, तो इसका मतलब है कि आपको आलोचनात्मक सोच सीखनी होगी। चाहे आप किसी भी क्षेत्र में हों, आलोचनात्मक सोच वह कौशल है, जिसकी कहीं ज्यादा जरूरत है।' दावोस में सभी वक्ताओं ने आने वाले बदलावों के अनुरूप शिक्षा को ढालने की जरूरत पर जोर दिया। यह कहावत हम जहां भी हों, हर जगह लागू होती है। इसलिए इस कोड-चालित युग में, आलोचनात्मक सोच, सहानुभूति और मानवीय सरलता हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हैं। अपने मन को प्रशिक्षित करें, अपनी अंतरात्मा पर भरोसा करें, और गहन मानवीय अग्रदूत बनकर आगे बढ़ें।

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