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दिल्ली में शख्स को 13 साल बाद कोर्ट से मिला इंसाफ, लिखावट के सैंपल से बेगुनाही साबित Delhi man gets justice after 13 years, handwriting sample proves his innocence


साकेत जिला अदालत ने 13 वर्ष पुराने चेक फर्जीवाड़ा मामले में आरोपी रामदत्त शर्मा को धोखाधड़ी और जालसाजी के सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत में पेश लिखावट के नमूनों की रिपोर्ट ने आरोपी की बेगुनाही को साबित कर दिया। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी अरिदमन सिंह चीमा की अदालत ने कहा कि केवल शक या अनुमान के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपना मामला साबित करने में विफल रहा है।



वेतन चेक में हेराफेरी का आरोप

मामला सितंबर 2012 का है। एचडीएफसी बैंक की ओर से शिकायत दर्ज कराई गई थी कि रामदत्त शर्मा ने अपनी नियोक्ता कंपनी (जिसमें वह कार्यरत थे) फर्स्ट सेलेक्ट प्राइवेट लिमिटेड से मिले 6,326 के वेतन चेक में हेराफेरी कर 60,326 कर दिया। शिकायत के आधार पर लगभग छह महीने बाद मार्च 2013 में सरिता विहार थाने में पुलिस ने रामदत्त के खिलाफ मामला दर्ज किया।

जांच में रही खामियां

अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस न तो चेक जारी करने वाली कंपनी के किसी अधिकारी को गवाह बना सकी, न ही बैंक में जमा पर्ची या लेनदेन का कोई ठोस प्रमाण पेश किया गया। वहीं, प्राथमिकी दर्ज करने में भी छह माह की देरी की गई। अदालत ने कहा कि केवल संदेह के आधार पर किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने कहा कि मामले में न तो जालसाजी साबित हुई और न ही धोखाधड़ी।

एफएसएल रिपोर्ट ने पलट दी कहानी

मामले की जांच के दौरान पुलिस ने आरोपी की लिखावट के नमूने लेकर उन्हें फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा। अदालत में पेश एफएसएल रिपोर्ट ने मामले की कहानी को ही पलट कर रख दिया। रिपोर्ट में चेक पर मौजूद लिखावट और आरोपी की लिखावट में अंतर है। अदालत ने कहा कि जब वैज्ञानिक साक्ष्य ही मामले को खारिज कर रहे हों, तो दोष सिद्ध नहीं हो सकता।

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