• रवि उपाध्याय
आज देश में संसद से लेकर सड़क तक राम नाम की चर्चा है। कहीं राम से रार है तो कहीं राम से प्यार है। भारत के घट घट में राम ही राम है।मरते राम,जीते राम हंसते और हंसाते राम। करोड़ों लोग राम को भगवान मनाते हैं तो विधर्मी राम को इमाम मानते हैं। राम के अस्तित्व को न तो कोई नकार पाया है और न ही नकार सकता है। जिन्होंने राम के अस्तित्व पर सवाल लगाया उनका यह हाल है कि वो पिछले 11 सालों से उनका हाल बे हाल हैं। वे पूरे देश में मारे मारे फिर कर गाते फिर रहे हैं - नसीब साडा चोरी हो गया अब कि करियां कि करियां....। जिस तरह जादूगरनी की जान तोते में होती थी उसी तरह नेताओं की जान अब वोट में रहती है।
केंद्र की गद्दी पर जब से मोदी नाम का मैजिशियन बैठा है उससे पुराने सियासी जादूगर बेदम पड़े हैं। जब यूपीए सरकार ने कोरट में कहा था कि राम का कोई अस्तित्व था ही नहीं वो तो किस्से कहानी में है। उनका तो कोई अस्तित्व पहले था और न अब है। वही लोग अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। राम जी ने ऐसा चमत्कार दिखाया कि जिस तरह राम जी वनवास काट कर और लंका विजय कर 14 साल बाद अयोध्या लौटे थे। उसी तरह राम भक्तों की टोली अपनी पार्टी यानि भाजपा के गठन के 14 सालों बाद सन् 2014 में राम जी के अस्तित्व में विश्वास करने वाले लोग भारत के केंद्र में विजय हो कर सत्ता में लौट आए। लौटे तो ऐसे लौटे कि सब तरफ़ राम ही राम हो गए। पूरा देश राम मय हो गया।
लंका विजय से पूर्व राम जी ने समुद्र पर सेतु बनाने से पूर्व जिस तरह समुद्र तट शिवलिंग की आराधना करने के बाद सेतुबंध रामेश्वरम के निर्माण की पूजा अर्चना की थीं। लगभग उसी की पुनरावृत्ति मंगलवार 16 दिसंबर को लोकसभा में उस समय देखने को मिली जब कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मन रे गा में जी राम जी को जोड़ दिया। जो राम जी समर्थक और विरोधी सब लोकसभा में एक स्वर में स्वत: जपने लगे मन रे गा जी राम जी। कुछ विरोध में गा रहे थे तो कुछ समर्थन प्रसन्न हो कर भजन सा कर रहे थे मन..रे..गा..जी राम जी। भाई भाजपा वाले हैं तो कलाकार आखिर विरोधियों से भी कहलवा ही दिया, क्या कहलवा दिया ? मन.. रे ..गा, जी राम जी। इसका भावार्थ यह हुआ कि- ऐ मन रे (तू) जी राम जी गा, इसी से तेरे मन को शांति मिलेगी।
यह वह देश हैं जिसके रोम रोम में राम हैं। यहां के कण कण में और घट घट में राम बसते हैं। यहां वादन में भी राम हैं और रुदन में भी राम हैं। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है। महिमा मेरे राम की जीत देखूं तित राम। संत कबीर ने राम को अलग दृष्टि से देखा है। उन्होंने कहा कि मोमे तोमे सरब में,जहं देखें तं राम । राम बिना क्षण एक ही, सरे न एको काम।। राम नाम की महिमा पर कबीर ने लिखा राम भजी मन बसि करो, ये ही बड़ा अरंथ। काहे को पढ़ी पढ़ी मरो, कोटिक ज्ञान ही गिरंथ । कबीर साहब लिखते हैं - एक राम दशरथ घर डोले, एक राम घट घट में बोले, राम रहीमा ऐक है, नाम धराया दोई। राम सर्वव्यापी हैं।आज भले ही मुस्लिम मुल्ला मौलवियों को राम नाम से परहेज हो पर संत रहीम खान खाना ने लिखा "गहि शरणागति राम की, भवसागर की नाव। रहिमन जगत उधार कर, और न कछु उपाव।"
माधुरी दीक्षित को तेज़ाब फिल्म में अपने पिया में ही राम दिखाई देते हैं। तभी तो उसने खुशी से कमर मटका मटका कर के गाया था। मेरा पिया घर आया हो राम जी, मेरा पिया घर आया। पिया के आने की खुशी किस को नहीं होती। मीरा ने कृष्ण में पिया पाया (यानि देखा), तभी तो उन्होंने नि:संकोच जहर का प्याला भी पी लिया ।मेरे शहर में एक लोकल कवि थे शरद दीक्षित उनकी एक कविता थी- आजकल की त्रियन को पियन की चाह है, बाजार में पूछत हैं लिपटन की चाह है। आजकल की तिरयन की बात अलग है उन पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है वह सशक्त हो गईं हैं कि पिया अशक्त हो गए हैं।
पहले की तिरयन राम रस का पान करतीं थीं और आज की त्रिया रमी खेलतीं हैं राम रस की जगह अब रम रस का पान करतीं हैं। पहले उनकी आंखों में लाज हुआ करतीं थीं अब उनको देख कर लाज को भी लाज आने लगी है। पहले उनके लिए साहित्य में एक शब्द था लाजवंती का। अब लाज़बंदी हो गया है। वे खुले पन की एक्जीविशन हो गईं है। इस संदर्भ में एक गुमनाम से कवि की कुछ लाइनें याद आ रही हैं। वो इस तरह हैं ,-आज़ादी कुछ ऐसी आई कि युग सारा बदनाम हो गया, धरा भिखारिन बन बैठी और जग सारा बदनाम हो गया। शायद इन्हीं हालातों को देखकर रहीम दास जी ने कहा था रहिमन चुप हो बैठिए देख दिनन के फैर, जब नीके दिन आईहैं, बनत ना लगि हैं देर ।
बुद्धिजीवियों और विद्वानों में इस बात पर अलग अलग राय हो सकतीं हैं कि जो लाइनें रहीम दास जी के नाम से लिखीं है वे रहीमदास की नहीं बल्कि गोस्वामी तुलसीदास जी की हैं। तो भाइयों इसमें काहे का विवाद दोनों ही कवि थे राम भक्त थे। दोनों ही संत थे। दोनों ही कवि हैं और दोनों ही स्वर्गवासी हो चुके हैं। कोई भी दावा करने नहीं आएगा कि भैया ये लाइनें मेरी हैं उनकी नहीं है। लड़ो तो इस बात के लिए लड़ो कि इनमें एक हिंदू है तो दूसरा मुसलमान। क्योंकि भैया लड़ाई का यही ट्रेंड चल रहा है। इसी लूट में आप और हम दोनों शामिल हो जाएं।
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