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एक राष्ट्र, एक शिक्षा नियामक, एक विज़न: उच्च शिक्षा का नया युगOne nation, one education regulator, one vision: A new era of higher education.

 [काग़ज़ी सुधार नहीं, ज़मीनी क्रांति: मोदी सरकार का शिक्षा मॉडल]

[यूजीसी-एआईसीटीई युग का अंत, ज्ञान-महाशक्ति भारत का आरंभ]

 प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी 

मोदी सरकार की दूरदर्शी सोच ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की उच्च शिक्षा को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने का उनका संकल्प अटल है। 12 दिसंबर 2025 को कैबिनेट द्वारा स्वीकृत विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण विधेयक के माध्यम से उच्च शिक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इस विधेयक के तहत यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई जैसे बिखरे हुए नियामक ढाँचों को समाप्त कर एकल और सशक्त उच्च शिक्षा नियामक की स्थापना की जा रही है।


 यह क्रांतिकारी कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘विकसित भारत @2047’ की परिकल्पना को ठोस आधार प्रदान करेगा, जहाँ शिक्षा केवल डिग्री अर्जन का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी शक्ति बनेगी। वर्षों से चली आ रही पुरानी व्यवस्था में नियमों की टकराहट, स्वीकृतियों में अनावश्यक विलंब और गुणवत्ता की असमानता ने छात्रों की प्रतिभा को सीमित किया था; एकल नियामक इन सभी बाधाओं को समाप्त कर सुशासन, पारदर्शिता और निर्णायक नेतृत्व की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

यह विधेयक, जिसे पहले हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (एचईसीआई) के नाम से जाना जाता था, अब विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण  के रूप में नई पहचान और व्यापक दृष्टि के साथ सामने आया है। इस नए आयोग की तीन प्रमुख भूमिकाएँ होंगी—विनियमन, प्रत्यायन और व्यावसायिक मानकों का निर्धारण। विनियमन के माध्यम से संस्थानों के संचालन, पाठ्यक्रम संरचना और नीतियों में एकरूपता आएगी, जिससे नवाचार और अकादमिक स्वतंत्रता को नई ऊर्जा मिलेगी। प्रत्यायन व्यवस्था कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता का पारदर्शी मूल्यांकन एवं रैंकिंग सुनिश्चित करेगी, जिससे छात्रों को सूचित और सही निर्णय लेने में सहायता मिलेगी। वहीं, व्यावसायिक मानक शिक्षण, तकनीकी शिक्षा और शिक्षक प्रशिक्षण में समानता और उत्कृष्टता स्थापित करेंगे। यह समग्र सुधार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की भावना को साकार करता है, जिसमें बहु-विषयक शिक्षा, कौशल विकास और वैश्विक मानकों पर विशेष बल दिया गया है।

मोदी सरकार की यह नीति इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि यह भावनात्मक नारेबाज़ी नहीं, बल्कि चरणबद्ध, संतुलित और व्यावहारिक सुधारों पर आधारित है। मेडिकल और विधि शिक्षा को नए नियामक के दायरे से बाहर रखकर सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं और संरचनाओं का सम्मान किया जाएगा। वर्तमान में फंडिंग से जुड़ी स्वायत्तता मंत्रालयों के पास बनाए रखना और भविष्य में इसे आयोग के अधीन लाने की संभावना रखना—यह दूरदर्शी और सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण सरकार की नीति-निर्माण में परिपक्वता को दर्शाता है। 

अतीत की सरकारें सुधारों की घोषणाएँ तो करती रहीं, लेकिन ज़मीनी अमल में इच्छाशक्ति का अभाव साफ दिखाई देता था; इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से लेकर विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण विधेयक तक सुधार केवल काग़ज़ों में नहीं, बल्कि वास्तविकता में उतरते दिख रहे हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों की अभूतपूर्व वृद्धि, सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में निरंतर बढ़ोतरी और अनुसंधान बजट में रिकॉर्ड इज़ाफा—ये सभी उपलब्धियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि मोदी सरकार भारत के युवाओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम बनाने के मिशन पर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

छात्रों के लिए यह परिवर्तन एक नई आशा और नए अवसरों का द्वार खोलता है। अब तक अनेक नियामकों की जटिल प्रक्रियाएँ समय, ऊर्जा और संसाधनों की अनावश्यक बर्बादी का कारण बनती थीं—जहाँ तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए एआईसीटीई और सामान्य पाठ्यक्रमों के लिए यूजीसी से अलग-अलग स्वीकृतियाँ लेनी पड़ती थीं। एकल खिड़की प्रणाली के लागू होने से अनुमोदन प्रक्रिया तेज़ होगी, पाठ्यक्रम अधिक लचीले बनेंगे और गुणवत्ता मानकों का समान रूप से पालन सुनिश्चित होगा। 

बहु-विषयक शिक्षा को वास्तविक अर्थों में बढ़ावा मिलेगा, जहाँ छात्र बिना प्रशासनिक बाधाओं के इंजीनियरिंग के साथ कला या मानविकी जैसे विषयों का संयोजन चुन सकेंगे। इससे ग्रामीण और शहरी छात्रों के बीच की खाई भी कम होगी, क्योंकि आईआईटी से लेकर छोटे कॉलेज तक सभी संस्थानों पर समान नियम लागू होंगे। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुधार नवाचार को प्रोत्साहित करेगा, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएगा और संस्थानों को अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बनाएगा। परिणामस्वरूप भारतीय युवा कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सतत विकास और नवाचार जैसे क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर होंगे और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को साकार करेंगे।

यह विधेयक इस सच्चाई को रेखांकित करता है कि मोदी सरकार शिक्षा को केवल एक प्रशासनिक विषय नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण का सबसे प्रभावी और दीर्घकालिक हथियार मानती है। जहाँ विपक्ष खंडित और अप्रभावी पुरानी व्यवस्था को बनाए रखने की वकालत करता रहा, वहीं सरकार ने साहसिक निर्णय लेकर सुधारों की नई इबारत लिखी है। 

इससे न केवल पारदर्शिता में वृद्धि होगी, बल्कि गुणवत्ता में उल्लेखनीय उछाल आएगा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के चार सशक्त स्तंभ—एक्सेस, इक्विटी, क्वालिटी और अफोर्डेबिलिटी—और अधिक मजबूत होंगे। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की भावना से प्रेरित यह पहल करोड़ों छात्रों के सपनों को नई उड़ान देगी। भविष्य में फंडिंग के पूर्ण एकीकरण के साथ उच्च शिक्षा का एक समग्र, आधुनिक और वैश्विक मानकों वाला मॉडल उभरेगा, जो भारत को विश्व का प्रमुख शिक्षा केंद्र बनाएगा।

विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण विधेयक मोदी सरकार की उन ऐतिहासिक उपलब्धियों में से एक है, जो आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की दिशा तय करेगा। यह विधेयक उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक नवयुग का उद्घोष है, जहाँ एकल और सशक्त नियामक व्यवस्था प्रशासनिक दक्षता को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगी। इससे न केवल संस्थानों की कार्यप्रणाली सुगम होगी, बल्कि भारतीय युवा वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिभा का परचम लहराने में सक्षम होंगे और भारत एक ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में विश्व नेतृत्व की भूमिका निभाएगा। गुणवत्तापूर्ण, पारदर्शी और आधुनिक शिक्षा का यह ढाँचा उन करोड़ों छात्रों के लिए आशा का सशक्त आधार है, जो अपने सपनों को साकार करने के लिए अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दृष्टिकोण पूर्णतः स्पष्ट और दूरगामी है—एक ऐसा भारत, जहाँ शिक्षा समावेशी हो, नवाचार को बढ़ावा दे, गुणवत्ता में वैश्विक मानकों को छुए और देश के हर युवा तक समान रूप से पहुँचे। इस विधेयक की स्वीकृति यह प्रमाणित करती है कि मोदी सरकार केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि ठोस परिणाम देने वाले साहसिक और राष्ट्रहितकारी निर्णय लेने में विश्वास रखती है। यह कदम निस्संदेह 2047 तक एक सशक्त, आत्मनिर्भर और विकसित भारत के निर्माण की आधारशिला को और मजबूत करेगा।

 

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