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एक दशक से चीन के ‘कर्ज जाल’ से दूसरों को आगाह करता रहा है अमेरिका, लेकिन सबसे ज्यादा चीनी कर्ज उसी पर .For a decade, the US has been warning others about China's 'debt trap', but it still has the highest Chinese debt

 


एस.के. सिंह

(जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर)


अमेरिका दूसरे देशों को हिदायत देता रहा है कि वे चीन के सरकारी बैंकों से कर्ज न लें, क्योंकि यह एक ‘कर्ज जाल’ है जिसके दम पर चीन महाशक्ति बनने की कोशिश कर रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि अमेरिका खुद चीन से सबसे अधिक कर्ज लेने वाला देश है। अमेरिकी विश्वविद्यालय विलियम एंड मैरी की रिसर्च लैब एडडाटा ने मंगलवार को एक रिपोर्ट और डेटासेट जारी किया है। इसमें चीन की तरफ से दूसरे देशों को दिए गए कर्ज और ग्रांट का आकलन है। इसके मुताबिक चीन ने वर्ष 2000 से 2023 के दौरान 200 से अधिक देशों को 2.2 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर का कर्ज और ग्रांट दिया। इसमें सबसे अधिक 202 डॉलर की राशि उसने अमेरिका को दी है।



सिर्फ अमेरिका नहीं, ब्रिटेन, पश्चिमी यूरोपीय देश, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे अनेक अमीर देशों ने चीन से कर्ज लिया है। बल्कि वर्ष 2006 के बाद तो चीन के विदेशी कर्ज पोर्टफोलियो में उच्च-मध्य और उच्च-आय वाले देशों का हिस्सा बढ़ता ही गया है। वर्ष 2023 में चीन की तरफ से दूसरे देशों को दिए गए कुल कर्ज में से 75 प्रतिशत उच्च-मध्य और उच्च आय वाले देशों को तथा 25 प्रतिशत हिस्सा निम्न और निम्न-मध्य आय वाले देशों को गया। एक और ट्रेंड संवेदनशील क्षेत्रों में चीन का निवेश बढ़ना है। वर्ष 2023 में चीन ने 88 प्रतिशत निवेश दूसरे देशों के संवेदनशील क्षेत्रों में और सिर्फ 12 प्रतिशत गैर-संवेदनशील क्षेत्रों में किया।


जागरण प्राइम ने जून 2023 में AidData की मदद से ही एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि कैसे चीन अपने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल छोटे देशों के संसाधनों और रणनीतिक ठिकानों पर नियंत्रण के लिए कर रहा है। उसके इस कर्ज जाल से कैसे 60 देश संकट में आ गए थे। एडडाटा के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. ब्रैडले पार्क्स ने उस समय जागरण प्राइम को बताया था कि वर्ष 2000 से 2021 तक चीन के सरकारी बैंकों ने कम और मध्य आय वाले 135 देशों को लगभग एक लाख करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था।


मंगलवार को जारी नई रिपोर्ट में पार्क्स ने कहा, “चीन के पोर्टफोलियो का कुल आकार पहले प्रकाशित अनुमानों से दो से चार गुना बड़ा है।” तीन सौ से ज्यादा पन्नों वाली रिपोर्ट ‘चेजिंग चाइना: लर्निंग टू प्ले बाय बीजिंग्स ग्लोबल लेंडिंग रूल्स’ में कहा गया है कि चीन के तीन-चौथाई से अधिक विदेशी ऋण उच्च मध्य आय और उच्च आय वाले देशों की परियोजनाओं और गतिविधियों के लिए हैं। पार्क्स ने कहा, “अमीर देशों को दिया जाने वाला ज्यादातर कर्ज बुनियादी ढांचे, क्रिटिकल मिनरल और सेमीकंडक्टर कंपनियों जैसे हाईटेक ऐसेट के अधिग्रहण के लिए है।”


रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका को लगभग 2,500 परियोजनाओं और गतिविधियों के लिए 202 अरब डॉलर की राशि प्राप्त हुई। यह निवेश देश के लगभग हर राज्य में हुआ है। इंग्लैंड को 60 अरब डॉलर और यूरोपीय यूनियन के 27 सदस्य देशों को लगभग 1,800 परियोजनाओं और गतिविधियों के लिए 161 अरब डॉलर मिले। ईयू के सबसे ज्यादा सौदे करने वाले देशों में जर्मनी (33.4 अरब डॉलर), फ्रांस (21.3 अरब), इटली (17.4 अरब), पुर्तगाल (11.7 अरब) और नीदरलैंड (11.6 अरब डॉलर) शामिल हैं।

हालांकि अनेक देशों की सरकारें और नाटो तथा जी-7 जैसे गठबंधन बीजिंग के साथ खुली प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन एडडाटा का मानना है कि कई पश्चिमी या पश्चिमी नेतृत्व वाली वित्तीय संस्थाओं ने चीन के सरकारी बैंकों के साथ सहयोग का विकल्प चुना है। कई पश्चिमी कंपनियों ने उनसे बड़ी रकम उधार ली है। AidData के शोधकर्ताओं ने 2,610 को-फाइनेंसिंग संस्थानों की पहचान की, जिनमें पश्चिमी और गैर-पश्चिमी वाणिज्यिक बैंक, बहुपक्षीय वित्तीय संस्थान और द्विपक्षीय विकास वित्त संस्थान और निर्यात ऋण एजेंसियां शामिल हैं। इन्होंने विदेशी परियोजनाओं और गतिविधियों में बीजिंग के साथ सहयोग किया।


हर साल 100 अरब डॉलर से अधिक विदेशी कर्ज

‘चेजिंग चाइना’ रिपोर्ट इस मिथक को तोड़ती है कि बीजिंग के विदेशी ऋण रिकॉर्ड निचले स्तर पर गिर गए हैं। नए आंकड़े बताते हैं कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदाता बना हुआ है। उसने वर्ष 2023 में दुनियाभर के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को लगभग 140 अरब डॉलर का ऋण दिया। रिपोर्ट के सह-लेखक और एडडाटा के वरिष्ठ शोध विश्लेषक शेंग झांग का कहना है, “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की पहली घोषणा के बाद चीन कभी 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष की सीमा से नीचे नहीं आया। इसका अर्थ है कि वह कम से कम एक दशक से दुनिया का सबसे बड़ा आधिकारिक ऋणदाता बना हुआ है।”


बीजिंग की नकल करते पश्चिमी देश

रिपोर्ट बताती है कि कैसे पश्चिमी शक्तियां अपना रास्ता बनाने के बजाय, नकल के जरिए बीजिंग से प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रही हैं। जी-7 के सदस्य देश चीन के नक्शेकदम पर चल रहे हैं और उसकी रणनीति अपना रहे हैं। वे विदेशी सहायता एजेंसियों के बजट खत्म कर रहे हैं या उनमें कटौती कर रहे हैं। इसकी जगह राष्ट्रीय सुरक्षा के औचित्य वाले ऋणों में तेजी ला रहे हैं। वे दूसरे देशों के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और क्रिटिकल मिनरल एसेट में हिस्सेदारी ले रहे हैं।


ट्रंप प्रशासन ने हाल ही बीजिंग की चाल चलते हुए अमेरिकी ट्रेजरी के एक्सचेंज स्टैबलाइजेशन फंड से अर्जेंटीना को 20 अरब डॉलर का बेलआउट प्रदान किया है। बाइडेन और ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उच्च आय वाले देशों में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और क्रिटिकल मिनरल एसेट में निवेश किया। इनमें ग्रीस का पिरियस बंदरगाह, ग्रीनलैंड का टैनब्रीज रेअर अर्थ भंडार, पनामा नहर और ऑस्ट्रेलिया का डार्विन बंदरगाह शामिल हैं।


हाल ही अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) को खत्म किए जाने के बाद, ट्रंप प्रशासन अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त निगम (DFC) के रीऑथराइजेशन विधेयक पर विचार कर रहा है। इस एजेंसी की कर्ज देने की सीमा 60 अरब डॉलर से बढ़ाकर 250 अरब डॉलर किए जाने की संभावना है। इसे उच्च आय वाले देशों में राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं पर काम करने में अधिक स्वतंत्रता भी दी जा सकती है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या DFC चीन के सरकारी बैंकों के तौर-तरीके अपना सकता है।


एक पार्टी के कारण चीन को एडवांटेज

चीन बनाम पश्चिम में एक बात चीन के पक्ष में जाती है। एडडाटा के अनुसार एक पार्टी की सरकार होने के कारण वह अपनी नीतियों को दूसरे देशों की प्राथमिकताओं के मुताबिक बदल सकता है। वर्ष 2015 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने मेड इन चाइना 2025 (MIC2025) नीति अपनाई, जिसका उद्देश्य हाइटेक मैन्युफैक्चरिंग में चीन का प्रभुत्व कायम करना है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एडवांस रोबोटिक्स, सेमीकंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटिंग, 5G, बायोटेक और रिन्यूएबल एनर्जी शामिल हैं। एडडाटा ने पाया कि इस नीति को अपनाने के बाद चीन के विदेशी वित्तीय ऑपरेशन में संवेदनशील क्षेत्रों का हिस्सा 46% से बढ़कर 88% हो गया है।

दूसरे देशों के संवेदनशील क्षेत्रों में विलय और अधिग्रहण को मंजूरी दिलाने की बीजिंग की रणनीति उल्लेखनीय रूप से सफल रही है। इसकी औसत सफलता दर 80% है। इसके लिए बीजिंग ने उन देशों पर ध्यान केंद्रित किया जहां विदेशी पूंजी की जांच की व्यवस्था अपेक्षाकृत कमजोर है। एडडाटा के अनुसार, चीन ने रेगुलेटर और इंटेलिजेंस अधिकारियों की नजरों से बचने के लिए विदेशी शेल कंपनियों और अंतरराष्ट्रीय बैंक सिंडिकेट के जरिए भी धन का लेन-देन किया है।


एडडाटा के अनुसार वर्ष 2000 और 2023 के बीच चीन के सरकारी बैंकों ने उच्च आय वाले देशों को लगभग 943 अरब डॉलर का ऋण दिया। इसमें सबसे अधिक कर्ज अमेरिका को दिया गया। एडडाटा के कार्यकारी निदेशक ब्रैड पार्क्स इसे बेहद महत्वपूर्ण तथ्य मानते हैं क्योंकि, “अमेरिका एक दशक से दूसरे देशों को चीन के कर्ज के जोखिम के बारे में चेतावनी दे रहा है। वह चीन पर कर्ज जाल की कूटनीति अपनाने का आरोप भी लगाता रहा है।”


अमेरिका में यह धन केमैन द्वीप, बरमूडा, डेलावेयर और अन्य जगहों की फर्जी कंपनियों के माध्यम से भेजा गया था, जिससे उनके मूल स्रोत को छिपाने में मदद मिली। अधिकतर कर्ज चीनी कंपनियों को अमेरिकी बिजनेस में हिस्सेदारी खरीदने में मदद के लिए दिए गए थे। उनमें कई कंपनियां महत्वपूर्ण तकनीक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी थीं।


चीन की सरकारी कंपनियां अमेरिका के हर कोने और हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। टेक्सास और लुइसियाना में तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) प्रोजेक्ट, नॉर्थ वर्जीनिया में डेटा सेंटर, न्यूयॉर्क के जॉन एफ. कैनेडी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और कैलिफोर्निया के लॉस एंजिलिस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल, मैटरहॉर्न एक्सप्रेस प्राकृतिक गैस पाइपलाइन, डकोटा एक्सेस ऑयल पाइपलाइन जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर में उनका निवेश है। उन्होंने मिशिगन की एक रोबोटिक्स कंपनी, सिलिकॉन लैब्स, कम्प्लीट जीनोमिक्स और ओमनीविजन टेक्नोलॉजीज जैसी हाइटेक कंपनियों के बिजनेस अधिग्रहण की फाइनेंसिंग की है। अमेजन, एटीएंडटी, वेराइजन, टेस्ला, जनरल मोटर्स, फोर्ड, बोइंग और डिजनी सहित अनेक फॉर्च्यून 500 कंपनियों ने उनसे वर्किंग कैपिटल का कर्ज लिया है।

सौदों में गोपनीयता बरत रहा है चीन

एक और अहम बात है कि चीन दूसरे देशों में अपने वित्तीय ऑपरेशंस को दिनों-दिन अस्पष्ट और जटिल बनाता जा रहा है। अनेक ट्रांजैक्शन सख्त बैंकिंग गोपनीयता नियमों वाले देशों में शेल कंपनियों के जरिए किए जा रहे हैं। रिपोर्ट से पता चलता है कि चीन एक मददगार देश की भूमिका से पीछे हट रहा है। इसके बजाय, एडडेटा के शोधकर्ताओं ने पाया कि चीन का विदेशी कर्ज सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं का पोषण कर रहा है।


रिपोर्ट की सह-लेखिका और एडडाटा की वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक कैथरीन वॉल्श का कहना है, “हमें चीन के विदेशी ऋण और अनुदान कार्यक्रम के बारे में आधिकारिक स्रोतों से जानकारी की उपलब्धता में समय के साथ 62% की गिरावट के प्रमाण मिले हैं। चीनी सरकारी बैंकों और कर्ज लेने वालों के बीच बिना संपादित अनुबंधों तक हमारी पहुंच 2010 और 2022 के बीच बढ़ी, लेकिन 2022 और 2023 के बीच तेजी से घट गई।”


रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग ऐसे क्रेडिट इंस्ट्रूमेंट की ओर रुख कर रहा है जो अधिक महंगे और ट्रैक करने में मुश्किल हैं। ऑडिटेड फाइनेंशियल स्टेटमेंट, स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग और बॉन्ड प्रॉस्पेक्टस में ऐसे लेनदेन दिखने की संभावना बहुत कम है।


जागरण प्राइम की पिछली रिपोर्ट के समय डॉ. पार्क्स ने बताया था कि एडडाटा ने अप्रैल 2021 में चीन के सरकारी बैंकों की तरफ से कम तथा मध्य आय वर्ग के 24 देशों को दिए गए 100 लोन कॉन्ट्रैक्ट का विश्लेषण किया। विश्लेषण से पता चला कि वर्ष 2000 से 2020 की शुरुआत तक ज्यादातर लोन कॉन्ट्रैक्ट में थोड़े-बहुत अंतर के साथ गोपनीयता का क्लॉज अवश्य रहता था।


पार्क्स के अनुसार, “मैंने और मेरे सह-लेखकों ने पाया कि गोपनीयता की शर्त के कारण कर्ज लेने वाला देश कई बार तो यह भी नहीं बता सकता कि उस पर चाइनीज बैंकों का कोई कर्ज है। 2014 के बाद चीन के हर लोन कॉन्ट्रैक्ट में गोपनीयता की शर्त पाई गई।”


BRI अब प्राथमिकता में नहीं

शोध टीम ने कर्ज देने की प्राथमिकता में भी बदलाव देखा है। एडडाटा की ट्रैकिंग अंडररिपोर्टेड फाइनेंशियल फ्लो टीम की एसोसिएट डायरेक्टर और रिपोर्ट की सह-लेखिका ब्रुक एस्कोबार ने कहा, “कर्ज पाने वाले देशों में आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के प्राथमिक लक्ष्य से हटकर नई प्राथमिकताएं आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने की हैं। बीजिंग अब वैश्विक हितैषी के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह पहले और अंतिम अंतरराष्ट्रीय ऋणदाता के रूप में अपनी छवि मजबूत कर रहा है।”

कई साल तक चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत ग्लोबल साउथ के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश पर फोकस करता रहा। लेकिन अब बीजिंग ने BRI भागीदार देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए कर्ज में नाटकीय रूप से कटौती की है। दूसरी तरफ, BRI में भाग लेने वाले और नहीं लेने वाले, दोनों तरह के देशों को लिक्विडिटी सपोर्ट बढ़ाया है। विकसित और विकासशील देशों में इन्फ्रा प्रोजेक्ट के लिए चीन की तरफ से दिए जाने वाले प्रत्येक चार डॉलर के लिए, वह गैर-इन्फ्रा उद्देश्यों के लिए छह डॉलर का कर्ज देता है। समय के साथ बीजिंग का पोर्टफोलियो भी कम BRI-केंद्रित होता गया। चीन के विदेशी पोर्टफोलियो में इन्फ्रास्ट्रक्चर कर्ज का हिस्सा कभी 75% था, लेकिन अब यह 25% से भी कम है। इसका एक कारण हाल के वर्षों में कई देशों में BRI का विरोध हो सकता है।

एडडाटा की इस रिपोर्ट के लिए 16 पूर्णकालिक शोधकर्ताओं और 126 अंशकालिक शोध सहायकों ने डेटा संग्रह और विश्लेषण पर 36 महीने से ज्यादा समय बिताया। ये आंकड़े एक दर्जन से अधिक भाषाओं में 2,46,261 स्रोतों से एकत्रित किए गए। इसमें 2000 और 2023 के बीच 200 देशों में 1,193 चीनी कर्जदाताओं द्वारा समर्थित 30,133 से परियोजनाओं और गतिविधियों को ट्रैक किया गया।

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