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“सूर्यपुत्र: हिरा रतन मानेक — वह मनुष्य जिसने प्रकाश को भोजन बना लिया”"Sun's Son: Hira Ratan Manek – The Man Who Turned Light into Food"


 


गुजरात के मेहसाणा ज़िले के शांत नगर में जन्मा एक साधारण व्यक्ति, जिसने संसार को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि — क्या मनुष्य केवल सूर्य के प्रकाश पर जीवित रह सकता है?

यह कोई कल्पना या मिथक नहीं था, बल्कि 21वीं सदी का जीवंत प्रयोग था — जिसका नाम था हिरा रतन मानेक, जिसे बाद में दुनिया “सन ईटर” या “सूर्यभोजी” के नाम से जानने लगी।


प्रारंभ: जिज्ञासा से साधना तक


बचपन से ही मानेक को सूर्य की ओर देखने की अद्भुत चाह थी। गाँव के लोग कहते थे — “यह लड़का सूरज को ऐसे देखता है जैसे कोई पुराना संबंध हो।”

धीरे-धीरे यह जिज्ञासा ध्यान में बदली, ध्यान तपस्या में, और तपस्या जीवनशैली में।

वर्षों तक वे सूर्य को प्रतिदिन उगते और ढलते समय नंगे पाँव धरती पर खड़े होकर निहारते रहे। उन्होंने इसे कोई धर्म नहीं, बल्कि “सूर्यसाधना” कहा — एक वैज्ञानिक प्रयोग, जिसमें शरीर और चेतना को प्रकृति की ऊर्जा से सींचा जाता है।


विज्ञान की कसौटी पर तपस्या


उनके उपवास की कहानियाँ जब दूर-दूर तक फैलीं, तब चिकित्सकों ने इसे परखा।

सन 1995 से 2000 के बीच, वे तीन बार लम्बे उपवास पर रहे —

एक बार 211 दिन तक केवल पानी पर,

दूसरी बार लगभग एक वर्ष तक,

और एक बार तो पूरे 411 दिन तक, जिसमें उन्होंने कोई ठोस आहार नहीं लिया।


अहमदाबाद के जैन डॉक्टरों, और बाद में अमेरिका की नासा तथा जेन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उनका अध्ययन किया।

परिणाम चौंकाने वाले थे —

उनका शरीर सामान्य था, रक्तचाप संतुलित, और मस्तिष्क की तरंगें असाधारण रूप से शांत और स्थिर थीं।

वैज्ञानिकों ने कहा — “उनका मस्तिष्क एक ध्यानस्थ योगी जैसा कार्य कर रहा है, और ऊर्जा स्तर सामान्य व्यक्ति से कहीं अधिक है।”

शरीर का रूपांतरण — जब देह ने प्रकाश को पीना शुरू किया

कहते हैं कि समय के साथ उनका शरीर परिवर्तित होने लगा।

उनकी त्वचा पर एक हल्की सुनहरी आभा झलकती थी, जैसे सूर्य की किरणें भीतर से प्रस्फुटित हो रही हों।

उनकी आँखों में गहराई थी — स्थिर, लेकिन तेजस्वी।

वे कहते थे — “अब भोजन की आवश्यकता केवल मन के लिए है, शरीर तो प्रकाश से संतुष्ट है।”


उनका वजन स्थिर रहा, नींद कम हो गई, और स्मरण शक्ति इतनी तीव्र कि वे घंटों बिना थके बोलते या ध्यान करते रहते।

लोग कहते थे — “उनके भीतर कोई अग्नि जलती है, जो न बुझती है, न जलाती है — बस प्रकाश देती है।”

तर्क और विश्वास के बीच

वैज्ञानिकों के लिए यह एक रहस्य था, और अध्यात्म के लिए प्रमाण।

कुछ ने कहा — “यह असंभव है”, कुछ ने कहा — “यह योगिक परिवर्तन का चरम उदाहरण है।”

पर मानेक ने कभी विवाद नहीं किया।

वे कहते थे —

“सूर्य केवल आकाश में नहीं है, वह हमारे भीतर भी है। जो उसे पहचान ले, वह भूख और भय से मुक्त हो जाता है।”

जीवन का दार्शनिक आयाम

मानेक का जीवन किसी धर्म, संप्रदाय या प्रचार का साधन नहीं था।

उन्होंने इसे “मानव चेतना की प्रयोगशाला” कहा।

उनका संदेश सरल था —

“यदि मनुष्य अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करे और प्रकृति से तालमेल बिठाए, तो वह सीमाओं से परे जा सकता है।”

वे कहते थे कि मनुष्य के भीतर 70% ऊर्जा सूर्य से जुड़ी है — बस उसे सक्रिय करने की आवश्यकता है।

उनकी साधना में सूर्य न केवल ऊर्जा का स्रोत था, बल्कि चेतना का माध्यम भी।

एक आध्यात्मिक प्रयोग का अंत और शुरुआत

2022 में जब हिरा रतन मानेक का देहांत हुआ, तो किसी ने यह नहीं कहा कि वे चले गए —

लोगों ने कहा —

“वह अब सूर्य में विलीन हो गए हैं।”

उनका जीवन आज भी प्रश्न बनकर हमारे सामने है —

क्या मानव शरीर केवल भोजन पर जीवित रहता है, या वह स्वयं ऊर्जा का भंडार है?

क्या सूर्य के प्रति आस्था और अनुशासन से मनुष्य अमर चेतना को छू सकता है?


शायद यही उनका संदेश था —

कि विज्ञान और अध्यात्म विरोधी नहीं, बल्कि एक ही सत्‍यरूपी वृक्ष की दो शाखाएँ हैं।

एक दृश्य में खोज करता है, दूसरा अदृश्य में।


सूर्य से संवाद की कला


हिरा रतन मानेक ने अपने अनुयायियों को सिखाया —

 • प्रतिदिन सूर्योदय के प्रथम 10 मिनट या सूर्यास्त के अंतिम 10 मिनट सूर्य को निहारो।

 • नंगे पाँव धरती पर खड़े रहो ताकि ऊर्जा प्रवाहित हो सके।

 • धीरे-धीरे समय बढ़ाओ, और अपने भीतर के परिवर्तन को महसूस करो।


उन्होंने कहा — “सूर्यसाधना भोजन छोड़ने की कला नहीं, बल्कि चेतना जगाने का मार्ग है।”

विरासत: वह लौ जो बुझी नहीं

आज भी हजारों लोग HRM Method का पालन करते हैं।

कई डॉक्टरों ने इसे “ध्यान आधारित सूर्य चिकित्सा” माना है।

उनका नाम इतिहास के किसी कोने में नहीं, बल्कि उन लोगों के हृदय में दर्ज है जो यह मानते हैं —

“मनुष्य केवल मांस और रक्त का नहीं, बल्कि प्रकाश और चेतना का भी बना है।”

✨ उपसंहार

हिरा रतन मानेक ने सिद्ध कर दिया कि जब मनुष्य अपनी सीमाओं को चुनौती देता है, तब वह केवल जीव नहीं रहता — वह जीवित प्रकाश बन जाता है।

उनकी कथा आज भी हमें यह याद दिलाती है कि प्रकृति, विज्ञान और आत्मा — ये तीनों मिलकर मनुष्य को ब्रह्माण्ड का दर्पण बना सकते हैं।

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