उल्लुओं का सत्याग्रह
• रवि उपाध्याय
यह मान्यता है कि प्रत्येक देवी देवता अपने वाहन या कहिए की व्हीकल के रूप में आदिकाल से पशु- पक्षी का उपयोग करते चले आ रहे हैं। जैसे दुर्गा माता की सवारी सिंह है, तो विद्या की देवी सरस्वती का वाहन हंस है। इसी तरह धन की देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू को माना जाता है। देवाधिदेव महादेव का वाहन नंदी है। गणपति महाराज का वाहन मूषक है। लक्ष्मी माता कमल के आसान पर विराजमान होतीं हैं और कमल कीचड़ में खिलता है। यही कारण है कि चारों तरफ कमल ही कमल ही खिल रहा है।
अब बात मां लक्ष्मी की सवारी उल्लू की तो उल्लू कोई इंडिया की ही बौद्धिक संपति नहीं है। यह पूरी दुनिया में व्याप्त हैं। संस्कृत भाषा में इन्हें उल्लूक: कहा जाता है। वहीं अंग्रेजी में इसे आउल कहा गया है। हिंदी भाषा में उल्लू को उल्लू ही कहा गया है। हां तो बात माता लक्ष्मी के वाहन उल्लू की तो एक बार की बात है कि उल्लुओं में भी इस बात को लेकर असंतोष फैल गया कि संसार में उनका बहुमत होने के बाद भी घोर उपेक्षा हो रही है। अन्य देवी देवताओं के वाहनों की तरह उन्हें पूजना तो दूर कोई उनको पूछता तक नहीं है, जबकि संसार का संचालन जिस धन से होता है वे ही उन माता लक्ष्मी को तीनों लोकों में भ्रमण कराते हैं।
उनका मानना था कि वे माता लक्ष्मी को अपनी पीठ पर बैठा कर पूरे संसार में भ्रमण कराते हैं ताकि कहीं भी धन की कमी न हो। सब के सब माता लक्ष्मी को ही पूजते और पूछते हैं । पर यह दुर्भाग्य यह है कि हमारी कोई इज्जत ही नहीं है। हमको पूजना तो छोड़ो कोई पूछता ही नहीं । हम से अच्छे तो पृथ्वी लोक पर मंत्रियों और अफसरों के वाहन चालक हैं जिनकी पूछ परख तो होती ही है, साथ ही साथ उनकी चाय -पानी का भी बहुत ध्यान रखा जाता है। बावजूद इसके वो तो डीज़ल पेट्रोल के भी मालिक हैं। हमारे पास तो कुछु भी नहीं हैं। न तनख़ा न ड्रेस और ना ही कोई टिप विप ओर न ही कोई पूछ परख। यह पृथ्वी पर व्याप्त लोकतंत्र का असर कहिए या कलयुग का प्रभाव कि उल्लुओं ने पृथ्वी लोक पर गाजर घास की तरह यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त सियासत से प्रेरणा लेकर इस विषय पर एक बड़ी सभा आयोजित करने का निश्चय किया ताकि वे परस्पर विचार विमर्श के पश्चात अपनी भावनाओं से लक्ष्मी माता को शांति पूर्ण ढंग से अवगत करा सकें।
उल्लुओं ने इसके लिए बड़ी बुद्धिमानी और समझदारी से काम लेते हुए मानसून अर्थात चौमासा का समय इसलिए चुना क्योंकि इस कालावधि में मानसून के समय सभी देवी - देवता स्वर्ग में विश्राम करते हैं। इसलिए पृथ्वी पर एक बड़े समाज में विवाह कार्य समेत अन्य मंगल कार्य बंद रहते हैं। भगवान लक्ष्मी -नारायण समेत समस्त देवी और देवता अवकाश पर रहते हैं । ऐसे में वे उनकी प्रार्थना आराम से सुन समझ सकते हैं।तो सभी उल्लुओं ने मनुष्यों की ही तरह लोकतांत्रिक अस्त्र का उपयोग करते हुए देश भर के सभी उल्लुओं को विशेष बैठक के लिए आमंत्रित किया।
आपको बता दें कि जिस तरह से देवी देवता गण अवकाश काल के दौरान स्वर्ग में विश्राम करते हैं, ठीक उसी प्रकार पृथ्वीलोक पर भी न्यायाधीश महीनों- महीनों तक सावैतनिक अवकाश पर रह कर देवी देवताओं के समान आराम फरमाते हैं। भला ऐसा क्यों न हो क्योंकि न्यायाधीश भी एक तरह से पृथ्वीलोक के भगवान ही हैं। उन सहित जमाना भी ऐसा मानता है। वे जान ले भी सकते हैं तो जान छोड़ भी सकते हैं।उनका फैसला फायनल होता है। वे यदि चाहें तो किसी मामले की सुनवाई के लिए रात को दो बजे भी अदालत लगा लें और न चाहें तो फरियादी को अगले जन्म तक इंतजार करवा दें। वे आदमी तो आदमी पशुओं और भगवान को भी पेश होने का हुकुम दे कर सजा सुना सकते हैं। उनके समक्ष आदमी और पशुओं में कोई अंतर नहीं होता। वे सम दर्शी हैं। वे बिना किसी क्षेत्र वेत्र की सीमा से बंधे नहीं होते हैं। वे सर्व व्यापी हैं। यह अत्यंत ही संतोष की बात है की हमारे जज साहेबान पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। उन्हें विश्वास है कि अगले जन्म में वे फिर से जज की ही योनि में जन्म लेंगे।
रही बात मुकदमों में विलम्ब से फैसलों की तो बेचारे न्यायमूर्ति तो वादी के हित की ही सोचते हैं। क्योंकि जब तक जज साहब फैसला नहीं सुनाएंगे तब तक वादी मरना तो दूर मरने की सोच ही नहीं सकता। फरियादी की उमर से ज्यादा लंबे टेम तक सांस चलने देने में जज साहब की बड़ी भूमिका होती है । अपने मुकद्दमे की फैसले की आस में वह खुदा द्वारा बख़्शी गई उम्र से भी ज्यादा जिए ही चला जाता है,जिए ही चला जाता है। इस आस में कि उस पर भी योर ऑनर को रहम आएगा।
इस बीच वह यमराज जी से बार बार रिक्वेस्ट करता है, हुजूर मुकदमा निबट जाए तब चलते हैं। उसे काले भैंसे पर सवार यमराज सर में भगवान नजर आते हैं। वे कम से कम उस पर रहम तो कर देते हैं और एक डायस पर बैठे स्वयं भू भगवान हैं जो बिल्कुल ही नहीं पसीजते हैं। वह सोचता है काश ये भी "मूर्ति" की जगह इंसान होते तो मैं भी टेम से यमराज जी के साथ निकल लेता। वहां लेट होने की न जाने क्या सजा मिले ?
चलिए जजों की बात छोड़िए हम अपने मूल मुद्दा उल्लुओं के टॉपिक पर लौटते हैं। हमारे लिए दोनों समान रूप से मुख्य हैं। तो भाईयों उल्लुओं ने तय किया कि अवकाश काल के दौरान देवी देवता रिलेक्स मूड में होते हैं ऐसे में वे कोई भी प्रार्थना आराम से सुन सकते हैं। तो सभी उल्लुओं ने मनुष्यों की ही तरह अपने लोकतांत्रिक अस्त्र का उपयोग करते हुए देश भर के सभी उल्लुओं को बैठक के लिए आमंत्रित किया। उस बैठक में कूटनीति से काम लेते हुए तय किया गया कि माता लक्ष्मी से मिलने के पहले क्यों ने भगवान नारायण के वाहन खगराज गरुड़ से भेंट कर उनका आशीर्वाद और सहयोग मांगा जाए।
उल्लुओं ने तय किया कि पांच उल्लू जा कर खगराज गरुड़ से अपनी समस्याओं के बारे में निवेदन करेंगे। सो उन से मुलाकात की गई। उन्हें समस्या बताई गईं।गरुड़ महाराज ने आश्वासन दिया कि वे प्रभु नारायण से और माता लक्ष्मी से इस विषय पर आग्रह करेंगे। उन्होंने उल्लुओं से कहा कि वे स्वयं भी माता लक्ष्मी से निवेदन करें।
खगराज गरुड़ के परामर्श से उल्लू गण माता लक्ष्मी से मिले और उन्हें अपनी समस्या अवगत कराया। माता लक्ष्मी ने उनको ध्यान से सुना और उन्हें रुकने का इशारा कर वे नारायण भगवान से विमर्श करने अंदर एंटी चेंबर में चलीं गईं। कुछ समय के बाद जब वह वापस आईं तो बोलीं उल्लू गणों हमने आप की समस्या पर श्री नारायण से विमर्श के बाद निर्णय लिया है कि आपकी समस्या का समाधान होना ही चाहिए। आपकी समस्या जेन्यूइन है और उसका समाधान किया जाना सर्वथा उचित है। खगराज गरूड़ महाराज ने भी आपके बारे में श्री नारायण से निवेदन किया है।
माता लक्ष्मी ने कहा,अब से हमने निर्णय लिया है कि पृथ्वी लोक आपको भी उचित सम्मान मिलेगा। अब राजनीति हो या प्रशासकीय क्षेत्र या आर्थिक या शैक्षणिक क्षेत्र ही क्यों न हो हर क्षेत्र में मानव भेष में उल्लू रहेंगे। हर धनपति में तुम्हारी ही आत्मा होगी। हमरा वाहन होने के नाते हम तुम्हें वरदान देते हैं कि जहां भी मैं अर्थात लक्ष्मी रहेगी उस व्यक्ति के अंदर तुम अदृश्य रूप में रहोगे। उसका सम्मान वास्तव में तुम्हारे उल्लूत्व का सम्मान होगा। पृथ्वी लोक में तुम हर धनपति के अंतर मन और बुद्धि में मौजूद रहोगे। उसका जो सम्मान होगा वह वास्तव में तुम्हारा सम्मान होगा। इसी वरदान का असर है कि कहा जाता है कि हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा। इसका असर हम आज संसद से सड़क तक महसूस कर रहे हैं। उल्लुओं को इतना सम्मान मिल रहा है कि आदमी एक दूसरे को और यहां तक कि खुद को भी उल्लू बना रहा है।
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