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तंत्र साधना और अनुष्ठानों का केंद्र है मां बगलामुखी धाम, पांडवों को यहीं मिला था जीत का मंत्र Maa Baglamukhi Dham is a center of tantric practices and rituals, where the Pandavas received the mantra of victory.


विभास क्षीरसागर

महाभारतकालीन इस शक्तिपीठ में पांडवों ने भगवान कृष्ण के कहने पर मां बगलामुखी की आराधना की थी। यहां तांत्रिक साधना, शत्रु नाश, चुनावी विजय और कोर्ट केस के निपटारे हेतु विशेष यज्ञ और अनुष्ठान होते हैं, जिसमें आम भक्तों से लेकर वीवीआईपी तक शामिल होते हैं।

जिला मुख्यालय से 35 किलो मीटर दूर नलखेड़ा में स्थित विश्व प्रसिद्ध पीतांबरा सिद्ध पीठ मां बगलामुखी मंदिर में नवरात्र में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। यह मंदिर तंत्र साधना के प्रमुख स्थलों में शामिल हैं। मान्यता यह है कि माता बगलामुखी की मूर्ति स्वयंभू है। ईस्वी वर्ष 1816 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। इस शक्तिपीठ की स्थापना महाभारतकाल में हुई। भगवान कृष्ण के कहने पर कौरवों से विजय के लिए पांडवों ने यहां मां बगलामुखी की आराधना की थी। 

नवरात्र में यहां तंत्र साधना के लिए तांत्रिकों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां कई तरह के यज्ञ हवन और ऐसे अनुष्ठान होते हैं, जो आम मंदिरों में नहीं होते। यहां शत्रु के नाश, चुनाव में जीत और कोर्ट केस के निपटारे के लिए विशेष पूजन होता है। आम भक्त ही नहीं यहां न्यायाधीश, राजनेता, फिल्म अभिनेता जैसे वीवीआईपी भक्त भी आते हैं। जो अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए विशेष हवन-अनुष्ठान करते हैं।

त्रिशक्ति स्वरूप में विराजित हैं मांमंदिर में त्रिशक्ति मां विराजित हैं। मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती हैं। नवरात्र पर्व के दौरान यहां देश के कई स्थानों के साथ ही विदेशों से भी माता भक्त बड़ी संख्या में आते हैं। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट हैं। शास्त्र के अनुसार इस देवी की साधना-आराधना से शत्रुओं का संहार हो जाता है। यह साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है।

राजा विक्रमादित्य ने कराया जीर्णोद्धारपं. रामबाबू शर्मा ने बताया कि मंदिर का मौजूदा स्वरूप करीब 1500 साल पहले राजा विक्रमादित्य के काल में हुआ था। गर्भगृह की दीवारों की मोटाई तीन फीट के आसपास है। दीवारों की बाहर की तरफ की गई कलाकृति आकर्षक है। पुरातात्विक गाथा को प्रतिबिंबित करती नजर आती हैं। मंदिर के ठीक सामने 80 फीट ऊंची दीपमाला दिव्य ज्योत को अलंकृत करती हुई, विक्रमादित्य के शासन काल की अनुपम निर्माण की एक और कहानी बयान करती है। मंदिर में 16 खंभों का सभा मंडप बना हुआ है, जो करीब 250 साल पहले बनाया गया था।

पीली चीज है मां को अतिप्रियमां बगलामुखी को लेकर कहा जाता है कि ये इतनी शक्तिशाली हैं कि यदि संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्तियां भी मिल जाएं तो मां बगलामुखी का मुकाबला नहीं कर सकतीं। मां बगलामुखी को पीला रंग अतिप्रिय है, जिस कारण मां को पीतांबरी भी कहा जाता है। इसलिए मां बगलामुखी की पूजा में पीले रंग की चीजें जैसे पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले भोग आदि चढ़ाने से मां प्रसन्न होती हैं।

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