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आर्थिकी: रुपये की नई दिशा... ये भारत की दीर्घकालिक आर्थिक दृष्टि और रणनीतिक महत्वाकांक्षा के प्रतीक !Economy: New direction for the rupee... a symbol of India's long-term economic vision and strategic ambition!

 

प्रणव बजाज

आरबीआई द्वारा उठाए गए हालिया कदम केवल मौद्रिक सुधार नहीं हैं, बल्कि ये भारत की दीर्घकालिक आर्थिक दृष्टि और रणनीतिक महत्वाकांक्षा के प्रतीक हैं।


वैश्विक आर्थिक हालात से अवरोधित होते व्यापार एवं बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने भारत को यह सोचने पर मजबूर किया है कि डॉलर पर अधिक निर्भरता सुरक्षित नहीं है। ऐसे में, यदि व्यापार का बड़ा हिस्सा भारतीय रुपये में निपटाया जाए, तो यह न केवल लेन-देन को सरल बनाएगा, बल्कि भारत की वित्तीय स्वायत्तता को भी मजबूत करेगा। इसी परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में कई नए प्रावधान लागू किए हैं, जिसके अंतर्गत आरबीआई ने पड़ोसी एवं अन्य देशों को रुपये में ऋण की सुविधा दी है। अब भारतीय बैंक भूटान, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों की कंपनियों और संस्थाओं को रुपये में कर्ज दे सकेंगे। कर्ज की वापसी भी रुपये में ही होगी।

रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की शुरुआत वर्ष 2022 में आरबीआई ने स्पेशल रुपी वोस्ट्रो अकाउंट से की थी। इसके जरिये कोई भी विदेशी बैंक भारतीय बैंकों में खाता खोलकर सीधे रुपये में लेन-देन कर सकता है। भारत रूस के साथ व्यापार निपटान रुपये में कर चुका है। भारत और ईरान के बीच कुछ व्यापार लेन-देन रुपये में करने की तैयारी है। नेपाल और भूटान में रुपया पहले से मान्य है। बोत्सवाना, फिजी, जर्मनी, केन्या, मलयेशिया, मॉरिशस, म्यांमार, सिंगापुर, रूस, श्रीलंका, ब्रिटेन सहित करीब 18 देशों को स्पेशल रुपी वोस्ट्रो अकाउंट व्यवस्था में शामिल किया गया है। ब्रिक्स देशों के एनडीबी बैंक ने घोषणा की है कि वह भारत का पहला रुपया-मूल्यवर्गित बाॅन्ड जारी करने की योजना बना रहा है। भारत पहले ही कुछ द्विपक्षीय प्रयोग कर चुका है, और कई देश इसमें रुचि दिखा चुके हैं।आरबीआई द्वारा रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में उठाए गए नवीनतम प्रयासों का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि आयात-निर्यात के लेन-देन में रुपये का उपयोग बढ़ने से विदेशी मुद्रा का जोखिम घटेगा। विदेशी निवेशकों को लेन-देन की अधिक सुविधा मिलेगी। वित्तीय बाजारों में कॉरपोरेट बॉन्ड और अन्य साधनों में निवेश से घरेलू वित्तीय तंत्र को मजबूती मिलेगी।भारत के कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार को बढ़ावा मिलने से रुपये की वैश्विक मांग और उपयोगिता बढ़ेगी।

 भारत प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और आगामी दशकों में उच्च वृद्धि जारी रहने की संभावना है। यदि भारत निरंतर आर्थिक मजबूती दिखाए, तो उसकी मुद्रा को अधिक स्वीकार्यता मिल सकती है। यद्यपि डॉलर और यूरो जैसी मजबूत मुद्राओं से मुकाबले में कई जोखिम एवं चुनौतियां भी हैं, जिनको समझकर ही आगे बढ़ना होगा। भारत अभी पूर्ण पूंजी खाता खुलापन नहीं देता, पूंजी लेन-देन पर अभी प्रतिबंध हैं। भारत का व्यापार घाटा रुपये की वैश्विक मांग को सीमित करता है।विदेशी निवेशकों का विश्वास, मुद्रा स्थिरता, आर्थिक एवं राजनीतिक विश्वसनीयता, मुद्रा अवमूल्यन के डर आदि से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का पर्याप्त स्तर, बुनियादी आर्थिक-संरचनात्मक सुधार जैसे बैंकिंग क्षेत्र, वित्तीय बाजार, विनियामक ढांचा इत्यादि को मजबूत करना होगा। इस दीर्घकालीन लक्ष्य को 10 से 20 वर्षों में हासिल करने के लिए रणनीतिक रूप से कार्य कर स्वयं को दक्षिण एशिया में एक वित्तीय नेता के रूप में स्थापित कर सकता है। कुल मिलाकर, भारतीय रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में आरबीआई द्वारा उठाए गए हालिया कदम केवल मौद्रिक सुधार नहीं हैं, बल्कि ये भारत की दीर्घकालिक आर्थिक दृष्टि और रणनीतिक महत्वाकांक्षा के प्रतीक हैं।

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